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Pitra Paksha 2020: अगर चाहिए महालक्ष्मी की विशेष कृपा तो जरूर करें कल ये व्रत, पढ़ें पूजन विधि एवं कथा भी

10 सितंबर को है महालक्ष्मी व्रत। 16 दिन की गजलक्ष्मी की पूजा का होता है इस दिन परायण।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Wed, 09 Sep 2020 08:39 AM (IST)Updated: Wed, 09 Sep 2020 05:20 PM (IST)
Pitra Paksha 2020: अगर चाहिए महालक्ष्मी की विशेष कृपा तो जरूर करें कल ये व्रत, पढ़ें पूजन विधि एवं कथा भी
Pitra Paksha 2020: अगर चाहिए महालक्ष्मी की विशेष कृपा तो जरूर करें कल ये व्रत, पढ़ें पूजन विधि एवं कथा भी

आगरा, जागरण संवाददाता। श्राद्ध पक्ष शुरू हो चुके हैं। इसी दौरान पड़ने वाली अष्टमी के द‍िन देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इसे गजलक्ष्‍मी व्रत कहा जाता है। ज्योतिषाचार्य डॉ शाेनू मेहरोत्रा के अनुसार ये व्रत संतान की सुख समृद्धि हेतू किया जाता है। इस दिन तारों को देख कर व्रत का परायण किया जाता है। इस दिन सोना खरीदने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन सोना खरीदने से सोने में आठ गुना बढ़ोतरी होती है। इस बार यह व्रत 10 स‍ितंबर को पड़ रहा है। इसे गजलक्ष्‍मी व्रत के अलावा महालक्ष्मी व्रत और हाथी पूजा भी कहते हैं।

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पूजन विधि

डॉ शाेनू बताती हैं कि गजलक्ष्‍मी व्रत का पूजन शाम के समय किया जाता है। शाम के समय स्नान कर पूजा स्‍थल पर लाल रंग का वस्‍त्र बिछाएं। केसर मिले चंदन से अष्टदल बनाकर उस पर चावल रखें फिर जल से भरा कलश रखें। अब कलश के पास हल्दी से कमल बनाएं। इस पर माता लक्ष्मी की मूर्ति रखें। मिट्टी का हाथी बाजार से लाकर या घर में बनाकर उसे सोने के आभूषणों से सजाएं। यद‍ि संभव हो तो इस दिन नया सोना खरीदकर उसे हाथी पर चढ़ाएं। अपनी श्रद्धानुसार सोने या चांदी का हाथी भी ला सकते हैं। इसके अलावा पूजन स्‍थल पर माता लक्ष्मी की मूर्ति के सामने श्रीयंत्र रखें फिर कमल के फूल से देवी मां की पूजा करें। देवी लक्ष्‍मी की पूजा करते समय सोने-चांदी के सिक्के रखें। यद‍ि संभव न हो सके तो श्रद्धानुसार रुपए-पैसे भी रख सकते हैं। इसके साथ ही मिठाई और फल रखकर लक्ष्‍मी मंत्रों का जप करें। इसके ल‍िए ‘ऊं योगलक्ष्म्यै नम:’ और ‘ऊं आद्यलक्ष्म्यै नम:’ और ‘ऊं सौभाग्यलक्ष्म्यै नम:’ मंत्र का जप करें। यह मंत्र जप 108 बार पूरी श्रद्धा और न‍िष्‍ठा से करें। इसके बाद घी के दीपक से पूजा कर कथा सुनें और माता लक्ष्मी की आरती कर भोग लगाएं। अंत में थोड़ा सा प्रसाद अपने और पर‍िवार के ल‍िए रखकर प्रसाद अध‍िक से अध‍िक लोगों में बांट दें। इससे देवी लक्ष्‍मी की कृपा से जातक के जीवन में कभी भी धन-धान्‍य की कमी होते हैं।

