बेटी-बहू कर रहीं तर्पण
आगरा: अरे एक बेटा होना तो बहुत जरूरी है। वरना मुक्ति कैसे मिलेगी। मरने के बाद तर्पण कौन
आगरा: अरे एक बेटा होना तो बहुत जरूरी है। वरना मुक्ति कैसे मिलेगी। मरने के बाद तर्पण कौन करेगा। बेटा- बेटी में सबसे बड़ा भेद पैदा करने वाली यह सोच अब पीछे छूटती जा रही है। बेटियों द्वारा अंतिम संस्कार जैसे कार्य तो पहले भी सुनने में आए हैं, अब बेटियां, श्रद्धा के साथ अपने पिता का श्राद्ध भी कर रही हैं तो बहुओं ने भी अपने सास-ससुर को तर्पण करने की जिस्मेदारी खुद ही संभाल रखी है। इस नई शुरुआत में सबसे सराहनीय पहलू है कि बेटियों के ससुरालीजन भी उनकी इस पहल में साथ देते हैं।
डॉ. शोनू मेहरोत्रा दो बहनें हैं। पांच वर्ष पहले उनके पिता की मृत्यु हुई थी। शोनू के पिता उनके साथ ही रहते थे। जीवन के आखिरी समय तक शोनू और उनके पति पवन मेहरोत्रा ने उनकी सेवा की। डॉ. शोनू बताती हैं कि मेरे पिता का अंतिम संस्कार मेरे बेटे ने किया था। जब वक्त श्राद्ध का आया तब बेटा पढ़ने शहर से बाहर जा चुका था। मान्यताओं को पीछे छोड़ते हुए मैंने अपने घर में ही पंडित जी को बुलाकर श्राद्ध किया। तब से हर वर्ष उनके नाम से तर्पण करती हूं। वहीं प्रीति अस्थाना जब अपने पिता का श्राद्ध करती हैं तो उनके सास-श्वसुर भी उसमें सहयोग करते हैं। प्रीति के पिता की मृत्यु 2004 में हुई थी। वे चार बहनें हैं। प्रीति ने सबसे बड़ी होने के नाते पिता के श्राद्ध का दायित्व स्वयं उठाया। प्रीति की मां भी उन्हीं के साथ रहती हैं। प्रीति का अनुसरण करते हुए ही उनकी छोटी बहन मनीषा भटनागर भी अपने पिता के लिए तर्पण करती हैं, जिसमें उनके ससुरालीजन साथ देते हैं।
बेटा का फर्ज निभा रहीं बहुएं:एक स्त्री दो परिवारों को जोड़ती है, ये बात यूं ही नहीं कही जाती। विवाह होकर ससुराल में गई बेटी बहू बनकर सारे फर्ज निभाती है। श्राद्ध के लिए भोजन भी बनाती है लेकिन तर्पण की अधिकारी नहीं होती। यह सोच भी अब बदल चुकी है। बेटे की अनुपस्थिति में बहुएं अब तर्पण करने लगी हैं। कनिका अग्रवाल अपनी सासू मां का श्राद्ध करती हैं। वे बताती हैं कि काम के सिलसिले में अक्सर उनके पति शहर से बाहर रहते हैं। पिछले नौ वर्षो से इस दायित्व को उन्होंने स्वयं ही उठाने का संकल्प लिया हुआ है।
यही परिस्थिति ममता बेरी की भी है। ममता कहती हैं कि शास्त्रों में ऐसा कहीं नहीं लिखा कि महिलाएं श्राद्ध नहीं कर सकतीं। जब हम पूरा भोजन तैयार करती हैं तो तर्पण की अधिकारी क्यों नहीं बन सकती। ममता बताती हैं कि उनके पति की अनुपस्थिति में वे और उनकी सास मां उनके ससुर का श्राद्ध करती हैं।
शास्त्र भी देते हैं तर्पण की अनुमति
ज्योतिषाचार्य अरविंद मिश्रा बताते हैं कि शास्त्रों में अविवाहित स्त्री को श्राद्ध या मृत्युपरांत की अन्य क्रियाएं करने की मनाही है। विवाहित स्त्रियां श्राद्ध कर सकती हैं। पुरुषों को ही तर्पण का अधिकार है, यह मान्यता सिर्फ इसलिये है कि स्त्रियों का मन अत्याधिक कोमल होता है। इसलिये उनका श्मशान जाना भी निषेध रखा गया है। मृत्युपरांत की क्रियाएं महिलाओं को गहरे शोक में डाल सकती हैं। इससे उनके मन और स्वास्थ पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। उनके स्वास्थ की दृष्टि से ही इन सभी क्रियाओं का करने का दायित्व पुरुषों को ही दिया जाता है।