Lockdown Part 3.0 कुछ समय थमने के बाद फिर चल पड़ा मजदूरों का कारवां, मददगार भी बेबस
हरियाणा और दिल्ली से पैदल लौट रहे सैकड़ों मजदूर। हाईवे पर रोका तो खेतों में होकर कर रहे सफर तय। बसों का किया जा रहा बंदोबस्त।
आगरा, प्रतीक गुप्ता। दहशत है और भूख। एक वायरस ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। रोजी-रोटी की चिंता में अपना गांव, अपना घर छोड़ राजधानी दिल्ली में झोपड़ पट्टी में गुजारा करने वाले अप्रवासी मजदूरों का कारवां फिर चल पड़ा है। लॉकडाउन 3.0 के शुरू होने के साथ इनका धैर्य जवाब दे गया। रोजगार छिन चुका, खाने को दो वक्त की रोटी के लाले पड़ गए, साथ ही जिंदगी बचाने की सबसे बड़ी चिंता। लॉकडाउन पार्ट 1 के दौरान लाखों लोग दिल्ली से आगरा तक पैदल आए थे। पार्ट 2 में यह कारवां कुछ थमा। सरकार ने बसों का इंतजाम किया और कुछ सैकड़ा लोग सुरक्षित अपने घरों तक पहुंच गए। लॉकडाउन 3 में न बस हैं और न ट्रेन। एक बार फिर हरियाणा और दिल्ली से काफिला चल पड़ा है। भरी दोपहरी, सूखे कंठ और खाली पेट के साथ मजदूर पैदल सफर कर रहे हैं, बस इस आस में कि सुरक्षित अपने घरौंदे तक पहुंच जाएं। जीवन बचेगा तो सब बचेगा।
लॉकडाउन 3.0 में शनिवार सुबह आगरा-दिल्ली हाईवे पर मथुरा सीमा में एक साथ सैकड़ों लोग प्रवेश करने लगे। मथुरा, हरियाणा और दिल्ली में काम कर रहे मजदूर तेजी से अपनी घर वापसी कर रहे हैं। आगरा दिल्ली हाईवे पर मजदूरों की लाइन टूट नहीं रही। शुक्रवार की रात से शनिवार सुबह तक सैकड़ों मजदूर पैदल आगरा सीमा पर पहुंच गए हैं। इन्हें पुलिस ने आगे बढ़ने से रोक दिया है। हाईवे पर रोका तो मजदूर खेतों में दाखिल हो गए और वहां से बैरियर पार करने की कोशिश की। इधर पुलिस प्रशासन ने भी हालातों को समझते हुए आश्वासन दिया है कि वाहनों का इंतजाम कर उन्हें उनके गंतव्य तक भेजा जाएगा। लेकिन मजदूर रुकने को तैयार नहीं थे। रोके जाने से नाराज मजदूरों ने हंगामा कर दिया। और आगरा दिल्ली हाईवे पर जाम लगा दिया । पुलिस ने करीब डेढ़ घंटे बाद किसी तरह समझा कर शांत किया। लेकिन 70 फीसद मजदूर खेतों से होकर आगरा सीमा में घुस गए हैं। बाकी को पुलिस ने रोक लिया है और उनके लिए बसों का इंतजाम किया जा रहा है।
लॉकडाउन पार्ट वन में आगरा के तमाम समाजसेवियों ने खाने-पानी का बंदोबस्त किया था। दिन-रात आगरा से गुजरने वाले हर मार्ग पर लोगों ने इन मजदूरों की सेवा की थी।
रसद और रुपया, दोनों होने लगे खत्म
आगरा हमेशा से समाजसेवा के मामले में आगे रहा है। जब भी देश पर कोई आपदा आई हो तो आगरावासियों ने मुक्त हाथों से सहयोग किया है। जिसकी जितनी सामर्थ्य, उसने उतना किया। पार्ट वन में रोजाना कई क्विंटल आटे की पूडि़यां और आलू की सब्जी का वितरण कराया गया। अब यहां भी लोगों की मजबूरी है। रसद और धन, दोनों समाप्त हो चुके हैं। काम धंधे बंद पड़े हैं, आमदनी कुछ है नहीं और घर बैठे कर्मचारियों की तनख्वाह देना, बिजली बिल चुकाना, लोन की किश्त चुकाना दानदाताओं पर भी भारी पड़ रहा है। सरकार ने अपनी आमदनी बढ़ाने को पेट्रोल-डीजल पर राजस्व बढ़ाया, साथ ही शराब के ठेके खोल दिए। सादा पान मसाले से प्रतिबंध भी हटा लिया लेकिन आम कारोबारी के लिए बाजार नहीं खुले, शोरूम भी नहीं खुले। दिल से चाहते हुए भी लोग अब मदद को हाथ आगे बढ़ाने के लिए कतरा रहे हैं। साथ ही बाजार में भी खाद्य पदार्थों की किल्लत है। आगरा प्रशासन अभी तक मुनाफाखोरी पर लगाम नहीं लगा सका है। बुनियादी जरूरत की वस्तुओं पर गली-मोहल्लों में धड़ल्ले से ओवर रेटिंग का खेल जारी है।
ट्रैक पर मजदूरों ने मौत ने झकझोर दिया दिल
महाराष्ट्र में लॉकडाउन के दौरान पैदल अपने गांव के लिए निकले मजदूरों की रेलवे ट्रैक पर मालगाड़ी से कटने की घटना ने ताजनगरीवासियों के भी दिल झकझोर दिए हैं। शनिवार सुबह यह घटना सभी अखबारों की सुर्खियों में है। लोग यही बात कर रहे हैं कि वैश्विक आपदा की इस घड़ी में ईश्वर, अब ऐसा किसी और के साथ न करे।लगातार पैदल सफर की थकान के बाद गहरी नींद से मौत के आगोश में पहुंचे मजदूरों के साथ लाई गईं रोटियों के ट्रैक पर बिखरे होने की तस्वीरें, उस दर्द को कभी न भुलाए जाने वाला बना गई हैं।