Article15: पिक्चर रिलीज होते ही फटे पोस्टर, जानिए क्या है संविधान का ये अनुच्छेद Agra News
ब्राहृमण समाज कर रहा फिल्म में कुछ सीन हटाने की मांग। फिल्म रिलीज होते ही हॉल पर पहुंचे ब्राहृमण समाज के लोग। विरोध देख तैनान हुई पुलिस फोर्स।
आगरा, जागरण संवाददाता। संवेदनशील विषय पर बनी फिल्म आर्टिकल 15 के रिलीज होते ही ब्राहृमण समाज ने विरोध किया। मॉल के बाहर मूवी के पोस्टर जलाए, बडी संख्या में पुलिस फोर्स पहुंच गया। ब्राहृमण समाज ने मूवी में उनके समाज को लेकर दिखाए गए सीन को हटाने की मांग की है।
आयुष्मान खुराना अभिनीत मूवी आर्टिकल 15 शुक्रवार को रिलीज होने से पहले ब्राहृमण समाज ने विरोध किया। सुबह कॉसमॉल मॉल स्थित गोल्ड सिनेमा के बाहर आर्टिकल 15 मूवी के पोस्टर जलाए। डॉ मदन मोहन शर्मा ने कहा कि मूवी में कई सीन और डायलॉग ऐसे हैं जिसमें ब्राह्मण समाज की अच्छी छवि एवं प्रतिष्ठा को धूमिल किया जा रहा है जिससे हिंदू समाज और हिंदू समाज के अन्य जातियों में ब्राह्मण समाज के प्रति वैमनस्यता फैल रही है आज के युग में बॉलीवुड ब्राह्मण को पाखंडी बनिए को ठग एवं राजपूत को गुंडे के रूप में प्रदर्शित कर रहा है जो कि हिंदू समाज के लिए और उसके अच्छी छवि के लिए बहुत ही निराशाजनक बात है। ब्राह्मण जो कि अपना पूजा पाठ कर के सभी धर्मों एवं समुदाय में शांति की प्रार्थना करता है लेकिन इस मूवी में ब्राह्मण समुदाय को बलात्कारी दुराचारी आदि बताया गया है जिससे कि ब्राह्मण समुदाय की छवि को धूमिल किया जा रहा है। 30 मई को आर्टिकल 15 मूवी का टीजर एवं ट्रेलर रिलीज किया गया था। मूवी में ब्राह्मण समाज को बलात्कारी एवं दुराचारी बताया गया है जो कि हिंदू समाज की सभी जातियों के बीच में भेदभाव वैमनस्यता पैदा करता है।
संवदेनशील विषय पर बनी है फिल्म
आयुष्मान खुराना की फिल्म 'आर्टिकल 15' का ट्रेलर आज रिलीज हो गया है। इस ट्रेलर में एक ऐसे मुद्दे को उठाया गया है जो फिल्मों के लिए ज्यादातर अछूत ही रहा है। यह कहानी सच्ची घटना पर आधारित है, देश में किस तरह से जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव किया जाता है और किस तरह से निचले तबके के लोगों के लिए जीना मुश्किल होता है, इस फिल्म में इसे ही दिखाया गया है। इस फिल्म का निर्देशन 'मुल्क' बनाने वाले निर्देशक अनुभव सिन्हा ने किया है।
क्या है आर्टिकल 15
संविधान में अनुच्छेद होते हैं, और 15 वां अनुच्छेद ही आर्टिकल 15 है। संविधान के आर्टिकल 15 के मुताबिक आप किसी भी व्यक्ति से धर्म, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेद-भाव नहीं कर सकते हैं।
- राज्य, किसी नागरिक से केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी भी आधार पर किसी तरह का कोई भेद-भाव नहीं करेगा।
- किसी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर किसी दुकान, सार्वजनिक भोजनालय, होटल और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों जैसे सिनेमा और थियेटर इत्यादि में प्रवेश से नहीं रोका जा सकता है। इसके अलावा सरकारी या अर्ध-सरकारी कुओं, तालाबों, स्नाघाटों, सड़कों और पब्लिक प्लेस के इस्तेमाल से भी किसी को इस आधार पर नहीं रोक सकते हैं।
- यह अनुच्छेद किसी भी राज्य को महिलाओं और बच्चों को विशेष सुविधा देने से नहीं रोकेगा।
- इसके अलावा यह आर्टिकल किसी भी राज्य को सामाजिक या शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई विशेष प्रावधान बनाने से भी नहीं रोकेगा।
पहले भी बन चुकी हैं इस विषय पर फिल्में
सुजाता
साल 1959 में 'सुजाता' नाम की फिल्म आई थी। इस फिल्म के निर्माता और निर्देशक बिमल रॉय थे। इस फिल्म में सुनील दत्त और नूतन लीड रोल में थे। यह फिल्म भारत में प्रचलित छुआछूत की कुप्रथा को दर्शाती है। इस फ़िल्म की कहानी एक ब्राह्मण पुरुष और एक अछूत कन्या के प्रेम की कहानी थी। इस फिल्म को फिल्मफेयर में सर्वश्रेष्ठ फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
अछूत कन्या
अछूत कन्या 1936 में रिलीज हुई थी। इस फिल्म की कहानी ऊंची जाति के लड़के (अशोक कुमार) और नीची जाति की लड़की (देविका रानी) के प्रेम संबंध पर आधारित थी। उस दौर में इस प्रकार के विचारशील मुद्दे पर बनी इस फिल्म को महात्मा गांधी द्वारा भी सराहा गया था।