fake driving license: नूतन राठौर के ड्राइविंग लाइसेंस मामले में ट्विस्ट, प्लास्टिक कार्ड तो बना लेकिन नहीं है रिकार्ड
fake driving license वर्ष 2006 में आगरा में हुआ है पंच लेकिन फीस नहीं हुई जमा। जिस वर्ष में ये लाइसेंस बना था उस समय दलाल एक्टिव थे। एक्टिविस्ट नूतन ठाकुर ने एसएसपी को किया मेल मुकदमा दर्ज कराने की मांग।
आगरा, जागरण संवाददाता। पूर्व आइपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर की पत्नी आरटीआइ एक्टिविस्ट नूतन ठाकुर का डायरी वाले ड्राइविंग लाइसेंस (डीएल) से प्लास्टिक कार्ड आगरा में 2006 में बना था।
कार्ड को रिन्यू कराने के लिए उन्होंने आगरा भेजा था, लेकिन रिकार्ड नहीं मिलने पर खलबली मच गई। इसके बाद उनका पुराना रिकार्ड लखनऊ के दूसरे कार्यालय में मिला है। वहीं नूतन ठाकुर की ओर से मामले की जांच और मुकदमा दर्ज कराने के लिए एसएसपी सुधीर कुमार को मेल से शिकायत की है।
विभाग में कोई रिकार्ड नहीं
वर्ष 2002 से 2008 के मध्य बने सैकड़ों ड्राइविंग लाइसेंस ऐसे हैं, जिनका विभाग में कोई रिकार्ड नहीं है। आए दिन रिन्यू, आनलाइन रिकार्ड कराने, चिप कार्ड बनवाने के लिए लोग विभाग पहुंचते हैं, रिकार्ड नहीं मिलने के बाद उनकाे परेशान होना पड़ता है।
आरआइ कटियार ने बताया कि नूतन ठाकुर ने वर्ष 2002 में लखनऊ से ड्राइविंग लाइसेंस बनवाया था। इसके बाद आगरा में पोस्टिड रहते हुए 2006 में प्लास्टिक कार्ड बनवाया होगा। उनके किसी व्यक्ति द्वारा रिकार्ड आनलाइन के लिए एप्लीकेशन दी गई थी। रिकार्ड खंगाला गया, लेकिन फीस जमा नहीं हुई।
प्लास्टिक कार्ड पंच कर दिया गया है। ऐसा किस स्तर पर हुआ, इसकी जानकारी नहीं है। पंचिंग कहा कराई गई ये भी नहीं पता है। वहीं नूतन ठाकुर का रिकार्ड लखनऊ के कार्यालय में मिल गया है और आगामी प्रक्रिया भी हो रही है।
दलाल थे हावी, बनवा देते थे लाइसेंस
परिवहन विभाग में दलालों की पकड़ मजबूत है। पिछले दिनों तक तो वे पटल पर बैठे भी दिख जाते थे। वर्ष 2002 से 2008 के बीच फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस बनाने का जमकर खेल हुआ। इस दौरान सैकड़ों लाइसेंस धारक ऐसे हैं, जिनका रिकार्ड विभाग पर नहीं है। जब लाइसेंस धारक को रिन्यू या कोई अन्य कार्य कराना होता है, तब जाकर मामला सामने आता है। ऐसे कई लोग न्यायालय की शरण में जा चुके हैं, जिनके मुकदमें चल रहे हैं।
नूतन ठाकुर ने लाइसेंस रिन्यू कराने के लिए रिकार्ड आनलाइन करने की बात कही थी, लेकिन उनका कोई रिकार्ड आगरा कार्यालय में दर्ज नहीं है। उनका रिकार्ड लखनऊ कार्यालय में मिल गया है, वहीं से लाइसेंस बना था। - प्रमोद कुमार, आरटीओ प्रशासन