स्वतंत्रता के संघर्ष में जेल भी गए थे शंकराचार्य
शारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद ने काटी थी सजा, स्वत्रतंता आंदोलन में लिया था बढ़-चढ़कर भाग
आगरा (विपिन पाराशर): शारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद को कौन नहीं जानता। इन दिनों वह वृंदावन में चातुर्मास कर रहे हैं। उनकी गिनती सनातन धर्म के सबसे बड़े चार स्तंभों में है। बहुत कम लोगों को यह जानकारी होगी कि वह स्वतंत्रा संग्राम के दौरान जेल भी गए थे। उन्होंने दो महीने नजरबंदी और छह महीने की कड़ी सजा काटी।
बात वर्ष 1942 की है। 18 वर्षीय स्वरूपानंद बनारस के पास रामपुर की संस्कृत पाठशाला में अध्ययन कर रहे थे। वहां सत्संग को आने वाले ग्रामीणों से उनकी दुर्दशा का पता चला। इसी दौरान गांधी जी ने 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' और 'करो या मरो' का नारा दिया। हजारों युवाओं पर इसका असर हुआ। वह भी साथियों के साथ स्वतंत्रता के इस यज्ञ में कूद पड़े। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल सहित कई नेताओं को आगा खां महल में बंद कर दिया गया। तमाम झूठे आरोप लगाए गए। जनता गुस्से में थी ऐसे में स्वरूपानंद जी साथी साधुओं के साथ आंदोलन में कूद पड़े। करीब सात दिन तक संघर्ष कर रामपुर को स्वतंत्र करा लिया। शंकराचार्य बताते हैं कि उस क्षेत्र के केस तक हमारे पास आने लगे। जानकारी पर अंग्रेज अधिकारी आए और फिर दमनचक्र चला, घरों में आग लगा दी गई। ऐसे में वह साथियों के साथ गाजीपुर और फिर पटना होते हुए बनारस पहुंचे। यहां उन्हें क्रान्तिकारियों ने एक मठ में रखा। वह यहां बनारस को स्वतंत्र कराने की योजना बनाने लगे। रणनीति के तहत एक दिन साथियों संग तोड़ने के लिए कर्मनाशा का पुल देखने पहुंचे, वहीं गिरफ्तार कर लिया गया। दो महीने नजरबंद रखा गया। एक महीने तक मुकदमा चला। षडयंत्र रचने, तोड़-फोड़ और लूटपाट करने का आरोप लगा छह महीने की कड़ी सजा हुई। जेल में उन्हें सी क्लास में रख बहुत यातनाएं दी गई। इस तरह वह एक मात्र शंकराचार्य हैं, जिन्होंने देश के स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय योगदान दिया।