पुण्यतिथि पर विशेष: वृक्षों के मित्र भी थे देवराहा बाबा, प्रधानमंत्री भी थे भक्त Agra News
वृक्षों की रक्षा की खातिर प्रधानमंत्री राजीव गांधी के आगमन के लिए काटने नहीं दिए थे पेड़।
आगरा, जेएनएन। वृंदावन के प्राकृतिक सौंदर्य की छटा में ही संतों ने यहां अपनी साधना स्थली बनाई। इसके साथ ही जब इसका नगरीयकरण हो रहा था, तब संतों ने कुछ कायदे कानून भी बनाए। इसके मुताबिक जो भी संत यहा साधना करेगा, वह पौधा अवश्य लगाएगा। वृक्षों को लेकर उनका प्रेम यहीं तक सीमित नहीं रहा। इससे आगे बढ़कर संतों ने वृक्षों को अपना मित्र बनाया। उनकी पूजा अर्चना भी की। ऐसे ही संत थे ब्रह्मर्षि देवराह बाबा।
यमुना के किनारे काठ की बनी मचान पर आजीवन भजन, ध्यान करने वाले देवराह बाबा पेड़ पौधे के मित्र भी थे। कभी कोई किसी वृक्ष को छेड़ भी देता तो वे क्रोधित हो जाते। बात 1989 की है। तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी उनका आशीर्वाद लेने के लिए आश्रम आ रहे थे। उनकी सुरक्षा के लिए एसपीजी ने मचान के पास एक हेलीपैड बनाने का काम शुरू किया। यहां एक वृक्ष था, जिसे काटने के लिए कहा गया। यह जानकारी बाबा को हुई तो उन्होंने इसका विरोध किया। इसके बाद जो हुआ वह आज तक रहस्यमय है। योगी ब्रह्मर्षि देवराह बाबा के चमत्कार को लेकर कहते हैं कि प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी को बाबा के दर्शन का कार्यक्रम तय हुआ। बबूल के पेड़ को काटने की सुनकर बाबा क्रोधित हो गए और बोले कि तुम यहां अपने पीएम को लाने की सोच रहे हैं, अब वह नहीं आएंगे। क्योंकि पीएम के लिए एक पेड़ नहीं काटा जा सकता है। जब पेड़ अपने कटने के संबंध मुझसे पूछेगा तो क्या जबाव दूंगा। यह तुम्हारे लिए एक पेड़ हो सकता है, मगर यह मेरा सबसे पुराना साथी है, वह बात करते हैं। अफसरों से कहा कि अब प्रधानमंत्री यहां नहीं आएंगे। अगले ही दो घंटे बाद रेडियोग्राम आया कि प्रधानमंत्री का कार्यक्रम टल गया है। अब वह देवराहबाबा के आश्रम नहीं आ रहे हैं। काफी दिनों के बाद स्व. राजीव गांधी बाबा के दर्शन करने के लिए आए थे।
अपने चमत्कार से हजारों लोगों को तृप्त करते रहे। उनके आशीर्वाद को आतुर सिफऱ् आम लोग ही नहीं, बल्कि कई विशिष्ट लोग भी थे।उनके भक्तों में जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजेंद्र प्रसाद, महामना मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन जैसी महान विभूतियां रही हैं। कुछ लोग उनका जीवन 250 साल तो कुछ लोग 500 साल मानते हैं। 19 जून, 1990 को योगिनी एकादशी के दिन अपने प्राण त्यागने वाले बाबा के जन्म के बारे में आज तक संशय है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि वह करीब 900 साल तक जिन्दा रहे थे।