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वाकई आगरा किला में दबी हैं भगवान श्रीकृष्ण की मूर्तियां, जानिए क्या है इसके पीछे का सच

मथुरा की अदालत में दायर श्रीकृष्ण जन्मस्थान वाद में दिया गया है प्रार्थना पत्र। दीवान-ए-खास स्थित छोटी मस्जिद की सीढ़ियों में मूर्तियों के दबे होने का किया है दावा। सच का पता लगाने को एएसआइ से उत्खनन कराने की मांग की गई है।

By Nirlosh KumarEdited By: Published: Sun, 04 Apr 2021 12:08 PM (IST)Updated: Sun, 04 Apr 2021 12:08 PM (IST)
वाकई आगरा किला में दबी हैं भगवान श्रीकृष्ण की मूर्तियां, जानिए क्या है इसके पीछे का सच
आगरा किला एक बार फिर चर्चाओं में आ गया है।

आगरा, जागरण संवाददाता। मथुरा में सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में दायर श्रीकृष्ण जन्मस्थान वाद में दिए गए एक प्रार्थना-पत्र से नई बहस छिड़ गई है। श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन समिति के अध्यक्ष अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह द्वारा आगरा किला के दीवान-ए-खास स्थित छोटी मस्जिद की सीढ़ियों में भगवान श्रीकृष्ण व अन्य विग्रहों की मूर्तियां दबे होने का दावा किया गया है। इससे लोग कयास लगा रहे हैं कि आगरा किला में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्तियां कब दबाई गईं। हालांकि, इतिहासकार इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते हैं। उनका इस बारे में अलग मत है।

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श्रीकृष्ण जन्मस्थान वाद में गुरुवार को अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह ने एक प्रार्थना पत्र दिया था। उन्होंने औरंगजेब द्वारा मथुरा के केशवदेव मंदिर को ध्वस्त कर वहां की रत्नजड़ित प्रतिमाओं, भगवान श्रीकृष्ण व अन्य विग्रहों को आगरा किला के दीवान-ए-खास की छोटी मस्जिद की सीढ़ियों में दबाने की बात कही थी। उन्होंने अदालत से मांग की थी कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) या अन्य सक्षम संस्था से वैज्ञानिक ढंग से अन्वेषण कराकर प्रतिमाएं निकलवाई जाएं। वहां से निकली प्रतिमाओं को श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर के किसी भाग में सुरक्षित रखवाया जाए। इस प्रार्थना पत्र पर 19 अप्रैल को सुनवाई होनी है। अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह के इस दावे के बाद इतिहास को लेकर नई बहस छिड़ गई है। इतिहासकार आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव ने अपनी पुस्तक 'मुगलकालीन भारत' में लिखा है कि औरंगजेब के काल में काशी का विश्वनाथ और मथुरा का केशवदेव मंदिर ढहा दिए गए। देश के कोने-कोने में प्रसिद्ध हिंदुओं के तीर्थस्थानों के इस प्रकार विध्वंस से हिंदुओं में आतंक छा गया। औरंगजेब ने ऐसी जगहों पर दारोगा तैनात किए, जहां मंदिरों व मूर्तियों को तोड़ा जा रहा था। देश के सभी प्रांतों से मूर्तियाें को तोड़कर गाड़ियों में भरकर दिल्ली और आगरा लाया गया। उन्हें दिल्ली, आगरा व अन्य शहरों की जामा मस्जिदों की सीढ़ियों के नीचे दबा दिया गया।

इतिहासकार एसआर शर्मा अपनी पुस्तक 'भारत में मुगल साम्राज्य' में लिखते हैं कि औरंगजेब के कट्टरतापूर्वक कार्यों की झलक उसके प्रशंसक इतिहासकारों की पुस्तकों में मिलती है। 'मआसिर-ए-आलमगीरी' में लिखा है कि मंदिरों की रत्नजड़ित मूर्तियों को आगरा मंगवाया गया और बेगम साहिब की मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे रखा गया। मथुरा का नाम बदलकर इस्लामाबाद रखा गया। वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि बेगम साहिब की मस्जिद जहांआरा द्वारा आगरा में बनवाई गई जामा मस्जिद ही है। आगरा किला में मूर्तियां दबाए जाने का उल्लेख नहीं मिलता।

छोटी मस्जिद के नाम से संरक्षित नहीं है कोई स्मारक

आगरा किला के दीवान-ए-खास में छोटी मस्जिद के नाम से कोई स्मारक नहीं है। आगरा किला में भी इस नाम से संरक्षित कोई स्मारक नहीं है। दीवान-ए-खास के पास मीना मस्जिद जरूर है, जिसे शहंशाह शाहजहां ने व्यक्तिगत उपयोग के लिए बनवाया था। यह मस्जिद बहुत छोटी है। मस्जिद में पहुंचने को करीब 10 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। यह मस्जिद पर्यटकों के लिए एएसआइ ने बंद कर रखी है।


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