इंटरनेट के दौर ने छीनी चिट्ठियों की आत्मीयता
खुशी का पत्र ले जाते थे तो इनाम भी मिलता था पहले मिलता था अपनापन अब उसकी जगह ले ली लेटर बॉक्स ने
आगरा, जागरण संवाददाता।
इंटरनेट के इस दौर ने जहा डाक पर लोगों की निर्भरता कम की है, वहीं डाक कर्मियों का मानना है कि अब उन्हें काम करने में न तो लोगों से पहले जैसी आत्मीयता मिलती है और न ही किसी तरह का आनंद। सब कुछ यंत्रवत हो गया है।
पिछले दो दशक से डाक बांटने वाले पोस्टमैन विनोद सोलंकी की माने तो पहले की बात और थी। लोगों को अपनी चिट्ठी का इंतजार रहता था। हम डाक लेकर जाते थे। जिस मोहल्ले में हमें डाक बाटना होता था वहा हमारी अच्छी पहचान हो जाती थी। कई बार तो हम ही चिट्ठी पढ़कर सुनाते थे। हमें इतना अपनापन मिलता था कि मत पूछिए। बुजुर्ग हमें साथ बिठा कर चाय पिलाते थे। अब तो डाक भी बहुत कम हो गई है और अपार्टमेंट के बाहर लगे लेटरबॉक्स में लिफाफा डाल दिया जाता है।
डाक विभाग में पोस्टमैन के पद पर अपनी सेवाएं देने के बाद प्रतापपुरा क्षेत्र से सेवानिवृत्त हो चुके हेत सिंह, बाबू लाल, राधेश्याम कहते हैं ''वह समय और था। हम कहने को डाकिया थे लेकिन तब हम लोगों के सुख-दुख के साथी होते थे। किसी के यहा निधन के समाचार का पत्र पहुंचाते समय हम भी दुखी हो जाते थे। खुशी का पत्र ले जाते थे तो इनाम भी मिलता था। इसके अलावा, त्योहारों पर हमें इनाम मिलता था। इसे रिश्वत नहीं कहा जा सकता बल्कि यह केवल भावनाओं का प्रतीक होता था। वे कहते हैं ''हमने सारी उम्र साइकिल से डाक बाटी। ठंड हो, गर्मी हो या बरसात, हम नहीं रुकते थे। हेत सिंह बताते है कि आज मेरे नाती पोते इंटरनेट पर चेटिंग करते हुए बातचीत कर डालते हैं। चिट्ठी की कोई जरूरत ही नहीं बची। राखिया भेजने के लिए अलग से व्यवस्था होती है। लेकिन अब तो राखिया भी इंटरनेट से भेज दी जाती हैं। सब कुछ बदल गया। टेलीग्राम की तरह मनी ऑर्डर भी बना इतिहास
इन डाककर्मियों की मानें तो जज्बात और दिलों से जुड़े तार (टेलीग्राम) टूटने के बाद डाक विभाग की 141 साल पुरानी परंपरा अब समाप्त हो गई है। 1880 से अपने घरवालों को पैसे भेजने का जरिया रही मनी ऑर्डर सेवा को डाक विभाग ने बिना शोर-शराबे के एक अप्रैल 2013 से बंद कर दिया है। वर्ष 2012 में टेलीग्राफ सेवा भी बंद की जा चुकी है। मनी ऑर्डर सेवा के बंद होने का मुख्य कारण शहरों के साथ गावों में भी मोबाइल बैंकिंग से इंटरनेट बैंकिंग तक का सक्रिय होना है। डाक विभाग ने लोगों को अच्छी व तेज गति से नकद स्थानातरण सुविधा देने के लिए इंस्टेंट मनी ऑर्डर (आईएमओ) और इलेक्ट्रानिक मनी ऑर्डर (ईएमओ) सेवा शुरू की है। उनका हाल भी सही नहीं है। अब ईएमओ और आईएमओ सुविधा से चल रहा काम
