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Shardiya Navratra 2022: आगरा के हर कण में बसे हैं आदिशक्ति के कण, ताजमहल से कम प्राचीन नहीं है यहां के देवी मंदिरों का इतिहास

Shardiya Navratra 2022 मुगलिया एतिहासिक इमारतों की नगरी में प्राचीन देवी मंदिर भी श्रंखलाओं में हैं। हर नवरात्र में यहां भक्‍तों का रैला उमड़ता है। कालीबाड़ी मंदिर चामुंडा मंदिर काली मंदिर जैसे आधा दर्जन प्राचीन मंदिर देवी आराधना के लिए प्रमुख केंद्र हैं।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Fri, 23 Sep 2022 07:31 PM (IST)Updated: Fri, 23 Sep 2022 07:31 PM (IST)
Shardiya Navratra 2022: आगरा के हर कण में बसे हैं आदिशक्ति के कण, ताजमहल से कम प्राचीन नहीं है यहां के देवी मंदिरों का इतिहास
राजा की मंडी आगरा में स्थित मां चामुंडा देवी मंदिर।

आगरा, तनु गुप्ता। ताजमहल, लालकिला को ही आगरा शहर की पहचान के रूप में विश्व पटल पर पहचान मिली हुयी है। जबकि सत्य तो ये है कि मुगलिया इमारतों के इस शहर में सनातन की गाथा भी कुछ कम महत्वपूर्ण नहीं है। यहां शिव के प्राचीन शिवालय स्थित हैं तो शिव की शक्ति के मंदिर में कम नहीं है। नवरात्र चाहें चैत्र मास के हों या शरद के, यहां के देवी मंदिरों में भक्तों की कतारें लग जाती हैं। आस्था का रैला उमड़ता है और कण कण से भक्ति फूटती है। आइये आज आपको आगरा के देवी मंदिरों के रोचक इतिहास से परिचित कराते हैं और यहां तक पहुंचने का मार्ग भी सुझाते हैं।

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कालीबाड़ी मंदिर, नूरी दरवाजा

नूरी दरवाजा स्थित कालीबाड़ी मंदिर में काली माता की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। यहां प्रतिदिन मैया के दर्शनों को श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। कालीबाड़ी मंदिर दो शताब्दी से भी अधिक पुराना है। इसकी स्थापना द्वारिकानाथ ब्रह्मचारी ने की थी। समय के साथ यहां की मान्यता बढ़ती चली गई और आज यहां दर्शन के लिए लंबी कतारें लगती हैं। मंदिर की मान्यता दूर-दूर तक है। यहां हर शनिवार को काली मैया की पूजा के लिए सुबह से रात तक भीड़ उमड़ती है। श्रद्धालु तेल का दीपक जलाने के साथ यहां नारियल चढ़ाते हैं।

कैसे पहुंचें

सेंट जोंस चौराहा से फव्वारा मार्ग पर मंदिर मध्य में पड़ता है। राजा की मंडी चौराहा से नूरी दरवाजा होते हुए भी मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।

शक्ति सुशील मंदिर, बल्केश्वर

बल्केश्वर चौराहा स्थित शक्ति सुशील मंदिर वर्ष 1960 में बनकर तैयार हुआ था। इसकी संस्थापना सुशीला देवी ने की थी। मंदिर में मां भगवती वैष्णो देवी की प्रतिमा स्थापित है। यहां आसपास की कॉलोनियों समेत दिल्ली, अमृतसर, अंबाला, लुधियाना से भी श्रद्धालु आते हैं। मंदिर में गुड्डा और गुडिय़ा चढ़ाने की परंपरा है। मान्यता है कि गुड्डा चढ़ाने वाली लड़कियों को अच्छा वर और गुडिय़ा चढ़ाने वाले लड़कों को अच्छी वधू मिलती है। मंदिर करीब छह दशक पुराना है। संगमरमर से बने मंदिर में दीवारों पर कांच की सहायता से पौराणिक प्रसंगों को उकेरा गया है।

कहां से पहुंचें

वाटर वक्र्स चौराहा से करीब एक किमी के फासले पर बल्केश्वर चौराहा है। चौराहे पर ही मंदिर स्थित है।

