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जानिए कौन हैं गोवंश की 'मदर टेरेसा', जिन्‍हें राष्‍ट्रपति ने दिया पद्मश्री सम्‍मान

सुरभि गोशाला में 1800 गोवंश की मां बन सेवा में जुटी हैं जर्मनी की इरिन फ्रेडरिक ब्रूनिंग उर्फ सुदेवी। जर्मन दूतावास में कार्यरत रहे पिता डैट्रिच ब्रूनिंग दीक्षा लेकर सुदेवी यहीं बसकर रह गईं।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Sat, 16 Mar 2019 09:12 PM (IST)Updated: Sat, 16 Mar 2019 09:12 PM (IST)
जानिए कौन हैं गोवंश की  'मदर टेरेसा', जिन्‍हें राष्‍ट्रपति ने दिया पद्मश्री सम्‍मान
जानिए कौन हैं गोवंश की 'मदर टेरेसा', जिन्‍हें राष्‍ट्रपति ने दिया पद्मश्री सम्‍मान

आगरा, जेएनएन। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शनिवार को जर्मनी की रहने वाली गोभक्त इरिन फ्रेडरिक ब्रूनिंग उर्फ सुदेवी को राष्ट्रपति भवन में पद्मश्री देकर कांग्रेच्युलेशन कहा तो उनका उत्साह सातवें आसमान पर था। भारत सरकार ने उनको यह सम्मान गोवंश की सेवा के लिए दिया है। सुदेवी को मिले सम्मान से ब्रजभूमि और गोभक्त गौरवान्वित हैं। इस अवसर पर राधाकुंड में मिष्ठान वितरण कर खुशी मनाई गई।

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शनिवार को राष्ट्रपति भवन में सुबह करीब 11 बजे पद्मश्री सम्मान के लिए जर्मन गोभक्त का नाम पुकारा गया। राष्ट्रपति ने उन्हें सम्मान के साथ प्रशस्ति पत्र सौंपा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे हाथ मिलाया। सुदेवी ने प्रधानमंत्री से कहा कि गोवंश को आपसे बहुत अपेक्षा है। भगवान ने आपको सनातन धर्म की रक्षा के लिए चुना है। प्रधानमंत्री उनको देखकर मुस्कुरा गए। सुदेवी को सरकार की तरफ से शुक्रवार को दिल्ली बुलाया गया था। वह रविवार को राधाकुंड पहुंचेंगी।

दिल्ली में जर्मन दूतावास में कार्यरत रहे पिता डैट्रिच ब्रूनिंग और मां ओजोला ब्रूनिंग की इकलौती संतान सुदेवी वैभवपूर्ण जीवन छोड़ बीमार और असहाय गोवंश की सेवा में जुटी हैं। भारत सरकार ने इस सेवा के लिए ही उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया है। वर्ष 1981 में वह राधाकुंड पहुंचीं और किशोरी किशोर आनंद उर्फ तीन कौड़ी गोस्वामी से दीक्षा प्राप्त कर भक्ति में लीन रहने लगीं। कान्हा की गायों के प्रति आत्मीयता जागी तो वह 'मदर टेरेसा' बन गोवंश की सेवा करने लगीं। साथ ही नाम बदलकर सुदेवी रख लिया है।

गोवर्धन के सात कोस परिक्रमा मार्ग के राधाकुंड में उनकी सुरभि गोशाला में करीब 1800 गोवंश हैं। इनमें से अधिकांश अपाहिज, नेत्रहीन और गंभीर बीमार हैं। गायों के दूध को सुदेवी निजी कार्य में नहीं लेतीं। बछड़े से बचे हुए दूध को अन्य अनाथ बछड़ों को पिलाया जाता है।

'' गोवंश की सेवा करते-करते प्राण त्यागना चाहती हूं। प्रत्येक गांव में गोबर खरीदने का सेंटर खोलना चाहिए। इससे आर्थिक स्थिति के कारण लोग गोवंश को दूध बंद होने पर भी छोड़ेंगे नहीं। इस गोबर का खाद बनाकर किसानों को दिया जाए। इससे न सिर्फ गोवंश का पालन होगा, बल्कि फसल भी स्वास्थ्यवर्धक होगी''।

इरिन फ्रेडरिक ब्रूनिंग उर्फ सुदेवी 


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