बंदिशों ने थाम दिए जूता उद्योग के कदम, इन कारणों से थमा है ताजनगरी का प्रमुख उद्योग Agra News
टीटीजेड की पाबंदियां उद्योगों की नई कैटेगरी जीएसटी ने बढ़ाईं मुश्किलें।
आगरा, निर्लोष कुमार। देश के कुल जूता निर्यात में 28 फीसद और घरेलू बाजार में 60 फीसद की भागीदारी रखने वाले आगरा के जूता उद्योग के कदम बंदिशों ने थाम दिए हैं। ताज ट्रेपेजियम जोन (टीटीजेड) के कारण आगरा में नई इकाई की स्थापना नहीं हो सकती। किसी इकाई का विस्तार भी नहीं किया जा सकता। वर्ष 2016 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा उद्योगों की नई कैटेगरी जारी होने से पूर्व जूता उद्योग ग्रीन कैटेगरी में था। नई कैटेगरी में टीटीजेड को वाइट कैटेगरी में रखा गया, जबकि जूता ग्रीन कैटेगरी में ही रहा। उद्यमी कहते हैं कि यहां ग्रीन कैटेगरी में शामिल उद्योग नहीं लगाया जा सकता।
वर्तमान में एक हजार रुपये तक के जूते पर पांच फीसद व उससे अधिक के जूते पर 18 फीसद जीएसटी है। कंपोनेंट्स पर 28 फीसद तक जीएसटी है। अलग-अलग स्लैब होने से छोटे कारोबारियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उद्यमी इसे घटाकर अधिकतम 12 फीसद करने की मांग कर रहे हैं। चमड़े की अनुपलब्धता भी जूता उद्योग के लिए प्रमुख समस्या है। चमड़े के दाम समय-समय पर उतार-चढ़ाव से प्रभावित होते हैं, इससे लागत बढ़ जाती है।
सरकार दे सकती है राहत
आगरा फुटवियर्स मैन्यूफैर्स एंड एक्सपोर्ट चैंबर के अध्यक्ष पूरन डावर कहते हैं कि प्रदेश सरकार को जूता उद्योग ग्रीन कैटेगरी से वाइट में कराने की पैरवी करनी चाहिए। जीएसटी की दरों में कमी कराने के मुद्दे को भी जीएसटी काउंसिल में रखना चाहिए। लेबर पॉलिसी को राजनीति से दूर रखा जाए। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को धरातल पर साकार किया जाए। विदेश में नए बाजारों की खोज की जाए। काउंसिल फॉर लेदर एक्सपोर्ट के रीजनल चेयरमैन नजीर अहमद कहते हैं कि सरकार बिजनेस पार्क बनाए और उद्यमियों को सस्ती जमीन उपलब्ध कराए। कैपिटल कॉस्ट कम की जाए। सस्ती ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराया जाए।
जूता मंडी में सस्ती हों दुकानें
नाॉर्मल कंपाउंड के पास एडीए ने मायावती सरकार में जूता मंडी बनाई थी। इसमें दुकानें काफी महंगी होने से जूता कारोबारी आए ही नहीं, जिससे दुकानें खाली पड़ी हैं। जूता कारोबारियों की मांग पर प्रमुख सचिव सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम नवनीत सहगल ने दुकानों की लागत का आकलन करने के निर्देश दिए हैं। लागत मूल्य पर ही दुकानें जूता कारोबारियों को दी जानी हैं। इस पर शासन को प्राथमिकता के आधार पर निर्णय करना चाहिए।