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अनूठा था भाई- बहन का स्नेह, कलाई पर राखी की डोर बंधती तो लिफाफे का हो जाता था इशारा

चलने फिरने में जब हुए अटल जी असमर्थ तो बहन कमला जाती थीं भाई की कलाई को राखी से सजाने।

By JagranEdited By: Published: Fri, 17 Aug 2018 03:48 PM (IST)Updated: Fri, 17 Aug 2018 03:48 PM (IST)
अनूठा था भाई- बहन का स्नेह, कलाई पर राखी की डोर बंधती तो लिफाफे का हो जाता था इशारा
अनूठा था भाई- बहन का स्नेह, कलाई पर राखी की डोर बंधती तो लिफाफे का हो जाता था इशारा

आगरा(जेएनएन): पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का छोटी बहन कमला दीक्षित से बेहद लगाव था। वे डांटते भी थे और दुलार भी करते थे। उनके अस्वस्थ होने के बाद बहन कमला दीक्षित रक्षाबंधन पर दिल्ली जाती थीं। भाई बहन की इशारों में बात होती थी और आंखों से आंसू टपकते थे। यह सिलसिला 2014 तक चला, बहन का 2015 में निधन हो गया।

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पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अलकापुरी, जयपुर हाउस में बहन कमला दीक्षित के घर अक्सर आते थे। भांजे अजय दीक्षित की 2005 में मृत्यु होने पर वे आए थे। बहन को दुखी देखकर आंखें नम हो गई, देर तक उनके साथ बैठे रहे। इसके बाद वे कभी नहीं आए। उनकी पुत्र वधु निर्मला दीक्षित बताती हैं कि अस्वस्थ होने के बाद दिल्ली में उनके आवास पर कमला दीक्षित राखी बांधने जाती थीं। कलाई पर राखी बांधते ही आंखों से आंसू टपकने लगते थे। वे कुछ कहना चाहते थे लेकिन जुबान साथ नहीं देती थी। इशारा करते थे, उनकी सेवा में लगे विजय इशारा समझने के बाद एक लिफाफा दे देते थे। यह सिलसिला 2014 तक चलता रहा। आठ दिन ठहरे घर पर ही:

निर्मला दीक्षित बताती हैं कि वर्ष 1988 में आगरा में भाजपा का राष्ट्रीय अधिंवेशन हुआ। उस समय लाल कृष्ण आडवाणी राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे। कमला दीक्षित अपने परिजनों के साथ कैंट स्टेशन पर पहुंच गई। ट्रेन से आडवाणी सहित अन्य नेता उतरे लेकिन अटल नहीं थे। वे निराश होकर घर वापस आईं तो देखा घर पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भोजन कर रहे थे। अपनी बहन के तेवर देख कर उनकी नाराजगी का कारण समझ गए। वे बोले, कमला तू मूर्ख है, यदि मैं स्टेशन पर उतरता तो सभी कार्यकर्ता आडवाणी के नहीं मेरे नारे लगा रहे होते। इसलिए मैं ट्रेन से मथुरा ही उतर गया और कार से घर आ गया। अधिवेशन के दौरान वे किसी भी होटल या गेस्ट हाउस में नहीं रुके, बल्कि आठ दिन तक अपनी बहन के घर पर ही उनका प्रवास रहा। उनके पास फोन आते थे, अन्यत्र रहने के लिए, तो कह देते थे कि मैं तो अपनी बहन के यहां ही सही हूं। चुपचाप चले आते थे मिलने:

अटल को अपनी बहन से काफी लगाव था। वे जब चाहे अपनी बहन से मिलने चले आते थे। किसी कार्यकर्ता को पता नहीं चलने देते थे। बहन छोटी थी, इसलिए डांटने में भी नहीं चूकते थे। ये ना समझना, मेरी ननिहाल भी इटावा है:

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 22 जून 2002 में बाबू गुलाबराय के नाम से पांच रुपये का डाक टिकट जारी किया था। बाबू गुलाबराय के नाती पार्षद संजय राय ने बताया कि 30 मिनट का समय मिला था और उन्होंने डेढ़ घंटे तक बात की। चुटकी लेते हुए कहा था कि ये ना समझना कि मेरी ननिहाल भी इटावा में है और तुम भी इटावा के रहने वाले हो। उस दौरान शिव शंकर गुप्ता, विनोद शंकर गुप्ता, प्रमोद शंकर गुप्ता, डॉ. सुधीर शंकर आदि मौजूद रहे थे।


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