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सरहद पर तैनाती, राखी पर सूनी कलाई देख बहन बहुत याद आती

जागरण ने जानीं रक्षाबंधन पर पूर्व सैनिकों की स्मृतियां।

By JagranEdited By: Published: Sun, 29 Jul 2018 11:20 AM (IST)Updated: Sun, 29 Jul 2018 11:23 AM (IST)
सरहद पर तैनाती, राखी पर सूनी कलाई देख बहन बहुत याद आती
सरहद पर तैनाती, राखी पर सूनी कलाई देख बहन बहुत याद आती

आगरा(जागरण संवाददाता): रक्षाबंधन के त्योहार का महत्व क्या है, ये जानना है तो कोई उन सैनिकों से पूछे जो सरहद पर तैनात हैं। पूरे साल उन्हें राखी के रूप में बहन के प्यार का इंतजार रहता है। कई बार तो राखी पहुंच ही नहीं पाती और कलाई सूनी रह जाती है। जागरण ने रक्षाबंधन के महत्व को लेकर सेवानिवृत्त सैनिकों से बात की।

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बाह क्षेत्र के गांव परतापुरा के राजकुमार यादव 1986 में सेना में भर्ती हुए थे। राजकुमार की चार बहनें हैं कुसुमा देवी, अनीता, विनीता और सरला। राजकुमार बताते हैं कि हमारे समय में मोबाइल नहीं थे। तब घर-परिवार की चिट्ठी ही आती थी। हर हाल परिवार की पाती से ही पता चलता था। चारों बहनें रक्षाबंधन पर राखी भेजना नहीं भूलती थीं। तब राखी डाक से आती थी। डाक भी इतनी लेट-लतीफ कि समय से पहुंचना ही मुश्किल होता था। ऐसे में रक्षाबंधन के 15 दिन पहले ही बहनें राखी भेजती थीं। कई बार त्योहार से कई दिन पहले ही राखी की डाक मिल गई। खुशी इतनी होती कि हमने कभी त्योहार के दिन का इंतजार नहीं किया। जिस दिन राखी मिली, किसी साथी सैनिक से ही उसे कलाई पर बंधवा लिया। फिर कई दिनों तक वह कलाई पर ही बंधी रहती।

चिंट्ठी लिखता था, जल्दी भेजना राखी:

बाह क्षेत्र के ही जरार गांव में रहने वाले जितेंद्र भदौरिया 1967 में सेना में भर्ती हुए। 1988 में वह सेवानिवृत्त हो गए। नौकरी के 21 साल उन्होंने सीमा पर तैनात रहकर रक्षाबंधन का महत्व समझा। जितेंद्र भदौरिया बताते हैं कि उनकी कोई सगी बहन नहीं थी। चाचा की बेटी उमेशा सिंह और मामा की बेटी शशि नियमित रूप से राखी भेजती थीं। सच कहता हूं, जब राखी मिलती तो उसे देख मन खुश हो जाता और साथियों को दौड़कर यही बताता कि मेरी राखी आ गई। नौकरी के दौरान चार बार रक्षाबंधन पर घर आने का मौका मिला। तब अपने घर न आकर सीधे राखी बंधवाने चाचा और मामा के यहां जाता था।

बहन की राखी देती है हौसला:

सिधावली गांव के रामऔतार शर्मा ने 1963 में सेना की नौकरी शुरू की और 1991 में रिटायर हो गए। दो बहनें सुशीला और गंगोत्री की राखी उन्हें हर बार नया हौसला देतीं। रामऔतार शर्मा कहते हैं कि साल भर इस त्योहार और राखी का इंतजार रहता था। हमारी यूनिट में एक धर्मगुरु भी थे। हम रक्षाबंधन पर उनसे भी राखी बंधवाते। हमारा मानना है कि राखी के रूप में जो बहन प्यार भेजती है, वही सीमा पर भाई की रक्षा भी करता है।

दो दिन पहले मिलता था रक्षासूत्र:

राखी केवल रेशमी धागे नहीं हैं। ये प्रेम है उस बहन का, जिसके भेजे धागे सीमा पर दुश्मनों से लड़ने की ताकत देते हैं। बहन लक्ष्मी देवी तो डाक से राखी ऐसे भेजती थीं कि वह दो दिन पहले ही हमें मिल जाती थीं।


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