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जिन पर थी जिम्‍मेदारी उन्‍हीं ने बढ़ा दी कालिंदी की पीर, ये रहे कारण Agra News

सुप्रीम कोर्ट टीटीजेड अथॉरिटी के आदेशों पर नहीं किया अमल। सुप्रीम कोर्ट अनुश्रवण समिति सदस्य के सुझाव भी नहीं माने गए।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Wed, 08 Jan 2020 05:34 PM (IST)Updated: Wed, 08 Jan 2020 05:34 PM (IST)
जिन पर थी जिम्‍मेदारी उन्‍हीं ने बढ़ा दी कालिंदी की पीर, ये रहे कारण Agra News
जिन पर थी जिम्‍मेदारी उन्‍हीं ने बढ़ा दी कालिंदी की पीर, ये रहे कारण Agra News

आगरा, जागरण संवाददाता। यमुना बदहाल है। कोर्ट के आदेशों पर अफसरों ने खानापूर्ति की। बैठकें रंगीन और कागज काले होते रहे। यमुना में बदस्तूर सीवरेज और गंदे नाले गिरते रहे। सिसकती यमुना की पीर समय-समय पर रिपोर्टों में उजागर हुई। ताज ट्रेपेजियम जोन (टीटीजेड) और सुप्रीम कोर्ट अनुश्रवण समिति की बैठकों में दावे हुए, मगर सफेद झूठ के दावों को हकीकत की कसौटी पर किसी ने न परखा। वर्ष 1993 में यमुना एक्शन प्लान शुरू होने के बाद 26 वर्षों में यमुना की दशा सुधार को करोड़ों रुपये बहाने के बावजूद उसकी पीर हरने की बजाय बढ़ा दी गई है। इससे दुनिया के सात अजूबों में शुमार ताजमहल ही नहीं, शहर भी सिसक रहा है।

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यमुना का पानी अब पीने व नहाने लायक तो छोडि़ए, शोधन लायक भी नहीं रहा है। उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की जनवरी से नवंबर, 2019 तक यमुना जल के सैंपलों पर आधारित रिपोर्ट ने यमुना की दुर्दशा को उजागर कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के 30 दिसंबर, 1996 के आदेश से 1997 में अस्तित्व में आई टीटीजेड अथॉरिटी की बैठकों में समय-समय पर यमुना में गदंगी का मुद्दा तो उठता रहा, लेकिन उसके समाधान को कुछ नहीं हो सका। सुप्रीम कोर्ट अनुश्रवण समिति के सदस्य रमन के ककरैठा मॉडल के सुझाव को उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा सराहने के बावजूद कुछ नहीं किया गया।

टीटीजेड अथॉरिटी की बैठकों में हुए आदेश

-28 जुलाई, 2007 को भरतपुर में राष्ट्रीय सरसों अनुसंधान केंद्र में टीटीजेड अथॉरिटी की बैठक में बताया गया कि आगरा में पीक आवर्स में टैप्ड नाले भी ओवरफ्लो कर जाते हैं। मंटोला नाले की प्रभावी टैपिंग नहीं होने से यमुना में प्रदूषित सीवेज निस्तारित हो रहा है। मंटोला नाले की समस्या आज भी जस के तस है।

-पांच दिसंबर, 2017 को टीटीजेड अथॉरिटी की बैठक में यमुना नदी में गिरने वाले नालों पर चर्चा हुई। निर्देश दिए गए कि नगर निगम व जल निगम संयुक्त अध्ययन कर यमुना में सीधे गिरने वाले नालों के लिए ककरैठा मॉडल के अनुरूप कार्य योजना तैयार करें। इस दिशा में आज तक कुछ खास नहीं किया जा सका है।

गंदगी में ही पनपता है गोल्डीकाइरोनोमस

यमुना की गंदगी में ही कीड़ा गोल्डीकाइरोनोमस पनपता है। यह ताज की सतह पर हरे व भूरे रंग के दाग छोड़ता है। इससे ताज की छवि खराब होती है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट में सुझाए गए उपायों पर आज तक अमल नहीं किया गया है।

ककरैठा मॉडल

ककरैठा, गैलाना और उसके समीप विकसित आठ कॉलोनियों से निकलने वाले नाले यमुना को कलुषित करते थे। नालों के पानी को रोकने को यहां यमुना आद्र्र विकास योजना में वन विभाग ने काम किया। चेकडैम बनाकर उनकी ओर नालों का रुख मोड़ा गया। यहां गंदे पानी के शोधन को टाइफा और कैरी के पौधे लगाए गए। इससे यहां नालों का पानी यमुना में जाने से तो रुका ही, क्षेत्र में हरियाली बढ़ी।

क्‍या कहते हैं यमुना के प्रहरी

यमुना पर सुप्रीम कोर्ट के दिए आदेशों का भी पालन नहीं कराया जा रहा है। जनप्रतिनिधि और अफसर सो रहे हैं। शहरवासी भी उदासीन हैं। ऐसी स्थिति में यमुना की यह दशा तो होनी ही है। मेरे ककरैठा मॉडल के सुझाव को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सराह चुके हैं, लेकिन उस पर भी विचार नहीं किया जा रहा है। जबकि उसके संचालन पर कोई व्यय भी नहीं होगा।

-रमन, सदस्य सुप्रीम कोर्ट अनुश्रवण समिति

यमुना की दशा किसी से छुपी नहीं, वो नदी न रहकर गंदा नाला बन चुकी है। उसमें पानी के नाम पर केवल सीवर बह रहा है। समय-समय पर यमुना जल के सैंपलों की रिपोर्ट से यह स्थिति उजागर हो चुकी है। आधे-अधूरे नाले टैप किए गए हैं। यमुना मे ऐसे कई चोर नाले गिर रहे हैं, जिनका कहीं कोई रिकॉर्ड नहीं है। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से छोड़ा जा रहा शोधित जल भी काफी हानिकारक है।

-डॉ. शरद गुप्ता, पर्यावरणविद 


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