BSP: ब्रज में बोले सतीशचंद्र मिश्र, सत्ता में आए तो गठित होगा संत सुरक्षा आयोग
BSP श्यामाश्याम धाम वृंदावन में शुक्रवार को कार्तिक पूर्णिमा पर बसपा महासचिव ने संत महंतों संग भोजन कर अपने पक्ष में रिझाकर मजबूती देने का किया आह्वान। विधानसभा चुनाव में ब्राह्मणों को साधने की जिम्मेदारी उठा रहे बसपा के राष्ट्रीय महासचिव।
आगरा, जागरण टीम। विधानसभा चुनाव में ब्राह्मणों को साधने की जिम्मेदारी उठा रहे बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीशचंद्र मिश्र ने कार्तिक पूर्णिमा पर शुक्रवार को संत, महंतों का पूजन कर पार्टी के पक्ष में उन्हें साधने के भरसक प्रयास किए। मिश्र ने संतों के समक्ष कहा कि हमारी सरकार बनी तो संत सुरक्षा आयोग का गठन होगा। संस्कृत विद्यालयों को मजबूत बनाने के साथ उनकी संख्या में इजाफा करने का काम होगा। सनातन धर्म को बचाने व मजबूत करने का काम करेंगे। संतों, धर्माचार्यों का आशीर्वाद मिला तो आयोग तो छोटी बात है, मंदिरों की सुरक्षा, देखरेख, पूजा-पाठ करने वाले वेदपाठियों, पुजारियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी हम बखूबी उठाएंगे। कहा, आज कुछ दल अकेले श्रीराम की बात करते हैं। जबकि हम कहते हैं राम को सीता से अलग क्यों कर दिया गया, उन्हें श्रीराम के साथ सीताजी को भी याद रखना चाहिए।
श्यामाश्याम धाम में शुक्रवार को कार्तिक पूर्णिमा पर संतों के सान्निध्य में पहुंचे बसपा महासचिव सतीशचंद्र मिश्र ने कहा वे यहां राजनीति करने नहीं आए हैं। हम तो कार्तिक पूर्णिमा पर विप्रों, धर्माचार्यों और संतों का आशीर्वाद लेने और ठा. बांकेबिहारीजी का पूजन करने के लिए आए हैं। कहा जब 2007 जब हम सत्ता में आए तो वृंदावन की हालत बदतर थी। परिक्रमा मार्ग की दुर्दशा, जल, सीवर की लाइनें नहीं थीं। हमने साढ़े तीन सौ करोड़ की समग्र विकास योजना दी और सभी व्यवस्थाएं श्रद्धालुओं और स्थानीय लोगों के लिए करवाईं। इसके बाद हमने अयोध्या, काशी में भी विकास के अनेक कार्य करवाए। काशी के अस्सी घाट का सुंदरीकरण हमने सत्ता में रहते करवाया।
मिश्र ने कहा, जब हम बसपा से जुड़े तो लोगों ने कहा गलत पार्टी में पहुंच गए हैं। हर जगह मनु स्मृति की चर्चा होती थी। कहा मनुस्मृति में शरीर को चार भागों में बांटा गया है, इसका विरोध है। शरीर को मनुस्मृति में चार भागों में बांटा गया है। सिर को ब्राह्मण बताया गया है और पैरों को शूद्र की परिभाषा दी गई है। जबकि हमारी सनातन संस्कृति में है कि किसी बड़े से मिलने के दौरान सबसे पहले उनके पैस छूते हैं और अपने मस्तक पर लगाते हैं। ऐसे में पैरों को अधिक सम्मान दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सनातन संस्कृति की बात करने वालों की सरकार में संस्कृत विद्यालयों की संख्या आधी रह गई है। जब विद्यालय ही नहीं होंगे, तो वेदपाठी ब्राह्मण और पूजाचार्य कहाँ से होंगे। इसके साथ ही मिश्र ने कार्यक्रम में मौजूद संतों, धर्माचार्यों का शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया और फिर संतों संग जमीन पर बैठकर भोजन किया। इस दौरान संत भी गदगद नजर आए।