Save the Life: आगरा के जैन समाज की अनूठी पहल, बलि से बचाने को खरीद रहे बकरे
Save the Life सकल जैन समाज ने शुरू किया अनोखा अभियान। रामलाल आश्रम में बकरों का बाड़ा बनाया गया।
आगरा, जागरण संवाददाता। सकल जैन समाज सिर्फ अहिंसा परमो धर्म और जीवदया-महादया जैसी बातें ही नहीं करता, बल्कि उन बातों को सार्थक भी कर रहा है। भगवान श्री नेमिनाथ के जन्म कल्याणक के पावन अवसर पर मूक पशुओं को बचाने का एक अनोखा अभियान शुरू किया गया है, ताकि उनकी जान बचाई जा सके। इसके लिए समाज ने बलि के लिए बेचे जा रहे बकरों को खरीदने की शुरुआत की है। राजकुमार जैन ने बताया कि आगरा विकास मंच के परम संरक्षक डॉ. आरएस पारीक की प्रेरणा से यह अभियान शुरू किया गया है। इसमें रोज कारपेट और उनकी माता गुलाब देवी का भी योगदान है। रामलाल आश्रम में बकरों का बाड़ा बनाया गया है, जहां अब तक 20 बकरे लाए जा चुके हैं। जहां बकरों को रखकर तीर्थंकर भगवान श्री नेमिनाथ के जन्म कल्याणक के अवसर पर उनकी बलि रोकने का प्रयास है। बकरों की सुरक्षा, पालन-पोषण एवं संरक्षण की योजना रामलाल वृद्ध आश्रम में शुरू कर दी गई है। बकरी के दूध से होगा इलाज आगरा विकास मंच के संयोजक सुनील कुमार जैन और अरविन्द शर्मा गुड्डू ने बताया कि बकरों के साथ बकरी भी खरीदी जा रही हैं। बकरी का दूध दवा की तरह प्रयोग किया जाता है, कई बीमारियों की यह रामबाण दवा है। मंच प्रवक्ता संदेश जैन और महामंत्री सुशील जैन व सुनील कुमार जैन ने बताया कि यह अपने आप में अनोखा अभियान है। जितना संभव हो सकेगा, जीवों को बलि देने से बचाया जाएगा।
कुर्बानी का असली मतलब
विद्वानों ने इस किस्से की व्याख्या में यह लिखा है कि हजरत इब्राहिम का यह कर्म उनके जज्बे को दर्शाता है और व्यक्ति का यही जज्बा खुदा तक पहुंचता है न कि किसी जानवर की कुर्बानी। कुरान में आता है कि खुदा तक तुम्हारी कुर्बानी नहीं पहुंचती बल्कि पहुंचती है व्यक्ति की परहेजगारी (22:37)। हज और ईद-उल-अजहा हजरत इब्राहिम और उनके परिवार द्वारा दी गई स्वयं की इच्छाओं की कुर्बानी को याद करने का ही दूसरा नाम है। आज कई महीनों से पूरा विश्व कोविड-19 से दिन-रात लड़ रहा है। जिसके चलते इस बार उतनी बड़ी संख्या में लोग हज नहीं अदा कर पाएंगे जैसा हर साल करते थे। सऊदी अरब के हज मंत्रालय का कहना है कि इस साल लगभग 1,000 हजयात्रियों को ही हज करने की अनुमति दी जाएगी, जो संख्या गत वर्षो में लगभग पचीस लाख थी। मंत्रालय का कहना है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य को संरक्षित करने के उद्देश्य से यह फैसला लिया गया है। इस्लामिक आस्था से जुड़े इतने महत्वपूर्ण पर्व पर इतना बड़ा फैसला लेना सऊदी सरकार के लिए कोई छोटी बात नहीं थी।आज भारत में रह रहे मुस्लिम समुदाय के नेतृत्व को भी दरकार है कि स्वयं सरकार के साथ मिलकर समाज में इस बात को रखें कि इस साल लोग कुर्बानी की कुर्बानी करें। कुर्बानी का असल भाव जो हजरत इब्राहिम से हमें मिलता है हम हर स्थिति में स्वयं को ढाल लें और शिकायत करने से बचें। आज महामारी के चलते अनेक परिवारों की आर्थिक स्थिति बिगड़ चुकी है। बेहतर होगा कि हम कुर्बानी में खर्च होने वाले पैसों को इस साल ऐसे परिवारों तक पहुंचाएं। यही सच्चे मायने में इस साल सभी की कुर्बानी होगी।