रूठी राधा को कान्हा ने मनाया था जहां, आज भी वहां झुकते हैं भक्तों के शीश
शाम ढलते ही मागरें पर छा जाता है अंधेरा , प्रतिवर्ष हजारों भक्त पहुंचते हैं यहां दर्शन करने।
आगरा(जेएनएन): नाचत श्याम मोरन संग मुदित ही श्याम रिहझावत, ऐसी कोकिला अलावत पपैया देत स्वर ऐसो मेघ गरज मृदंग बजावत। बरसाना स्थित मोर कुटी पर लिखा स्वामी हरिदासजी का यह पद श्याम सुंदर के मयूर लीला के भाव को प्रदर्शित करता है। प्राचीन स्थल मोर कुटी का प्राकट्य आज से साढ़े पाच सौ वर्ष पहले श्रील नारायण भट्ट ने किया था। जानकारों की मानें तो पहले यहा सिर्फ रास चबूतरा था। जिसके बाद जयपुर नरेश माधो सिंह ने चबूतरा पर एक कमरा बनवाया था। यहा आज भी राधाकृष्ण के मयूर चित्र की पूजा अर्चना होती है। मान्यता है राधारानी के रूठ जाने पर इस स्थान पर श्रीकृष्ण ने मोर का रुप धारण कर नृत्य किया। मोर को नाचता देख राधारानी प्रसन्न हो गईं। इस प्राचीन स्थान पर भाद्र सुदी की नवमी को मयूर लीला का आयोजन किया जाता है। राधाकृष्ण के बालस्वरूप लीला का मंचन करते है।
नागरी दास की भजन स्थली है मोरकुटी: प्राचीन मोरकुटी स्थल पर कई संतो ने तपस्या की। वहीं राधा बल्लभ संप्रदाय के भक्त कवि नागरी दास ने भी इस प्राचीन स्थल पर तपस्या की थी। प्राचीन लेकिन अनदेखी: मोरकुटी ब्रज की संस्कृति में जितना प्राचीन और महत्वपूर्ण स्थल है उतना ही सरकार द्वारा उपेक्षित भी। राधा और कृष्ण के प्रेम के इस स्मारक को देखने के लिए दूर दूर से भक्त आते हैं लेकिन यहां शाम होते ही अंधेरा छा जाता है। सरकार द्वारा न ही यहां रोशनी की व्यवस्था की गई है और न ही सड़क मार्ग ही उचित प्रकार से बनाया गया है।
ऐसे जाया जाएगा मोरकुटी:
मोरकुटी स्थल पर जाने के लिए चार रास्ते है। एक जयपुर मंदिर मार्ग, साकरी खोर, चिकसोली और गहवरवन के रास्ते से भी जाया जा सकता है।
सरकार ने नहीं ली कभी सुध: मोरकुटी स्थल का निर्माण स्वामी हरिदास की प्रेरणा से उनके भक्तों ने समय- समय पर कराया है। विडंबना है कि आजतक सरकार ने इसकी कोई सुध नही ली।
- स्वामी जयदेव दास, महंत