कलयुगी बेटे की सचाई, जीते जी मंजूर न थे, मरने पर आया रीति निभाने
मां-बाप को आश्रम भेजने वाले बेटे ने किया पिता का दाहसंस्कार। जीते जी नहीं पूछा हाल दाहसंस्कार को बताया फर्ज।
आगरा, मनोज कुमार। मैनेजमेंट के प्रोफेसर और करीब दर्जन भर पुस्तकों के लेखक मुकेश भाटिया का निधन हो गया। मुकेश भाटिया भाग्य के मारे उन लोगों में से थे जिन्हें बच्चों ने अकेला छोड़ दिया। वे दिल्ली से आकर आगरा रह रहे थे। बीमारी के कारण नौकरी छूटने के बाद मकान मालिक ने दो माह के बकाया किराये के बदले उनका सामान जब्त कर लिया और उन्हें रामलाल वृद्धाश्रम में छोड़ दिया।
बुधवार को उनका निधन हो गया। सूचना दिल्ली में रहने वाले बेटे को भेजी गई तो वह बहन-बहनोई के साथ आया और फर्ज निभाने के नाम पर अंतिम संस्कार किया और अस्थि विसर्जन के लिए ले गया। 'जागरण' ने पहले भी मुकेश भाटिया की पीड़ा को प्रकाशित किया था, जिसमें उन्होंने अपने बेटे पर साफ तौर पर बेसहारा छोड़ देने का आरोप लगाया था। हालांकि, गुरुवार को जब उनके बेटे मनीष से बात हुई तो उसका कहना था कि यह उसका घरेलू मामला है। उसकी माली हालत ऐसी नहीं कि वह मां-बाप को साथ रख सके। इसीलिए अस्थि विसर्जन के बाद वह पुन: मां को यहीं आश्रम में छोड़ जाएगा।
हालांकि वृद्धाश्रम के अध्यक्ष शिव प्रसाद शर्मा बताते हैं कि उन्होंने आश्रम में आने के बाद उन्होंने कई बार फोन किया लेकिन बेटे-बहू ने उनसे कोई संबंध न होने की बात कहकर किनारा कर लिया।
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