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कहानीकारों ने कहा, कहानियों में झलकती है संस्कृति

सामाजिक सरोकारों पर आधारित होती कहानियों का वाचन हुआ उप्र लेखिका मंच की संगोष्ठी में।

By JagranEdited By: Published: Fri, 29 Jun 2018 06:37 PM (IST)Updated: Fri, 29 Jun 2018 06:37 PM (IST)
कहानीकारों ने कहा, कहानियों में झलकती है संस्कृति
कहानीकारों ने कहा, कहानियों में झलकती है संस्कृति

आगरा(जागरण संवाददाता): कहानीकार सामाजिक जीवन से जुड़े तथ्यों से ही कहानियों का सृजन करता है। ऐसी ही

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आम जिंदगी का आइना दिखाती कहानियों का वाचन किया गया उप्र लेखिका मंच के स्वलिखित कहानी वाचन संगोष्ठी में।

शुक्रवार को विभव नगर स्थित शशि मल्होत्रा के निवास पर संगोष्ठी हुई।

कहानीकारों ने स्पष्टमत से कहा कि कहानियां समाज के प्रवाह से उपजती हैं। कहानियां कल्पना और यथार्थ का अद्भुत सम्मिश्रण होती हैं। सभी का मानना था कि कहानियां सांस्कृतिक मूल्यों और परंपराओं की वाहक भी हैं। कहानियों में दादी नानी के संस्कार नि:सृत होते हैं। संयुक्त परिवार के दौर में दादी नानियां जो कहानियां सुनाती थीं, वो ही बच्चों में संस्कारों का प्रवाह करती थीं।

संगोष्ठी में अध्यक्ष प्रीति आनंद ने कहा कि आजकल दलित और स्त्री विमर्श कहानी के मुद्दे हैं। उन्होंने महिला सशक्तिकरण और उसके अधिकारों की लड़ाई अभिव्यक्ति को दर्शाती उनकी कहानी स्वाभिमान का वाचन किया। ज्योत्सना सिंह ने नारी के अहसास भावनाओं के दर्पण पर कहानी सुनाई तो मृत्युभोज का पठन दलजीत ग्रेवाल ने किया।

महासचिव डॉ. गीता यादुवेंद्र ने बांगला कथा सम्राट शरतचंद चट्टोपध्याय के कहानी लेखन से संबंधित विचारों से अवगत कराया। साथ ही अपनी स्वरचित कहानी अंतिम परिणाम का वाचन किया। कोषाध्यक्ष रजनी सिंह ने जैसी सोच वैसी सृष्टि सुनाई। इसी कड़ी में डॉ. शिखा श्रीधर, मधु बंसल, डॉ. रानी परिहार, करुणा, सुजाता, विनोद बोहरा, सुशीला राठौड़ आदि ने अपने स्वचरित लेखन से सृजित कहानियों का वाचन किया।

समापन पर वरिष्ठ साहित्यकार सुशील सरित ने सभी कहानियों के सामाजिक महत्व पर प्रकाश डाला। साथ ही कहानी लेखन को बेहतर बनाने के सुझाव भी दिए।


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