'तंत्र' के दखल से सीबीआइ का भी डिग रहा ईमान, सीबीआइ की फजीहत की आखिर क्या है वजह
रिटायर्ड आइजी बोले, एक समान पद पर दो अफसरों की तैनाती भी संस्था की फजीहत की वजह। एक अफसर की पोस्टिंग को नियम बदल कर सरकार ने शुरुआत में ही कर दी थी गलती।
आगरा [तनु गुप्ता]: सीबीआइ के हालातों को देखते हुए इसमें कोई आश्चर्य नहीं, मगर दुर्भाग्य जरूर है। कुर्सी की चाहत में ब्यूरोक्रेसी जब सत्ता के इशारे पर नाचती है तो भ्रष्टाचार से बच पाना मुश्किल ही है। एक जैसे पद पर दो अफसरों की तैनाती तार्किक नहीं कही जा सकती। तंत्र के दखल से हालात ऐसे बनते चले गए कि सीबीआइ जैसी देश की सबसे प्रतिष्ठित संस्था की भी विश्वसनीयता की भी आरोप-प्रत्यारोपों के दौर ने जड़ें हिला दीं।
सोमवार को दैनिक जागरण कार्यालय में 'जागरण विमर्श' के तहत 'सीबीआइ की फजीहत के पीछे जिम्मेदार कौन' विषय पर पुलिस महानिरीक्षक पद से सेवानिवृत्त आइपीएस सतीश यादव के विचारों का निचोड़ कुछ यही था।
उनके विचार में जिस संस्था की नींव भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के पर्दाफाश पर टिकी है, आज उसी संस्था के वरिष्ठतम अफसरों पर भ्रष्टाचार के छींटे पड़ रहे हैं। सीबीआइ 'तोता' तो रंजीत सिन्हा के कार्यकाल में ही बन गई थी। निदेशक के सबसे प्रबल दावेदार दत्ता को एक मंत्रालय भेजकर आलोक वर्मा को निदेशक और राकेश अस्थाना को विशेष निदेशक बनाना ही संस्था की स्वायत्तता पर सवाल लगाने जैसा था। सीबीआइ में देश भर से स्वच्छ, ईमानदार, कर्मठ, निष्ठावान अफसरों की तैनाती की जाती है, चर्चा में आए दोनों अफसरों में से एक हैं भी ऐसे, मगर वे भी भ्रष्टाचार के आरोप में फंस ही गए। मौजूदा दौर में यदि देखा जाए तो । ब्यूरोक्रेसी पर सत्ता का नशा हावी होने पर अफसर सत्ता के इशारे पर नाचने लगते हैं।
बड़े घोटालों की नहीं होती जांच पूरी
यह विडंबना ही है कि सर्वाधिकारी संपन्न सीबीआइ तमाम बड़े घोटालों की जांच को अंजाम तक पहुंचा ही नहीं पाई। भोपाल गैस कांड, बोफोर्स घोटाला हो या हवाला जैसे मामले इसके उदाहरण हैं।
कानून बदलने की भी जरूरत
देश में आज भी अंग्रेजों के दौर का पुलिस एक्ट लागू है। यूपी के रिटायर्ड डीजीपी प्रकाश सिंह पुलिस एक्ट में बदलाव को लेकर लंबे समय से लड़ रहे हैं। किसी भी सरकार ने बदलाव की जरूरत ही नहीं समझी।
समाज की सोच का हुआ पतन
सत्ता का नशा और धन का लालच, आज समाज की महत्वाकांक्षा बन चुकी है। आज लोग अपने बच्चों से मोटी कमाई की अभिलाषा पाले हुए हैं। सिविल सेवा के पीछे भी कइयों का मकसद कम्फर्ट लाइफ की चाहत होती है।
दस में से तीन अफसर ही खरे
रिटायर्ड आइजी सतीश यादव बेबाकी से कहते हैं कि टॉप प्रतियोगी परीक्षा क्वालीफाइ करने वाले अभ्यर्थियों में औसतन तीन अफसर ही सर्विस के पैमाने पर खरे उतर पाते हैं। कहा कि जरूरी नहीं कि जो पढ़ाई में बेहतरीन हो वो ईमान पर भी कायम रहेगा।
ऐसे हुआ था सीबीआइ का गठन
भारत सरकार की प्रमुख जांच एजेंसी है। इसका गठन 1941 में स्पेशल पुलिस स्टेब्लिशमेंट के रूप में हुआ था। आजादी के बाद इसका नाम दिल्ली स्पेशल पुलिस स्टेब्लिशमेंट हुआ। 1963 में इसका नाम सीबीआइ पड़ा। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो यानि सीबीआइ भ्रष्टाचार, अपराध और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों की जांच करती है।