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Pitra Paksha 2020: पढ़ें क्यों जरूरी है तर्पण व श्राद्ध, साथ ही जानें कितनी तरह के होते हैं श्राद्ध

Pitra Paksha 2020धर्मशास्त्र में श्राद्ध के अनेक भेद बतलाये गए हैं। उनमें से मत्स्य पुराण में तीन यज्ञस्मृति में पांच और भविष्य पुराण में बारह प्रकार के श्राद्ध का उल्लेख है।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sun, 06 Sep 2020 02:54 PM (IST)Updated: Sun, 06 Sep 2020 02:54 PM (IST)
Pitra Paksha 2020: पढ़ें क्यों जरूरी है तर्पण व श्राद्ध, साथ ही जानें कितनी तरह के होते हैं श्राद्ध
Pitra Paksha 2020: पढ़ें क्यों जरूरी है तर्पण व श्राद्ध, साथ ही जानें कितनी तरह के होते हैं श्राद्ध

आगरा, जागरण संवाददाता। पितरों की संतुष्टि के लिए तर्पण किया जाता है वही श्राद्ध कहलाता है। प्रश्न यह है हम श्राद्ध क्यों करें ? श्राद्ध न करें तो हर्ज क्या है ? इस बारे में धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी का कहना है कि पितरों के नाम से श्रद्धा पूर्वक किये गए कर्म को श्राद्ध कहते हैं। जिनकी अकालमृत्यु को प्राप्त या अतृप्त आत्माओं का सम्बन्ध हमारे कुल- परिवार से होता है, उनकी अपने वंशजों से यह अपेक्षा रहती है कि उनकी आने वाली पीढ़ी उनके कल्याण के लिए और आत्मा की शान्ति के लिए कुछ दान- पुण्य, भोजन-वस्त्र, अन्न-जल तर्पण आदि कर साल में एक बार पितृपक्ष में श्राद्धकर्म अवश्य करेगी जिससे उनकी मुक्ति हो जायेगी और एकबार फिर से वे भवचक्र का हिस्सा बन जायेंगे। ऐसा होने से वे न सिर्फ संतुष्ट होते हैं बल्कि कुल-परिवार को आशीर्वाद भी देते हैं। इसके ठीक विपरीत जिस परिवार में यह श्राद्धकर्म नहीं किया जाता है, चाहे जाने या अनजाने तो उस परिवार की सुख-समृद्धि, संतुष्टि नष्ट हो जाती है। इसका एकमात्र कारण पितरों का अप्रसन्न और असंतुष्ट होना ही है। जिन पितरों को अपने कुल-परिवार के सदस्यों से श्राद्धकर्म की अपेक्षा रहती है, जिसका वे बेसब्री से इंतजार भी करते हैं और श्राद्धपक्ष में कुल परिवार में आते भी हैं, फिर भी वे भूखे-प्यासे, अतृप्त लौट जाते हैं तो फिर वे परिवार के सदस्यों को सताकर उन्हें संकेत भी करते हैं। यदि फिर भी वे नहीं चेते और उनकी अनदेखी करते रहे तो वे ही उनके ऊपर कहर बन कर टूट पड़ते हैं। फिर जो नुकसान होता है उसकी भरपाई संभव नहीं है। पितरों की बददुआ किसी कुल-परिवार का सुख-चैन तो छीन ही लेती है, साथ ही अनहोनी समय-समय पर घटित होने लगती है जिसकी सारी जिम्मेदारी कुल-परिवार के जिम्मेदार सदस्य की होती है। इसलिए हिन्दू समाज की यह मान्यता और परंपरा है कि श्राद्ध करने से उनके वंशज और परिवार का कल्याण होता है।

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श्राद्ध के भेद

पंडित वैभव कहते हैं कि हमारे धर्मशास्त्र में श्राद्ध के अनेक भेद बतलाये गए हैं। उनमें से 'मत्स्य पुराण' में तीन, 'यज्ञस्मृति' में पांच और 'भविष्य पुराण' में बारह प्रकार के श्राद्ध का उल्लेख मिलता है।

नित्य श्राद्ध

प्रतिदिन किया जाने वाला तर्पण और भोजन से पहले गौ-ग्रास निकालना 'नित्य श्राद्ध' कहलाता है।

नैमित्तिक श्राद्ध 

पितृपक्ष में किया जाने वाला श्राद्ध 'नैमित्तिक श्राद्ध' कहलाता है।

काम्य श्राद्ध

अपनी अभीष्ट कामना की पूर्ति के लिए किये गए श्राद्ध को 'काम्य श्राद्ध' कहते हैं।

वृद्धि श्राद्ध या नान्दीमुख श्राद्ध

मुंडन, उपनयन एवं विवाह आदि के अवसर पर किया जाय तो 'वृद्धि श्राद्ध' या 'नान्दी मुख श्राद्ध' कहते हैं।

पार्वण श्राद्ध

अमावस्या या पर्व के दिन किया जाने वाला श्राद्ध 'पार्वण श्राद्ध' कहलाता है।

सपिण्डन श्राद्ध

 मृत्यु के बाद प्रेतयोनि से मुक्ति के लिए मृतक पिण्ड का पितरों के पिण्ड में मिलाना 'सपिण्डन श्राद्ध' कहलाता है।

गोष्ठी श्राद्ध

 गौशाला में वंश वृद्धि के लिए किया जाने वाला श्राद्ध 'गोष्ठी श्राद्ध' कहलाता है।

शुद्धयर्थश्राद्ध

प्रायश्चित्त के रूप में अपनी शुद्धि के लिए ब्राह्मणों को भोजन कराना 'शुद्ध्यर्थ श्राद्ध' कहलाता है।

कर्मांग श्राद्ध

गर्भाधान, सीमान्त एवं पुंसवन संस्कार के समय किया जाने वाला श्राद्ध 'कर्मांग श्राद्ध' कहलाता है।

दैविक श्राद्ध

सप्तमी तिथि में हविष्यान्न से देवताओं के लिए किया जाने वाला श्राद्ध 'दैविक श्राद्ध' कहलाता है।

यात्रार्थ श्राद्ध

तीर्थयात्रा पर जाने से पहले और तीर्थस्थान पर किया जाने वाला 'यात्रार्थ श्राद्ध' कहलाता है।

पुष्ट्यर्थ श्राद्ध

अपने वंश और व्यापार आदि की वृद्धि के लिए किया जाने वाला श्राद्ध 'पुष्ट्यर्थ श्राद्ध' कहलाता है। 


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