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Sharad Purnima 2020: एक नहीं तीन वजहों से है शरद पूर्णिमा का दिन खास, जानिए क्यों दिया गया है प्रेम पर्व नाम

Sharad Purnima 2020 शरद पूर्णिमा के दिन तीन महत्वपूर्ण महोत्सव घटित होते हैं-कौमुदी महोत्सव कोजागरी और रासलीला। इनमें से कौमुदी महोत्सव मनुष्य का प्रेमपर्व है। कोजागरी पर्व के रूप में इसे धन प्राप्ति के लिए मनाया जाता है।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Tue, 27 Oct 2020 03:04 PM (IST)Updated: Tue, 27 Oct 2020 03:04 PM (IST)
Sharad Purnima 2020: एक नहीं तीन वजहों से है शरद पूर्णिमा का दिन खास, जानिए क्यों दिया गया है प्रेम पर्व नाम
30 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा का पर्व सनातन धर्म के अनुयायी मनाएंगे।

आगरा, तनु गुप्ता। 30 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा का पर्व सनातन धर्म के अनुयायी मनाएंगे। खीर का भोग, व्रत, पूजन के साथ इस पर्व को मनाया जाएगा लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस यह दिन बस इतने भर विधान के लिए ही नहीं जाना जाता। इस एक दिन को तीन विशेष कारणाें से भी जाना जाता है। आस्था, भक्ति भाव के अतिरिक्त शरद पूर्णिमा पर प्रेम भाव भी महत्वपूर्ण होता है। इसी कारण इसे कौमुदी महोत्सव जिसे प्रेम पर्व कहते हैं भी मनाया जाता है। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन तीन महत्वपूर्ण महोत्सव घटित होते हैं-कौमुदी महोत्सव, कोजागरी और रासलीला। इनमें से कौमुदी महोत्सव मनुष्य का प्रेमपर्व है। कोजागरी पर्व के रूप में इसे धन प्राप्ति के लिए  मनाया जाता है। लक्ष्मी की कामना के लिए लोग मां लक्ष्मी का पूजन करते हैं। रात्रि जागरण करते हैं। घर के दरवाजे खुले रखते हैं।  वहीं इस दिन पर होने वाली रास लीला परमात्मा और जीवात्मा का प्रेमपर्व है। इसके अतिरिक्त भी शरद पूर्णिमा को एक और महत्वपूर्ण कर्म घटित होता है जो विश्व संस्कृति में कहीं अन्यत्र नहीं घटित होता। आकाशदीपदान। 

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क्या है कौमुदी महोत्सव

पंडित वैभाव जोशी बताते हैं कि सनातन धर्म में प्रेम की परिभाषा वर्तमान के प्रेम से बिल्कुल भिन्न है। यह पर्व संदेश देता है कि आई लव यू जैसे शब्द प्रेम को सिर्फ दूषित ही करते हैं। यदि प्रेम को समझना है तो पहले मैं और तुम यानि आई और यू को हटाना होगा। कौमुदी महोत्सव प्रेम का पर्याय है और इसमें साधारण मनुष्य के प्रेम कलाप प्रकट होते हैं। प्राचीन भारतवर्ष में शरद पूर्णिमा के दिन यह महोत्सव मनाया जाता था। मगध राज्य का यह राजकीय महोत्सव था। पाटलिपुत्र से लेकर राज गिर तक का राजमार्ग (सड़क) बंदनवार,अभ्रक,चूना से सज्जित कर दिया जाता था। इत्र से सुवासित पुष्प सूंघने के लिए पुष्पपात्र में रखे रहते थे। शीतल पेय सर्वत्र उपलब्ध रहता था। युवक और युवतियां अपने प्रेम का उद्गार प्रकट करते थे। विवाहित जोड़े अलग होते थे। उनका मंच अलग होता था। प्रेम प्रस्ताव रखने के लिए बने मंच अलग होते थे। यह राष्ट्रीय महोत्सव होता था।  कौमुदी महोत्सव की प्रतीक्षा युवा वर्ग वर्ष पर्यन्त करता था। इसमें उध्दतता की पराकाष्ठा होती थी। कहीं- कहीं खड्ग भी चमक उठते थे। साज श्रृंगार का चरम आलोक दिखता था। युवक युवती से कहता था- भावयामि। युवती कहती थी- परिभावयामि। भावयामि  का अर्थ है "मैं तुझेआत्मा की गहराई से चाहता हूं। तुम मेरा अस्तित्व हो। सत्ता हो। पूर्णता हो। भावयामि।" परिभावयामि का अर्थ है "मैं तुझे और अधिक चाहती हूं।तुम से ज्यादा मैं तुझे प्रेम आच्छादन देती हूं।"

ये हैं अंतर आई लव यू और भावयामि में 

आई लव यू में तीन तत्व हैं आई, यू और लव। इनमें आई में अपनी पहचान बनाये रखने की जिद्द है और यू में अपनी। कोई झुकने को तैयार नहीं है। बेचारा लव दोनों के झगड़े के बीच में पिस कर दम तोड़ देता है। वह प्रेम कैसा जिसमें एक दूसरे से श्रेष्ठ दिखने का भाव बना रहे। इसके विपरीत भावयामि में केवल शुद्ध प्रेम है। प्रेम का अस्तित्व है। न आई है न यू है केवल प्रेम है, लगाव है। जबसे फिल्मी दुनिया ने भारत में अपना कारोबार शुरू किया भारत को बेचा। विद्रूप किया। फिल्मी दुनिया को इलू इलू ही भाता रहा। "भावयामि" अति प्राचीन शब्द है।  


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