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आध्यात्मिक सौंदर्य बिखेर रहा आगरा का सूर्य मंदिर, जानिये क्या है विशेषता

गायत्री शक्तिपीठ संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा की जन्मस्थली आंवलखेड़ा में नवनिर्मित सूर्य मंदिर विशिष्ट निर्माण शैली और वास्तुकला की चमक बिखेर रहा है।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Fri, 18 Jan 2019 06:22 PM (IST)Updated: Fri, 18 Jan 2019 06:22 PM (IST)
आध्यात्मिक सौंदर्य बिखेर रहा आगरा का सूर्य मंदिर, जानिये क्या है विशेषता
आध्यात्मिक सौंदर्य बिखेर रहा आगरा का सूर्य मंदिर, जानिये क्या है विशेषता

आगरा, मुकेश कुशवाह। युग निर्माण की परिकल्पना को साकार करने के लिए व्यक्ति निर्माण से समाज और राष्ट्र निर्माण के पथ प्रदर्शक गायत्री परिवार उन्हें भी आलोकित करता है जिन्हें उज्ज्वल भविष्य अभी भी कठिन लगता है। गायत्री परिवार ऐसे लोगों को संदेश देता है कि वे प्रभातकाल का अरुणोदय का दृश्य देखें और समझें कि नियंता की एक स्फुरणा किस तरह संव्याप्त अंधकार को निगल जाने, सर्वत्र आलोक का उल्लास और पराक्रम का वातावरण बना देने का चमत्कार प्रस्तुत करती है। गायत्री शक्तिपीठ संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा की जन्मस्थली आंवलखेड़ा में नवनिर्मित सूर्य मंदिर विशिष्ट निर्माण शैली और वास्तुकला का ऐसा ही चमत्कार बिखेर रहा है। आराध्य के स्वरूप को रूपायित कर यहां पर सूर्य देव को कल्पनानुसार इस तरह से श्रंगारित किया गया है कि उनकी मुद्राएं अनुपम और अलौकिक करने वाली हैं। भक्तजन यहां आकर दैवी अनुभूति से निहाल हो रहे हैं। इस देवस्थान की भव्यता और दिव्यता मोहित कर रही है।

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आगरा शहर से 20 किलोमीटर दूर जलेसर मार्ग पर स्थित आंवलखेड़ा को आध्यात्मिक पर्यटन स्थल के रूप में तैयार किया जा रहा है। गायत्री परिवार के मुख्यालय हरिद्वार स्थित शांतिकुंज द्वारा तीर्थों की परंपरा में एक नया प्रयोग करते हुए आध्यात्मिक दृष्टि से अमूल्य धरोहर के रूप में इस सूर्य मंदिर को विकसित किया जा रहा है। सामाजिक परिवर्तन की चाह, अध्यात्म के वैज्ञानिक स्वरूप के जिज्ञासु यहां आकर मार्गदर्शन प्राप्त करेंगे। कक्ष के केंद्र में धवल संगमरमर से बनी मूर्ति में भगवान भास्कर देव सारथी के साथ रथ पर सवार हैं। उनके रथ में सात घोड़े इस मुद्रा में हैं कि मानो अभी दौडऩे लगेंगे। इसके पीछे उदीयमान सूर्य का दृश्य उकेरा गया है। मंदिर में गायत्री मंत्र और प्रज्ञा गीत की धुन निरंतर गुनगुनाती रहेगी।

 चेन्नई में निर्मित हुई मूर्ति, चार वर्ष में हुआ निर्माण

सूर्य मंदिर का निर्माण अगस्त 2011 से शुरू हुआ। मंदिर का नक्शा नागपुर के आर्किटेक्ट अशोक मोखा ने बनाया है। दिल्ली की कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा चार वर्ष में तैयार किया गया। जयपुर, दिल्ली और नागपुर से आए प्रशिक्षित कारीगर इसे तैयार करने में जुटे हैं।  सूर्य मंदिर में स्थापित की गई सूर्यदेव की मूर्ति चेन्नई से तैयार होकर आई है। मंदिर के शिखर पर वृत्ताकार में लेंस लगाया जाएगा। लेंस के जरिए मूर्ति और भवन को प्रकाशित करते रहना ही इस मंदिर की विशेषता होगी। यह मंदिर परंपरागत मंदिरों से कुछ भिन्न नजर आता है।

