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जरूरी है ये खबर, ध्‍यान रखें लाड़ले का, कहींं मोबाइल का गेम बना दे उसे ‘सेडिस्ट’ Agra News

मनोचिकित्सकों के पास लगी अभिभावकों की भीड़। गेम खेलकर भूले हंसी। अंधेरे कमरे में गेम खेलते हैं स्कूल जाने से हैं कतराते। दूसरों को तकलीफ देने में आ रहा मजा।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Wed, 09 Oct 2019 03:27 PM (IST)Updated: Wed, 09 Oct 2019 08:32 PM (IST)
जरूरी है ये खबर, ध्‍यान रखें लाड़ले का, कहींं मोबाइल का गेम बना दे उसे ‘सेडिस्ट’ Agra News
जरूरी है ये खबर, ध्‍यान रखें लाड़ले का, कहींं मोबाइल का गेम बना दे उसे ‘सेडिस्ट’ Agra News

आगरा, जागरण संवाददाता। पबजी ने यंगस्टर्स को क्रेजी कर दिया है। यह बात सबको पता है। देश भर में पबजी खेलने वाले युवाओं ने कई आपराधिक घटनाएं भी की हैं, यह भी सबको जानकारी है। लेकिन पबजी ने युवाओं की हंसी छीन ली है। यही नहीं पबजी के कारण युवा ‘सेडिस्ट’ भी बन गए हैं। मनोचिकित्सकों के पास इन शिकायतों के साथ अभिभावकों की भीड़ पहुंच रही है।

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पबजी ने बनाया दीवाना

पबजी यानि प्लेयर अननोंस बैटलग्राउंड साउथ कोरिया की कंपनी ब्लूहोल की सहायक कंपनी पबजी कॉरपोरेशन द्वारा तैयार किया गया ऑनलाइन गेम है। इस गेम को एक साथ कई प्लेयर्स खेलते हैं। नौ फरवरी 2018 से भारत में लॉंच हुए इस गेम ने भारतीय युवाओं को अपना दीवाना बना दिया है। 24 घंटों में से 18-20 घंटे युवा पबजी खेलने में निकाल रहे हैं।

अपराधिक घटनाओं को दिया अंजाम

पबजी के दीवानों ने कई आपराधिक घटनाओं को अंजाम दिया है। पिछले कुछ महीनों में देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसी की घटनाएं हुईं जो पबजी खेलने वालों से जुड़ी हैं। इनमें अपने अभिभावकों का कत्ल करना, अपने बूढ़े माता-पिता को सड़क पर दौड़ा कर पीटना, अपने टीचर को चाकू मारनी जैसी घटनाएं चौंकाने वाली हैं।

युवा भूल चुके हैं अपनी हंसी

पबजी खेलने वालों का दिमाग हमेशा बैटलग्राउंड पर रहता है। वो अपने विपक्षी को हराने की जुगाड़ में ही दिमाग लगाते रहते हैं। गेम में हारने पर अपना गुस्सा अपने घरवालों पर निकालते हैं। हर समय गेम में दिमाग रहने के कारण टेंशन में रहते हैं। घर के एक कमरे में चुपचाप गेम खेलते रहते हैं। सामाजिक दुनिया से बिल्कुल अपना नाता खत्म कर दिया है। घरवालों से बात भी नहीं करते।

सेडिस्ट बन रहे हैं युवा

सेडिस्ट यानि वो लोग जिन्हें दूसरों को तकलीफ में देकर मजा आता है। पबजी में होने वाली लड़ाई से युवाओं में यह प्रवृत्ति बढ़ रही है। मनोचिकित्सक डा. केसी गुरनानी बताते हैं कि उनके पास रोज 5-7 ऐसे अभिभावक अपने बच्चों की शिकायत लेकर आ रहे हैं, जिसमें बच्चे अपने घरवालों को परेशान कर रहे हैं। अगर घर में पालतू जानवर हैं तो उन्हें भी मारते हैं। ऐसे-ऐसे बहाने खोजते हैं, जिससे परिवार वालों और पड़ोसियों को तकलीफ हो। इस तकलीफ में वे मजा लेते हैं।

पबजी ने छुड़ाया स्कूल भी

ऐसे कई युवा हैं, जो पबजी के कारण स्कूल से ही छुट्टी ले लेते हैं। स्कूलों में अटेंडेंस कम हो रही है। पढ़ाई में ध्यान नहीं देते। होमवर्क अधूरा रहता है। एग्जाम में परसेंटेज पर भी फर्क पड़ रहा है। शिक्षक हरेंद्र शर्मा बताते हैं कि स्कूलों में कई बार बच्चे मोबाइल ले आते हैं। चेकिंग में मोबाइल मिल जाते हैं। पूछने पर बताते हैं कि पबजी खेलने का टाइम सेट था, इसलिए मोबाइल स्कूल ले आए।


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