संघ अब संतों से कराएगा राष्ट्र जागरण, संघ प्रमुख का यही है एजेंडा Agra News
देशभर के 10 लाख संतों के जरिए उठाए जाएंगे कोर इश्यूज। हर पंथ और संप्रदाय के संतों तक पकड़ बनाने की हुई शुरूआत।
आगरा, जेएनएन। बीते दिनों वृंदावन आए मोहन भागवत का संतों से मिलना अनायास नहीं है। आरएसएस की निगाह अब सनातनी संतों के साथ कबीर और दलित पंथी संतों पर है। देशभर में ऐसे 10 लाख संतों को अपने प्रभामंडल में लाने को आरएसएस आगे काम करेगा। संघ का मानना है कि उच्च वर्ण के संतों से साथ दलित चेतना के संतों का भी उन्हें साथ मिलना चाहिए।
राम मंदिर के बहाने धर्म जागरण करते रहे संतों को अब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ राष्ट्र जागरण के काम में लगाएगा। सर संघचालक मोहन भागवत ने इसकी शुरूआत कर दी है। संत संघ के कोर इश्यू्ज पर राष्ट्र चेतना को जगाएंगे और संघ इस बहाने मतदाताओं के उस बड़े वर्ग को भी साधेगा, जो अब तक उससे और भाजपा की पहुंच से दूर रहे हैं।
वृंदावन के वात्सल्य ग्राम में हाल ही में संघ की सामाजिक सद्भाव गतिविधि की दो दिवसीय मंथन बैठक हुई। इस सात सत्रीय बैठक में संघ प्रतिनिधियों को जाति-बिरादरियों में आपसी सामंजस्य का पाठ पढ़ाने के बाद अगला दिन संघ प्रमुख ने संतों के बीच ही गुजारा।
संघ के सर संघचालक मोहन भागवत पहले भी वृंदावन आते रहे हैं, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ जब उन्होंने ताबड़तोड़ एक के बाद एक संतों से मुलाकात की और उन्हें संबोधित किया। वह सबसे पहले गुरु शरणानंद आश्रम गए, फिर संत ज्ञानानंद महाराज से मिले और अंत में सुदामा कुटी गए। यहां संत सुदामा दास महाराज की 14वीं पुण्य स्मृति के मौके पर सुदामा कुटी में देशभर के संत मौजूद रहे। उन्होंने यहां कश्मीर में धारा 370 जल्द हटने का आश्वासन दिया।
दरअसल, संघ के एक अंदरूनी सर्वे के अनुसार देशभर में सभी पंथ और संप्रदायों के करीब 10 लाख संत हैं। संघ अब उन्हें धर्म जागरण के साथ-साथ राष्ट्र जागरण के काम में लगाना चाहता है। उनके जरिए जनता के बीच कई कोर इश्यू उठाए जाएंगे, जिनमें धारा 270, 35 ए, जनसंख्या नियंत्रण व समान नागरिक संहिता आदि प्रमुख मुद्दे होंगे।
उसकी एक दूसरी मंशा भी है। देशभर का अनुसूचित वर्ग खासकर दलित और पिछड़ों में यादवों का न तो संघ में कोई खास प्रतिनिधित्व है और न ही वे भाजपा का वोटर हो सके हैं। संघ कई ऐसे पंथों और संप्रदायों की मदद से उन्हें साधेगा। इनमें कबीर पंथी हों या बौद्ध संत अथवा नाथ संप्रदाय आदि। संघ के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार संतों के माध्यम से राष्ट्र चेतना का काम आसान हो जाएगा और यह हर जाति वर्ग में निचले पायदान तक पहुंच सकेगा। आने वाले समय में मजबूत हिंदुत्व और संगठित समाजों के जरिए ही राष्ट्र चेतना आगे बढ़ सकेगी।
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