महालक्ष्मी व्रत कथा

हिंदू धर्म में गजलक्ष्मी व्रत यानि महालक्ष्मी व्रत का विशेष महत्व है। भाद्रपद शुक्ल अष्टमी अर्थात राधा अष्टमी के दिन से यह व्रत शुरू होता है और 16 दिन तक यह व्रत किया जाता है। इस व्रत में मां लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। इस व्रत को करने से सुख - समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है। इस व्रत से जुड़ी कई तरह की लोककथाएं हैं लेकिन कुछ कथाएं काफी प्रचलित हैं। महाभारत काल के दौरान एक बार महर्षि वेदव्यास जी ने हस्तिनापुर का भ्रमण किया। महाराज धृतराष्ट्र ने उन्हें अपने राजमहल में पधारने का आमंत्रण दिया। रानी गांधारी और रानी कुंती ने मुनि वेद व्यास से पूछा कि हे मुनि आप बताएं कि हमारे राज्य में धन की देवी मां लक्ष्मी और सुख-समृद्धि कैसे बनी रहे। यह सुनकर वेदव्यास जी ने कहा कि यदि आप अपने राज्य में सुख-समृद्धि चाहते हैं तो प्रतिवर्ष अश्विनी कृष्ण अष्टमी को विधिवत श्री महालक्ष्मी का व्रत करें। मुनि की बात सुनकर कुंती और गांधारी दोनों ने महालक्ष्मी व्रत करने का संकल्प लिया। रानी गांधारी ने अपने राजमहल के आंगन में 100 पुत्रों की मदद से विशालकाय गज का निर्माण करवाया और नगर की सभी स्त्रियों को पूजन के लिए आमंत्रित किया, परंतु रानी कुंती को निमंत्रण नहीं भेजा। जब सभी महिलाएं गांधारी के राजमहल पूजन के लिए जाने लगी तो, कुंती उदास हो गई। माता को दुखी देखकर पांचों पांडवों ने पूछा कि माता आप उदास क्यों हैं? तब कुंती ने सारी बात बता दी। इस पर अर्जुन ने कहा कि माता आप महालक्ष्मी पूजन की तैयारी कीजिए, मैं आपके लिए हाथी लेकर आता हूं। ऐसा कहकर अर्जुन इंद्र के पास गए और इंद्रलोक से अपनी माता के लिए ऐरावत हाथी लेकर आए। जब नगर की महिलाओं को पता चला कि रानी कुंती के महल में स्वर्ग से ऐरावत हाथी आया है तो सारे नगर में शोर मच गया। हाथी को देखने के लिए पूरा नगर एकत्र हो गया और सभी विवाहित महिलाओं ने विधि विधान से महालक्ष्मी का पूजन किया। पौराणिक मान्यता है कि इस व्रत की कहानी को 16 बार कहा जाता है और हर चीज या पूजन सामग्री 16 बार चढ़ाई जाती है।

गज लक्ष्मी व्रत कथा

एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। वह नियमित रुप से जगत के पालनहार विष्णु भगवान की अराधना करता था। उसकी पूजा-भक्ति से प्रसन्न होकर उसे भगवान श्रीविष्णु ने दर्शन दिए और ब्राह्मण से वर मांगने के लिए कहा। तब ब्राह्मण ने लक्ष्मीजी का निवास अपने घर में होने की इच्छा जाहिर की। तब श्रीविष्णु ने लक्ष्मीजी की प्राप्ति का मार्ग बताया। उन्होंने बताया कि मंदिर के सामने एक स्त्री आती है, जो यहां आकर उपले थापती है, तुम उसे अपने घर आने का आमंत्रण देना। वही देवी लक्ष्मी हैं। विष्णु जी ने ब्राह्मण से कहा, जब धन की देवी मां लक्ष्मी के तुम्हारे घर पधारेंगी तो तुम्हारा घर धन और धान्य से भर जायेगा। यह कहकर श्रीविष्णु जी चले गए। अगले दिन वह सुबह ही वह मंदिर के सामने बैठ गया। लक्ष्मी जी उपले थापने के लिये आईं तो ब्राह्मण ने उनसे अपने घर आने का निवेदन किया। ब्राह्मण की बात सुनकर लक्ष्मीजी समझ गईं, कि यह सब विष्णुजी के कहने से हुआ है। लक्ष्मीजी ने ब्राह्मण से कहा कि मैं चलूंगी तुम्हारे घर लेकिन इसके लिए पहले तुम्हें महालक्ष्मी व्रत करना होगा। 16 दिनों तक व्रत करने और 16वें दिन रात्रि को चंद्रमा को अर्घ्य देने से तुम्हारा मनोरथ पूरा होगा। ब्राह्मण ने देवी के कहे अनुसार व्रत और पूजन किया और देवी को उत्तर दिशा की ओर मुंह करके पुकारा। इसके बाद देवी लक्ष्मी ने अपना वचन पूरा किया। मान्यता है कि उसी दिन से इस व्रत की परंपरा शुरू हुई थी।

महालक्ष्मी व्रत में इन मंत्रों का करें जाप माता लक्ष्मी शीघ्र होंगी प्रसन्न

− ॐ आद्यलक्ष्म्यै नम:

− ॐ विद्यालक्ष्म्यै नम:

− ॐ सौभाग्यलक्ष्म्यै नम:

− ॐ अमृतलक्ष्म्यै नम:

− ॐ कामलक्ष्म्यै नम:

− ॐ सत्यलक्ष्म्यै नम:

− ॐ भोगलक्ष्म्यै नम:

− ॐ योगलक्ष्म्यै नम:


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