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माइलेज के मामले में नई सूमो को टक्कर दे रहीं पुलिस की पुरानी गाड़ी

थानेदार की 12 और सीओ की गाड़ी देती है 14 किमी प्रति लीटर का माइलेज। हकीकत इससे भी है इतर उधारी के डीजल पर चलती हैं ये गाड़ियां

By JagranEdited By: Published: Fri, 23 Oct 2020 06:44 AM (IST)Updated: Fri, 23 Oct 2020 06:44 AM (IST)
माइलेज के मामले में नई सूमो को टक्कर दे रहीं पुलिस की पुरानी गाड़ी
माइलेज के मामले में नई सूमो को टक्कर दे रहीं पुलिस की पुरानी गाड़ी

आगरा (यशपाल चौहान)। क्या कंपनी पुलिस के वाहन का इंजन स्पेशल बनाती हैं। अगर ऐसा नहीं है तो कंपनी को रिसर्च करनी चाहिए कि इनमें क्या खूबी है कि गाड़ी पुरानी होने पर भी इनके माइलेज पर कतई फर्क नहीं पड़ता। यह चौंकाने वाले तथ्य दैनिक जागरण द्वारा सूचना के अधिकार (आरटीआइ) के तहत पूछे गए सवालों के जवाब में सामने आए हैं। जिसके मुताबिक थानों की पुरानी गाड़ियां माइलेज के मामले में नई टाटा सूमो और महिद्रा थार का टक्कर दे रही हैं।

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थाना प्रभारी, सीओ और चीता मोबाइल की गाड़ियों की प्रतिमाह रनिग और उनको मिलने वाले डीजल के संबंध में 17 जून को आरटीआइ के तहत एसएसपी कार्यालय से जानकारी मांगी गई थी। नौ अक्टूबर को मिले जवाब में बताया गया कि विभाग द्वारा थाना प्रभारियों की सरकारी जीप के लिए एक माह में 200 लीटर डीजल दिया जाता है, इस अवधि में इनकी रनिग 2400 किमी रहती है। क्षेत्राधिकारियों व अन्य राजपत्रित अधिकारियों के वाहनों को प्रतिमाह 210 लीटर डीजल दिया जाता है, जबकि इस दौरान इनकी रनिग तीन हजार किमी की रहती है। वीआइपी ड्यूटी के लिए इन्हें अलग से डीजल दिया जाता है। वहीं चीता मोबाइल की गाड़ियों की एक माह में रनिग 2600 किमी रहती है, जबकि डीजल 60 लीटर दिया जाता है। इस जानकारी के मुताबिक थाना प्रभारी की गाड़ी का माइलेज 12 और क्षेत्राधिकारी की गाड़ी का माइलेज 14 किमी प्रति लीटर निकलता है। थानेदार दबी जुबान में बताते हैं कि उनकी गाड़ी 8 से 10 किमी प्रति लीटर का माइलेज देती हैं। रनिग अधिक होने के कारण सरकारी डीजल 15 दिन में ही खत्म हो जाता है। सूत्रों की मानें तो हकीकत आरटीआइ के तहत दी गई जानकारी से अलग है। अब थानेदार की गाड़ी को 185 और चीता के लिए 30 लीटर डीजल प्रतिमाह मिल रहा है। शेष डीजल का इंतजाम थाना प्रभारी और क्षेत्राधिकारी चालक पर छोड़ देते हैं या इधर-उधर से करते हैं। मानक से कई गुना अधिक चलती हैं गाड़ियां

लागबुक में रनिग तय मानक के अनुसार ही दिखाई जाती है, जबकि गाड़ियां इससे कई गुना अधिक चलती हैं। माह में चार दिन थानेदारों की गाड़ियां रात्रि चेकिग पर निकलती हैं। हर रात सौ किमी से अधिक रनिग रहती है। गश्त, आरोपितों की गिरफ्तारी को दबिश, उन्हें कोर्ट में पेश करने और जेल तक पहुंचाने में भी डीजल खर्च होता है। ऐसे कैसे रुकेगा भ्रष्टाचार

शासन भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरेंस की नीति अपनाने पर जोर दे रहा है। पुलिस के वाहनों को डीजल खपत के सापेक्ष न मिलने पर अतिरिक्त डीजल की व्यवस्था जुगाड़ से ही की जाती है। ऐसे में भ्रष्टाचार के लिए पहले से ही बदनाम पुलिस विभाग पर कैसे लगाम लगाई जा सकती है।


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