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खुली किताब: कहीं का ईंट, कहीं का रोड़ा, भानमती ने कुनबा जोड़ा Agra News

जागरण विशेष कॉलम खुली किताब में शिक्षा विभाग के अंदरूनी मामलेे हुए हल्‍के फुल्‍के अंदाज में उजागर।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sun, 19 Jan 2020 06:46 PM (IST)Updated: Sun, 19 Jan 2020 06:46 PM (IST)
खुली किताब: कहीं का ईंट, कहीं का रोड़ा, भानमती ने कुनबा जोड़ा Agra News
खुली किताब: कहीं का ईंट, कहीं का रोड़ा, भानमती ने कुनबा जोड़ा Agra News

आगरा, संदीप शर्मा। बीएसए दफ्तर में एक और कारनामा गुल खिला रहा है। विभाग से पेंशन और ग्रेच्युटी भुगतान की एक विवादित फाइल गायब है। यह वही फाइल है जिसने रिटायरमेंट के आखिरी दिन बेसिक शिक्षा सचिव की कोर्ट अवमानना में व्यक्तिगत पेशी करा दी थी। उनका शासन से प्रस्तावित सेवा विस्तार भी टल गया था। तत्कालीन व पूर्व बीएसए को निलंबन का दंश झेलना पड़ा था। मामला निस्तारण तक पहुंचने से पहले ही विभागीय कलाकारों ने उक्त फाइल एक बार फिर गुम कर दी। शासन ने दोबारा मामला संज्ञान में लिया तो आनन-फानन में फाइल की तलाश शुरू हुई, लेकिन फाइल न मिली। इस पर अधिकारी ने नाराजगी दिखाई, जिसके बाद इधर-उधर से कागज जुटाकर फाइल दोबारा तैयार की गई। कोर्ट से लेकर शासन तक भी दौड़ लगाई, जिसे देखकर हर कोई कहता फिर रहा है कि कहीं का ईंट, कहीं का रोड़ा, भानमती ने कुनबा जोड़ा।

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साहब बीमार, कर्मचारी मुस्तैद

माध्यमिक शिक्षा विभाग वाले साहब बीमार हैं, इसलिए छुïट्टी पर चल रहे हैं। उनकी अनुपस्थिति में इन दिनों कार्यालय में रामराज्य का अहसास हो रहा है। उपस्थिति रजिस्टर देखो तो सबके हस्ताक्षर समय से दर्ज होते हैं। लगता है कि उनके पीछे हर कोई अपनी जिम्मेदारी मुस्तैदी से निभा रहा है। लेकिन, हकीकत उस समय सामने आ जाती है, जब कार्यालय के साक्षात दीदार किए जाएं। यहां कुछ एक को छोड़कर हर सीट पर सन्नाटा पसरा नजर आता है। आलम यह है कि बड़े से लेकर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी तक मनमानी से कार्यालय आते हैं, जो आते हैं वह धूप सेकने छत पर चले जाते हैं। कार्यालय के कमरों पर ताले लटके नजर आते हैं। यह स्थिति तब है, जब मंडल वाले साहब दो बार छापेमारी कर सभी को उपस्थित रहने की चेतावनी दे चुके हैं, लेकिन आदत है कि सुधरने का नाम नहीं लेती है।

साहब का पता लापता

पाठशाला वाले नए साहब को समझने की विभागीय कर्मचारी जी-तोड़ कोशिशों में जुटे हैं। उनके घर का पता तलाशने की कोशिशें की जा रही हैं, लेकिन हर बार नाकामी हाथ लगती है। सारथी से पूछा, तो उसने भी हाथ खड़े कर दिए। हैरानी तब हुई, जब पता चला कि सारथी को भी नहीं पता कि अधिकारी का निवास कहां है। साहब बीच सड़क से गाड़ी में सवार होते हैं और वहीं उतर जाते हैं, इसके बाद घर तक अकेले ही जाते हैं। उनके व्यवहार का ही असर है कि तैनाती के दो महीने बाद भी साहब के पैरामीटर मातहतों की समझ में नहीं आ पा रहे। अधिकारी को सांचे में ढालने में महारत रखने वाले मातहत भी हैरान-परेशान हैं और उनका ध्यान अपनी तरफ मोडऩे का हर तोड़ तलाशते नजर आ रहे हैं। लेकिन, पता तलाशने का इंतजार खत्म होने की जगह हताशा बढ़ा रहा है।

मॉनीटरिंग की चाहिए कमान

इंटर कॉलेज वाले विभाग की अग्निपरीक्षा नजदीक है। तीसरी आंख के साथ हाईटेक तकनीक का जोड़ इसमें अचूक सफलता दिलाने की गांरटी समझा जा रहा है। साथ में मंडल वाले साहब का खौफ भी तैयारियों में नजर आ रहा है। इसका ही नतीजा है कि इस बार उड़ती टीम का हिस्सा बनना सरकारी स्कूल वाले अधिकारी को रास नहीं आ रहा। लिहाजा, अपने कारखास की सलाह पर उन्होंने तीसरी आंख के सहारे निशाना लगाने की योजना बनाई है। प्लानिंग का एक चरण सफलता पा चुका है, अब दूसरे हिस्से में उसकी जिम्मेदारी भी अपने कंधों पर लेने की जोड़-तोड़ जारी है, ताकि चिठ्ठी- पत्री भेजकर अपने प्रभाव से फील गुड किया जा सके। लेकिन, मामला मंडल वाले साहब की नजर में है और वह अंतिम समय पर नए प्लान की लांचिंग कर सकते हैं। चर्चा है कि इसी कारण एक अधिकारी लंबी छुïट्टी पर चले गए हैं। 


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