काली माता मंदिर, यमुना किनारा

यमुना किनारा रोड पर स्ट्रेची ब्रिज के समीप बना काली माता का यह मंदिर करीब 70 साल पुराना है। इसकी स्थापना नरसिंह दस निर्मोही द्वारा की गई थी। यहां नवरात्र ही नहीं, प्रतिदिन काली माता के दर्शन करने श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। मंदिर में काली माता की विशाल प्रतिमा स्थापित है। माता के क्रोध को शांत करने के लिए शिवजी की प्रतिमा उनके चरणों में लेटे हुए हैं। मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु मन्नत मांगने आते हैं। मंदिर पहले सड़क के लेवल पर ही स्थित था। बाद में जब स्ट्रेची ब्रिज के नीचे सड़क को नीचा गया तो मंदिर में चढऩे के लिए सीढिय़ां बनाई गईं। मंदिर की खासियत यह है कि स्ट्रेची ब्रिज से गुजरने के दौरान राहगीरों को माता के दर्शन होते हैं।

कहां से पहुंचें

मंदिर प्रमुख मार्ग पर स्थित है। बिजलीघर चौराहा, जीवनी मंडी चौराहा से होते हुए यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।

चामुंडा देवी मंदिर, राजा की मंडी

चामुंडा देवी मंदिर राजा की मंडी स्टेशन पर रेलवे लाइन के किनारे स्थित है। यहां चामुंडा माता पीपल के पेड़ के नीचे स्थित हैं। रेलवे स्टेशन से मंदिर के लगा होने के चलते यहां दूर-दूर से श्रद्धालु माता के दर्शन को आते हैं। मंदिर अत्यंत प्राचीन है। पहले यहां जंगल हुआ करता था। तभी यहां चामुंडा देवी की प्रतिमा स्थापित की गई थी। तब रेलवे लाइन भी नहीं बिछी थी। वर्ष 1998 में मां चामुंडा देवी प्रबंध सेवा कमेटी द्वारा इसका जीर्णोद्धार कराया गया। मंदिर में श्रद्धालु मनौती मांगते हैं। धन-धान्य, पुत्र प्राप्ति आदि के लिए श्रद्धालु यहां मनौती मांगते हैं। माता रानी की कृपा से देर-सबेर श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होती है। श्रद्धालु माता रानी के शृंगार को चोला चढ़ाते हैं।

कैसे पहुंचें

लोहामंडी से सेंट जोंस चौराहा वाले मार्ग से राजामंडी स्टेशन पहुंचा जा सकता है। मदिया कटरा से न्यू राजामंडी कॉलोनी होते हुए भी मंदिर तक रास्ता जाता है।

कामाख्या देवी मंदिर, हाथीघाट

यमुना किनारा रोड स्थित हाथीघाट पर कामाख्या देवी मंदिर है। यहां कामाख्या देवी और माता के नौ स्वरूप स्थापित हैं। शहर में कामाख्या देवी का यह एकमात्र मंदिर है। मुख्य रोड पर होने से यहां दूर-दूर से श्रद्धालु माता के दर्शनों को आते हैं। मंदिर की स्थापना सात दशक से भी पहले हुई थी। पं. रमन लाल भगत को यहां खोदाई में देवी प्रतिमा मिली थी, जिसे मंदिर में स्थापित किया गया था। मंदिर में दूर-दूर से भक्त आते हैं। बहुत से श्रद्धालुओं की कामाख्या देवी कुलपति हैं। नवविवाहित जोड़े यहां माता का आशीर्वाद लेने आते हैं।

कैसे पहुंचें

कामाख्या देवी मंदिर मुख्य रोड पर स्थित है। बिजलीघर चौराहे से आगरा किला होते हुए यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। जीवनी मंडी से भी यहां सीधा रास्ता आता है।

मां दुर्गा विद्या मंदिर, नामनेर

नामनेर में मां दुर्गा विद्या मंदिर स्थित है। यहां मां दुर्गा, सरस्वती और लक्ष्मी जी की प्रतिमाएं स्थापित हैं। मुख्य बाजार में होने से यहां दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन को आते हैं। मंदिर करीब सात-आठ दशक पुराना है। यहां पहले पथवारी थी। टीआइ बोस ने यहां मंदिर की स्थापना कराई। मंदिर परिसर में स्कूल भी संचालित है। मंदिर में प्रतिदिन देवी के दर्शन को श्रद्धालु पहुंचते हैं। शारदीय नवरात्र में बंगाली समाज का दुर्गा पूजा उत्सव मंदिर में होता है। चार दिवसीय उत्सव में बंगाली रीति-रिवाजों से पूजा-अर्चना की जाती है।

कैसे पहुंचें

मंदिर मुख्य बाजार में है। यहां साईं की तकिया, आगरा कैंट स्टेशन, प्रतापपुरा चौराहे से होते हुए आसानी से पहुंचा जा सकता है। 


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