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तंत्र के गणः पढ़ें ताज की नगरी आगरा के उन स्थलों के बारे में जो देते हैं सद्भावना का संदेश

तंत्र के गणः शेख सलीम चिश्ती की दरगाह पर मन्नत मांगने आते हैं सभी धर्मों के लोग। हजारों लोगों की पूरी होती हैं मनोकामनाएं। अबुल उलाह दरगाह व हजरत ख्वाजा सैय्यद शेख फतेहउद्दीन बल्की की दरगाह हैं सदभाव की मिसाल।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Mon, 24 Jan 2022 12:46 PM (IST)Updated: Mon, 24 Jan 2022 12:46 PM (IST)
तंत्र के गणः पढ़ें ताज की नगरी आगरा के उन स्थलों के बारे में जो देते हैं सद्भावना का संदेश
फतेहपुर सीकरी स्थित शेख सलीम चिश्ती की दरगाह।

आगरा, जागरण संवाददाता। आगरा को सुलहकुल नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यहां सदभाव और समरसता के एक नहीं बल्कि कईं स्थल हैं। जहां पर सभी धर्मों के लाेग श्रद्धा के साथ लोग अपने शीश नवाते हैं। मन्नत मांगने और उसके पूरा होने पर हर दिन, महीने और साल यहां पर नियमित रूप से आते हैं।

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फतेहपुर सीकरी में शेख सलीम चिश्ती की दरगाह

फतेहपुर सीकरी शेख सलीम चिश्ती की दरगाह है। चिश्ती के आर्शीवाद से बादशाह अकबर को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी। उनके नाम पर ही अकबर ने बेटे का नाम सलीम रखा। जो बाद में जहांगीर के नाम प्रसिद्ध हुआ।मुगल बादहशाह अकबर ने सलीम चिश्ती की समाधि का निर्माण सन 1580 से 1581 के दाैरान करवाया था। पूरा स्मारक लाल पत्थर का है, लेकिन चिश्ती की दरगाह में बादशाह जहांगीर ने सफेद संगमरमर के पत्थर लगवाया था। यह दरगाह वास्तुकला एवं धर्म निरपेक्षता का प्रतीक है। हर साल यहां पर दुनिया भर से सभी धर्मों के लाखों लोग आते हैं। कुछ अपनी मन्नत मांगने तो कई अपनी मुराद पूरी जगह यहां बांधा गया धागा खोलने के लिए।

हजरत सैय्यदना शाह अमीर अबुल उला

न्यू आगरा स्थित हजरत सैय्यदना शाह अमीर अबुल उला की दरगाह भी 16वीं सदी से सामाजिक समरसता का प्रतीक बनी हुई है। उनका पूरा जीवन महान संत के रूप में प्रचार करने में व्यस्त रहा। वर्ष 1652 ईस्वी में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। दरगाह के सज्जादानशीन सैयद मोहतशिम अली अबुल उलाई बताते हैं दरगाह आपसी भाईचारे और माेहब्बत की एक खूबसूरत मिसाल है।हजरत सैय्यदना का उर्स 382 साल से मनाया जा रहा है। जहां हर विश्व के विभिन्न हिस्सों से लाखों श्रद्धालु हर साल आते हैं। हर मजहब काू मानने वाले एक साथ प्रार्थना करते हैं।

हजरत ख्वाजा सैय्यद शेख फतेहउद्दीन बल्की

आगरा क्लब में स्थित हजरत ख्वाजा सैय्यद शेख फतेहउद्दीन बल्की की दरगाह भी 400 साल से भी अधिक समय से सदभाव और समरसता का स्थल बनी हुई है। हजरत ख्वाजा शेख कुछ समय चिश्ती की दरगाह पर भी रहे। इसके बाद यहां आ गए, दुनिया से अलविदा कहने के बाद यहां पर ही उनकी दरगाह बनाई गई। यहां आने वाले सभी धर्मों के लोगों की मान्यता है कि हजरत ख्वाजा सैय्यद शेख फतेहउद्दीन बल्की हयातुल वली हैं, जो लोगों की बातों और उनकी परेशानियों को समझते हैं। उनकी परेशानियों को दूर करते हैं। सज्जादानशीन हाजी इमरान अली शाह कहते हैं यहां पर आने वाले नेता-अभिनेता समेत सभी धर्म के लोग उनके प्रति समान श्रद्धा रखते हैं।सुलहकुल


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