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शबनम फांसी प्रकरण: सजा-ए-मौत के लायक नहीं सूबे का इकलौता महिला फांसी घर Agra News

सूबे में मथुरा में ही महिलाओं को फांसी देने की व्यवस्था। आज तक नहीं दी गई जेल में किसी महिला को फांसी।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sat, 25 Jan 2020 01:46 PM (IST)Updated: Sat, 25 Jan 2020 01:46 PM (IST)
शबनम फांसी प्रकरण: सजा-ए-मौत के लायक नहीं सूबे का इकलौता महिला फांसी घर Agra News
शबनम फांसी प्रकरण: सजा-ए-मौत के लायक नहीं सूबे का इकलौता महिला फांसी घर Agra News

आगरा, विनीत मिश्र। कारागार में भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थान को लेकर मथुरा आस्था का केंद्र है, तो एक और कारागार के लिए मथुरा जाना जाता है। सूबे में केवल मथुरा की जिला जेल ही ऐसी है, जहां महिलाओं को फांसी देने की व्यवस्था है। अमरोहा के चर्चित बावनखेड़ी के हत्याकांड की आरोपित शबनम को फांसी पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है। ऐसे में फांसी की संभावनाओं को देखते हुए मथुरा जेल एक बार फिर चर्चा में आ गई है।

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दरअसल, अंग्रेजों के बनाए जेल एक्ट 1894 में सूबे में केवल मथुरा जेल को ही महिला कैदियों को फांसी देने के लिए नामित किया गया था। 1956 में उत्तर प्रदेश सरकार ने उसी एक्ट को जेल मैनुअल के रूप में अंगीकार किया। ऐसे में अंग्रेजों के बनाए नियमों का पालन अब भी किया जा रहा है। जेल के पीछे बने फांसी घर में आज तक किसी को फांसी नहीं दी जा सकी।

जीर्णशीर्ण हालत में फांसी घर

फांसी घर की हालत भी अब जीर्णशीर्ण हो गई है। लकड़ी के जिस पटरे पर कैदी को खड़ा किया जाता है, वह टूट गए हैं, रस्सी भी अब नहीं बची। लिवर भी जंग खा गया है। गरारी बहुत आसानी से नहीं घूम रही है। शबनम प्रकरण फिर से सामने आने के बाद अब जेल प्रशासन फिर से सक्रिय हो गया है। फांसी घर की साफ-सफाई के साथ ही उसकी क्रियाशीलता जांची जाएगी।

फांसी देने का रिकॉर्ड नहीं

मथुरा में ही महिला को फांसी देने की व्यवस्था क्यों, इस सवाल पर वरिष्ठ जेल अधीक्षक शैलेंद्र कुमार मैत्रेय कहते हैं कि ये अंग्रेजों के बनाए जेल एक्ट में था। उसे ही प्रदेश के जेल मैनुअल में शामिल किया गया। उन्होंने बताया कि आजादी के बाद आज तक यहां किसी को फांसी देने का कोई रिकॉर्ड अब तक नहीं मिला है। देश में अब तक किसी भी महिला को फांसी नहीं दी गई, अगर उसकी फांसी की सजा बरकरार रही तो शबनम पहली महिला होगी।

2010 में भी हुई थी साफ-सफाई

वरिष्ठ जेल अधीक्षक शैलेंद्र कुमार मैत्रेय बताते हैं कि शबनम को 2010 में फांसी की सजा हुई थी, तब वह मुरादाबाद में बंद थी, वह भी मुरादाबाद में वरिष्ठ अधीक्षक थे। तब मथुरा जेल में शबनम को फांसी देने के लिए उन्होंने कागजी कार्रवाई की। तब मथुरा जेल में फांसी को लेकर फांसी घर की साफ-सफाई कर वहां तक पहुंचने का खराब हो चुका रास्ता ठीक किया गया था। लेकिन किन्हीं कारणों से फांसी तब रुक गई थी।

कौन हैं शबनम

अमरोहा के बावनखेड़ी में अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर शबनम ने अपने परिवार के सात लोगों को कुल्हाड़ी से काट डाला था। इस मामले में दोनों को फांसी की सजा हुई थी। अब शबनम की पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है।

इन जेलों में पुरुषों को फांसी देने की व्यवस्था

आगरा, बरेली, वाराणसी, कानपुर, फैजाबाद, गोंडा, गोरखपुर, झांसी, लखनऊ, मेरठ, सहारनपुर, सीतापुर की जिला जेल के अलावा नैनी सेंट्रल जेल में पुरुषों को फांसी देने की व्यवस्था की गई है।

जरूरी सामान की होगी मांग

फांसी घर को व्यवस्थित करने के लिए उच्चाधिकारियों को पत्र लिखा जाएगा। जो भी सामान जरूरी होगा उसके लिए मांग की जाएगी।

- शैलेंद्र कुमार मैत्रेय, वरिष्ठ जेल अधीक्षक

 


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