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अद्भुत आभा के वसंत पंचमी पर फिर होंगे दर्शन, भक्‍तों के लिए खुलेगा ये विशेष कमरा Agra News

हिंदू मुस्लिम सद्भाव की मिसाल है वृंदावन का शाहजी मंदिर। वर्ष में बस दो ही दिन दर्शन।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Fri, 24 Jan 2020 01:19 PM (IST)Updated: Fri, 24 Jan 2020 11:09 PM (IST)
अद्भुत आभा के वसंत पंचमी पर फिर होंगे दर्शन, भक्‍तों के लिए खुलेगा ये विशेष कमरा Agra News
अद्भुत आभा के वसंत पंचमी पर फिर होंगे दर्शन, भक्‍तों के लिए खुलेगा ये विशेष कमरा Agra News

आगरा, जेएनएन। वसंत पंचमी यानि 29 जनवरी को वृंदावन के शाहजी मंदिर में दो दिन के लिए वसंती कमरा खुलेगा। मंदिर के वसंती कमरे में बेशकीमती झाड़-फनूसों के बीच ठा. राधारमणलाल जू जब भक्तों को दर्शन देंगे तो भक्त आल्हादित हो उठेंगे। रंगबिरंगी रोशनी शोभा बढ़ाएगी। मंदिर के ऊंचे-ऊंचे टेड़े खंभे और मुंडेरों पर रोमन व इटेलियन शैली का प्रतिविंब श्रद्धालुओं को रिझाएगा। साल में दो बार ही खुलने वाले इस वसंती कमरे के दर्शन को देशभर से लाखों श्रद्धालु वृंदावन आते हैं।

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सभी छह ऋतुओं में वसंत को ऋतुराज यूं ही नहीं कहा जाता। दसों दिशाएं उल्लास और उमंग से संचारित हो उठती हैं। वसंत ऋतु आते ही ब्रज में प्राकृतिक खूबसूरती के साथ ही आस्था की हिलोरें चरम पर होती हैं। और, श्रद्धा के इसी समंदर में शाह जी मंदिर का वसंती कमरा भी अपने लखनवी शान और वृंदावन के अतुल्य वैभव से चमकने-दमकने लगता है।

29 जनवरी वसंत पंचमी पर जब भक्तों के लिए यह कमरा खुलेेेेगा तो हर भक्‍त के मुंह से एक ही शब्‍द निकलेगा बेमिसाल। बेशकीमती झाड़- फनूस, विशाल गोलाकार दीवार और रोमन शैली को जीवंत करतीं सखियों के बीच बसंती कमरे में स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान ठा. राधारमणलालजू ने भक्तों को दर्शन देंगे। वसंत पंचमी पर शाहजी मंदिर में बसंती कमरे की भव्यता को देखने श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है। नवाबी अंदाज में विराजमान ठाकुरजी के दर्शन कर भक्त निहाल होते हैं तो वसंती कमरे की भव्यता भी उन्हें आकर्षित करती है। झाड़- फनूस के बीच झिलमिल होती रोशनी का प्रभाव आकर्षण बढ़ाता है । मंदिर के बाहर भी आकर्षक विद्युत सजावट श्रद्धालुओं को खुद ब खुद आकर्षित करती हैं। कमरे में प्रवेश करते ही बासंती प्रकाश दिल को ऋतुराज बसंत के आगमन का संदेश देता है।

क्या है इतिहास

करीब डेढ़ सौ साल पहले लखनऊ के नबाव शाह फुंदनलाल और शाह कुंदनलाल को भक्तिभाव में वृंदावन में एक ऐसा मंदिर बनाने की प्रेरणा मिली जो सबसे अलग नजर आए। ऐसा मंदिर जिसमें ठाकुर जी के प्रति अगाध आस्था तो उमड़े ही, लखनवी नजाकत और नफासत भी परिलक्षित हो। पूरी रूपरेखा तय होने के बाद आखिर वर्ष 1983 में शाहजी का अद्भुत और अनुपम मंदिर तैयार हो गया। स्वामी हरिदासजी की साधना स्थली और ठा. बांकेबिहारीजी की प्राकट्य स्थली निधिवन राज मंदिर के समीप स्थापित ये मंदिर वास्तुकला का तो बेजोड़ नमूना है ही, वसंती श्रंगार से दमकता कमरा भी आज तक अपनी भव्यता बिखेर रहा है।

चौंकाते हैं टेड़े खंभे, लुभाते हैं झाड़-फानूस और दर्पण

शाहजी मंदिर के संगमरमरी टेड़े खंभों के कारण इसे श्रद्धालु 'टेड़े खंभे' के नाम से भी जानते हैं। खास बात ये है कि इन खंभों में कोई जोड़ नहीं है। मुंडेरों पर रोमन व इटेलियन शैली का प्रतिविंब झलकता है। वसंती कमरे में अनेक रंगों के झाड़-फानूस, कलात्मक दर्पण, सुनहरी दीवार है। विशाल गोलाकार छत पर चंदोबा की पच्चीकारी, ऊपर चारों ओर से विभिन्न मुद्राओं में झांकती 12 सखियां कमरे की शोभा को चार चांद लगा रही हैं। मंदिर में दर्पण एवं झाड़-फानूस पर जब विद्युत प्रकाश पड़ता है, तो वसंती छटा खुद ही बिखरती दिखाई देती है।

दो बार खुलता है वसंती कमरा

वसंत पंचमी के अलावा सावन के महीने में त्रयोदशी(रक्षाबंधन)को भी वसंती कमरा खुलता है।

डेढ़ सौ वर्षों में कुछ नहीं बदला

निर्माण से अब तक मंदिर या वसंती कमरे के स्वरूप में कोई बदलाव नहीं किया गया। झाड़-फानूस, मूर्ति-श्रंगार सामग्री पुरानी ही है। हां, दर्शन के लिए कमरा खोलने से एक सप्ताह पहले साफ-सफाई जरूर की जाती है।

हिंदू- मुस्लिम सद्भाव की भी मिसाल

मंदिर में लखनऊ के नबाव वाजिद अली शाह का टोपी लगाए सखी भेष में भित्ती चित्र है। ये चित्र हिंदू- मुस्लिम सदभाव का जीवंत उदाहरण पेश कर रहा है। मंदिर के निर्माणकर्ता दोनों भाई शाह कुंदनलाल व शाह फुंदनलाल ने अपने चित्र दीवार पर न बनवाकर संगमरमर के फर्श पर बनवाए। उनकी भावना थी कि मंदिर में आने वाले रसिकों, ब्रजवासियों की चरणरज उड़कर उनके चित्रों पर पड़ती रहे।


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