व्यक्तित्व और कृतित्व की अद्भुत प्रदर्शनी

सूर्य मंदिर के नीचे के तल में स्वस्तिक भवन बनाया गया है। इसमें पं.श्रीराम शर्मा आचार्य केजीवनवृत्त, व्यक्तित्व और कृतित्व की प्रदर्शनी लगाई गई है। आचार्यश्री द्वारा लिखित 3200 पुस्तकें, चारों वेद, 108 उपनिषद, छह दर्शन, 20 स्मृति, 18 पुराण, गीता एवं रामायण सारांश, गायत्री महाविज्ञान तथा दैनिक जीवन से जुड़ी वस्तुएं यहां देखने को मिलेंगी।

शक-कुषाण काल में बनी सूर्य की पहली मूर्ति

मथुरा के संग्रहालय में लाल पत्थर की अनेक सूर्य प्रतिमांए रखी है, जो कुषाण काल (पहली से तीसरी शताब्बी ईसवीं) की है। मथुरा कला में ही सूर्य की पहली मूर्ति बनाई गई। इसमें वह उकडूं बैठे दिखाई दे रहे हैं। इस मूर्ति का कशीदाकारी कोट, सलवार और ऊपर तक पहनने वाले जूते, बाएं हाथ में कृपाण शक राजकुमार चष्टन की मूर्ति से मिलती है। एक अन्य मूर्ति में भगवान सूर्य को चार घोड़ों के रथ में बैठे दिखाया गया है। वे कुर्सी पर बैठने की मुद्रा में पैर लटकाए हुए हैं। उनके दोनों हाथों में कमल की एक-एक कली है। उनके दोनों कंधों पर सूर्य-पक्षी गरुड़ जैसे दो छोटे-छोटे पंख लगे हुए हैं। भारत में ये सूर्य की सबसे प्राचीन मूर्तियां है। इसके अलावा एक अन्य रथारूढ़ सूर्य की मूर्ति है। दशावतार सूर्य की प्रतिमा भी यहां मौजूद है।

1995 में हुआ था अश्वमेघ यज्ञ

  गायत्री परिवार के संस्थापक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी की जन्मस्थली आंवलखेड़ा में सन 1995 में अश्वमेघ महायज्ञ किया गया था। महायज्ञ में तत्कालीन प्रधामंत्री पी वी नरसिम्हा राव, राज्यपाल मोती लाल बोरा सहित तमाम हस्तियां आईं थीं। महायज्ञ में 1251 कुंड बनाए गए थे। जिनको पचास वर्गो में विभाजित किया गया था। एक बार में साढ़े बारह हजार से अधिक श्रद्धालु आहुति दे रहे थे।

ये हैं प्रमुख सूर्य मंदिर

सूर्य मंदिर मोढेरा: अहमदाबाद से 102 किमी और मेहसाना से 25 किमी दूर है। इसके निर्माण में कहीं भी चूने का इस्तेमाल नहीं हुआ।

कोणार्क का सूर्य मंदिर: उड़ीसा के कोणार्क में स्थित ये मंदिर अपने विशिष्ट आकार और शिल्पकला के लिए विख्यात है।

लोहार्गल सूर्य मंदिर: ये राजस्थान के झुझनूं जिले में स्थित है। यहां सूर्य कुंड है। मान्यता है कि यहां स्नान के  बाद ही पांडवों को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी।

सूर्य देव मंदिर ग्वालियर: यहां पर पिता सूर्य के साथ ही उनके दोनों पुत्र शनि और यम भी विराजे हैं। ये अपने आप में विशेष मंदिर है।

झालरापाटन सूर्य मंदिर: राजस्थान के झालवाड का दूसरा शहर झालरापाटन है। इसे सिटी ऑफ वेल्स यानी घाटियों का शहर भी कहा जाता है।

मार्तंड मंदिर: दक्षिण कश्मीर के मार्तंड में सूर्यमंदिर स्थित है। इसका प्रतिरूप जम्मू में भी बनाया गया है।

 औंगारी सूर्य मंदिर: नालंदा का सूर्य धाम औंगारी और बडगांव का सूर्य मंदिर प्रसिद्ध है।

 उन्नाव का सूर्य मंदिर: मध्य प्रदेश के उन्नाव में ब्रहमन्य देव मंदिर है।

रनकपुर सूर्य मंदिर: राजस्थान के रणकपुर में स्थित है। नागर शैली में सफेद मार्बल से बना है।

सूर्य मंदिर रांची: 18 पहियों और 7 घोडों के रथ पर सूर्य देव विराजमान हैं।


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