ंसांकरी खोर की चट्टानें..जहां आज भी कान्हा फोड़ते हैं सखियों की मटकियां
बरसाना चिकसोली के मध्य स्थित है सांकरी खोर। द्वापर कालीन लीला का मंचन जीवंत करता है अलौकिक वातावरण।
आगरा(जेएनएन): ग्वालिन दै जा हमारौ दान, यही दान के कारण छोड़ आयौ बैकुंठ सौ धाम..जी हां, हजारों वर्ष बाद आज भी यहां कान्हा बृज की गोपियों संग लीला करते हैं। कृष्ण यहां आज भी अपनी धरती से दूध, दही और माखन मथुरा जाने नहीं देते हैं।
मथुरा जिले में चिकसोली- बरसाना के बीच स्थित साकरी खोर। द्वापर युग में कान्हा ने यहां से कंस की नगरी मथुरा में दूध- दही बेचने जा रही सखियों से अपना दान मागा था। आज भी यह लीला राधाष्टमी मेला के ठीक पाच दिन बाद होती है। कलाकार द्वापरयुगीन पलों को फिर से जीवंत करती हैं। इस बार यह लीला 22 सितंबर को होगी।
क्या है सांकरी खोर: ब्रजभूमि के कण- कण में राधा- कृष्ण की दिव्य लीलाओं का इतिहास मिलता है। बृषभानु दुलारी के निज धाम बरसाना में भी ऐसी तमाम जगह है, जहा आज भी राधा- कृष्ण की तमाम लीलाएं कृष्णकाल की यादें सहेजे हैं। ऐसी एक जगह है साकरी खोर, जहा भगवान श्रीकृष्ण ने दूध दही बेचने की कुप्रथा को रोकने के लिए दान लीला की थी। सांकरी खोर पर राधा व कृष्ण नामक दो पहाड़ियां आपस मे मिलती हैं। यह स्थल इतना सकरा है कि एक ही व्यक्ति यहा से निकल सकता है। आज भी इस पहाड़ी पर मटकी फोड़ने के चिन्ह व लाठी के चिन्ह दिखाई देते हैं। राधाष्टमी से ठीक पाच दिन बाद तेरस को इस स्थान पर दान व मटकी फोड़ लीला का आयोजन किया जाता है। इस प्राचीन स्थल पर राम मंदिर व रासबिहारी मन्दिर बना हुआ है।
दो रास्ते है जाने को: उक्त प्राचीन स्थल साकरी खोर में जाने को दो रास्ते बने हुए हैं। एक रास्ता बरसाना की छोटी परिक्रमा से तथा दूसरा चिकसोली गाव में होकर जाता है। जीवंत हो जाता है द्वापर युग: साकरी खोर की गली में कान्हा ने चिकसोली की चित्रा सखी व उसकी अन्य सखियों से दान मागा था। दान न देने पर कान्हा ने सभी की मटकी फोड़ दी थी। आज भी यह लीला भाद्र सुदी की तेरस को जीवंत हो उठती है।
- हरीश श्रोत्रिया, स्थानीय निवासी
अपरंपार लीला हैं कान्हा की: उक्त प्राचीन स्थल पर भगवान श्रीकृष्ण की दान लीला हुई थी। एक दान लीला तो दूसरी चोटी बन्धन लीला। दान लीला में भगवान ने गोपियों से दान मागा तथा चोटी बन्धन लीला में भगवान की चोटी पेड़ से बाधकर सखियों ने उनकी पिटाई की थी।
- रामशरण दास महंत, रासबिहारी मन्दिर