विनोद सोलंकी की माने तो परंपरागत मनी ऑर्डर सेवा बंद होने के बाद ईएमओ और आईएमओ सुविधा से काम चल रहा हैं। दोनों में ही परंपरागत सेवा से अधिक तेज और आसानी से धन भेज सकते हैं। इस सेवा के तहत एक हजार से 50,000 रुपये तक राशि भेजी जा सकती है। पैसे भेजने वाले व्यक्ति को अपने पहचान के प्रमाण के साथ एक डाकघर चयनित करना होता है। वहा ऑनलाइन फार्म के लिए पैसे प्राप्त करने वाले व्यक्ति से संबंधित सूचनाएं देनी होती है। पैसा ट्रासफर होने के बाद जमा करने वाले व्यक्ति के मोबाइल या ईमेल पर एक कोड आता है, जिसे उसे पैसे प्राप्त करने वाले व्यक्ति को देना होता है। कोड और पहचान पत्र के साथ संबंधित व्यक्ति डाकघर पहुंचकर पैसा प्राप्त कर सकता है।
वहीं, ईएमओ भारतीय डाक विभाग की डोर स्टेप सेवा है, यानी 24 घटे के भीतर आपके घर पर पैसे पहुंच जाते है, इसके जरिये एक दिन में एक से पाच हजार रुपये भेजे जा सकते हैं। पैसे भेजने वाले व्यक्ति निर्दिष्ट डाकखानों पर जाकर इस सुविधा का लाभ उठा रहे है। ब्रिटिश काल का है आगरा का डाकघर
प्रतापपुरा स्थित प्रधान डाकघर अंग्रेजों द्वारा बनवाए गए उन भवनों में शामिल है जिनका मूल स्वरूप आज भी बरकरार है। यह भवन निर्माण के एक शतक बाद भी सार्वजनिक सेवा के लिए उपयोग में लाया जा रहा है। माल रोड स्थित डाकघर का निर्माण 1913 में हुआ था। अब इसकी गिनती देश के उन गिने-चुने पोस्ट ऑफिस में है जो एक शताब्दी बाद भी उसी काम के लिए इस्तेमाल हो रहे हैं, जिसके लिए इनका निर्माण हुआ था। कुछ समय के लिए इसका प्रयोग जिले के आयात निर्यात मुख्य कार्यालय के रूप में जरूर किया गया। डाक विभाग का यह परिसर 1, 89, 975 वर्ग फुट में है। उसमें से 19, 500 फुट में इमारत बनी हुई है। इंग्लिश भवन निर्माण कला के अनुसार सामने के दोनों ओर समरूपता वाले दो पोर्च हैं। मुख्य भवन, मध्य के बड़े हॉल तथा दोनों ओर अपेक्षाकृत छोटे व समान आकार के हॉल में बने हैं। मुख्य गुंबद 45 फुट ऊंची है। इसके अलावा यहा एक पुराना लेटर बॉक्स है। उसे मुख्य लॉन में पुरावशेष के रूप में संरक्षित कर लगाया गया है। आगरा से है पुराना रिश्ता
आगरा का पोस्टल विभाग से पुराना रिश्ता है। भारतीय डाक सेवा में पोस्ट मास्टर जनरल की कुर्सी तक पहुंचने वाले पहले भारतीय राय सालिगराम ने 1881 में इस पद का दायित्व संभाला था। उनको राधास्वामी अनुयायी हजूर महाराज के नाम से जानते हैं। आगरा में डाक सेवा की शुरुआत छह जून 1835 को हुई थी। तब यह पोस्ट ऑफिस उन 267 पोस्ट ऑफिसों में शामिल था जो बंगाल के पोस्ट मास्टर जनरल के अधीन था। 1939 से आगरा का पोस्ट आफिस 55 अन्य के साथ नार्थ वेस्टर्न पोस्टल प्रोविंस के पीएमजी के तहत आ गया।