'जहरीली गैस' से कोख में खलबली, सात माह के हो रहे प्रसव, जानिये क्या है वजह
समय पूर्व प्रसव के केस 20 फीसद तक पहुंचे 40 फीसद शिशु की हो रही मौत। एसएन में हो रहा शोध प्लेसेंटा और ब्लड में मिले पॉली साइक्लिक एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन।
आगरा, अजय दुबे। हवा में घुलीं जहरीली गैसें कोख के लिए भी घातक साबित हो रही हैं। इन गैसों से सात महीने पर (समय पूर्व) प्रसव हो रहे हैं। वायु प्रदूषण के ये हालात प्रसूता और शिशु के लिए जानलेवा होने लगे हैं।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के लिए एसएन मेडिकल कॉलेज के फोरेंसिक और स्त्री रोग विभाग द्वारा वर्ष 2016 से गर्भवती महिलाओं में जहरीली गैस (पॉली साइक्लिक एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन, पीएएच) के दुष्परिणामों पर शोध हो रहा है। यह वर्ष 2019 में पूरा होना है। इसमें चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। शोधार्थी चारुल शर्मा ने बताया कि एसएन में छह से नौ महीने के होने वाले प्रसव को शोध में शामिल किया गया है। ऐसे 100 केस में ब्लड और प्लेसेंटा (नाल) के सैंपल लिए गए। इसकी जांच में पीएएच बढ़ी हुई मात्रा में मिले हैं (ये शरीर में शून्य होने चाहिए)। ये जहरीले हाइड्रोकार्बन सांस के जरिए खून में घुलने के बाद गर्भाशय में पहुंच रहे हैं। प्लेसेंटा के माध्यम से ये गैसें गर्भस्थ शिशु में पहुंच रहीं हैं। इससे गर्भस्थ शिशु का विकास नहीं हो रहा है, गर्भाशय भी प्रभावित हो रहा है। इसी कारण से छह से आठ महीने पर ही प्रसव हो रहे हैं। एसएन में पिछले तीन सालों में समय पूर्व प्रसव 15 से 20 फीसद तक बढ़ गए हैं। निजी अस्पतालों में तो ये आंकड़ा 25 फीसद तक पहुंच गया है। हालांकि इसमें वायु प्रदूषण के साथ ही टेस्टट्यूब बेबी भी एक बड़ा कारण है।
40 फीसद की मौत, ब्रेन हेमरेज और दिल में छेद
छह से नौ महीने के 35 से 40 शिशु हर महीने एनआइसीयू में भर्ती हो रहे हैं। इनमें फेफड़े विकसित न होने, दिल में छेद, ब्रेन हेमरेज और पीलिया से ग्रसित, आंतों में संक्रमण की समस्या होती है। इन शिशु को एनआइसीयू में आठ से 15 दिन तक रखना पड़ रहा है। 26 से 30 सप्ताह के शिशुओं में 40 फीसद की मौत हो जाती है। अन्य बच्चों का भी शारीरिक और मानसिक विकास सही तरह से नहीं हो रहा है।
शहर में वाहन और कूड़ा, गांव में चूल्हा हुआ घातक
फोरेंसिक विभागाध्यक्ष डॉ. अजय अग्रवाल बताते हैं कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में अलग-अलग तरह का वायु प्रदूषण है। शोध में शहरी क्षेत्र में सड़क किनारे रहने, कूड़ा जलने और धूमपान करने से पीएएच हवा में घुल रहा है। जबकि देहात में लकड़ी का चूल्हा घातक साबित हो रहा है।
ये हैं पॉली साइक्लिक एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन
आंबेडकर विवि में रसायन विभाग के प्रोफेसर डॉ. अजय तनेजा ने बताया कि वाहनों का धुआं, चूल्हे, पॉलीथिन और कूड़े को जलाने से पॉली साइक्लिक एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन वातावरण में पहुंच रहे हैं। पानी में भी यह मिल रहा है। इसमें 16 तरह के हाइड्रोकार्बन होते हैं, यह शरीर के लिए घातक हैं।
बचाव के लिए ये करें
कूड़ा न जलाएं, ईंधन में एलपीजी का इस्तेमाल करें। घर में धूमपान न करें। नई तकनीकी वाले वाहनों से प्रदूषण कम भी हो रहा है।
समय पूर्व प्रसव के ये भी हैं कारण
- गर्भ में दो और दो से अधिक शिशु होना।
- बच्चेदानी का मुंह कमजोर होना
- इन्फेक्शन होना
- गर्भवती को पौष्टिक आहार ना मिलना, खून और विटामिन की कमी
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
26 से 37 सप्ताह के बीच होने वाले समय पूर्व प्रसव में पीएएच मिले हैं। इससे गर्भ में शिशु का सही तरह से विकास नहीं हो रहा है। यह प्रसूता और शिशु दोनों के लिए घातक है।
- डॉ. सरोज सिंह, विभागाध्यक्ष स्त्री रोग विभाग एसएन मेडिकल कॉलेज
एनआइसीयू में 80 फीसद समय पूर्व प्रसव के शिशु भर्ती हो रहे हैं। 26 से 30 सप्ताह के शिशु में 40 फीसद की मौत हो रही है। 30 सप्ताह से अधिक के शिशु बच जाते हैं लेकिन संक्रमण का खतरा रहता है।
- डॉ. नीरज यादव, नवजात शिशु रोग विशेषज्ञ
भारत में समय पूर्व प्रसव के केस 27 फीसद तक पहुंच चुके हैं। वायु प्रदूषण, इन्फेक्शन, जुड़वा बच्चे होने से समय पूर्व प्रसव हो रहे हैं। इससे बचाव और इलाज के लिए विश्व स्तर पर शोध कार्य किए जा रहे हैं।
- डॉ. जयदीप मल्होत्रा, पूर्व अध्यक्ष फोग्सी