Dusshera 2109:कान्हा की नगरी में दशानन का पूजन, पढि़ए क्या है अनूठी परंपरा Agra News
मथुरा में यमुना किनार शिव मंदिर में भक्त करते हैं रावन की पूजा। करते हैं लंकापति के दहन का विरोध।
आगरा, जेएनएन। राम भगवान हैं तो रावण भी महान है। प्रचंड ज्ञानी को एक बुराई का प्रमीक मानकर उसके पुतले का दहन करना न्यायोचित्त नहीं है। लंकापति रावण के प्रति यह विचार कान्हा की नगरी मथुरा के लोगों हैं। इसी विचार के चलते यहां यमुना किनारे रावण का पूजन हर विजयदशमी पर किया जाता है।
मंगलवार को जब लोग रावण दहन की तैयारियों में व्यस्त हैं उसी वक्त के दौरान कान्हा की नगरी में रावण की पूजा की जा रही है।
दस सिर वाले रावण के माथे पर तिलक लगाकर उनकी आरती उतारी जा रही है। जी हां, विजयदशमी के पर्व को लेकर भगवान श्रीकृष्ण की जन्म भूमि पर पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की जयजयकार हो रही है। जगह-जगह रामलीला का मंचन किया जा रहा है। रावण को भले ही बुराई के प्रतीक के रूप में माना जाता है, लेकिन मथुरा में रावण को पूजने वाले भी हैं। दशहरा पर एक तरफ रावण यहां जलाए जाते है तो दूसरी ओर उनके भक्त शिव मंदिर में रावण की पूजा अर्चना कर रहे होते हैं। यमुना के किनारे सदर में बने शिव मंदिर में रावण के पूजन की परंपरा वर्षों से निभाई जा रही है। यह परंपरा इस बार भी निभाई गयी। रावण की पूजा करने वाले ओमवीर सारस्वत एडवोकेट ने बताया कि भगवान शिव की पूजा करने वाले महाराज दशानन के स्वरूप को हम नमन करते हैं। प्रचंड विद्वान होने के नाते इस तरह से रावण का पुतला दहन नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि रावण परम विद्वान थे, रावण के पास बहुत ही अद्भुत शक्तियां थीं। रावण बने कुलदीप अवस्थी ने बताया कि रावण का स्वरूप धरने से एक अजीब सी शक्ति मिल जाती है। प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी रावण का स्वरूप बनने का शौभाग्य मुझे ही प्राप्त हुआ है। राम और लक्ष्मण ने भी अंत समय उनसे शिक्षा ली थी। इस दौरान रावण के स्वरूप ने शिव मंदिर में पूजा अर्चना भी की। पूजन के दौरान दर्जनों रावण भक्त मोजूद रहे।