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अब होगा शुरु कृष्‍ण जन्‍मभूमि मुक्ति आंदोलन, ये संस्‍था उठाएगी मांग, जानिए इतिहास Agra News

केसरिया वाहिनी शुरू करेगी मुक्ति आंदोलन। अगस्त में आयोजित होगी विश्व धर्म संसद आंदोलन को देंगे धार।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sat, 01 Feb 2020 06:01 PM (IST)Updated: Sat, 01 Feb 2020 06:01 PM (IST)
अब होगा शुरु कृष्‍ण जन्‍मभूमि मुक्ति आंदोलन, ये संस्‍था उठाएगी मांग, जानिए इतिहास Agra News
अब होगा शुरु कृष्‍ण जन्‍मभूमि मुक्ति आंदोलन, ये संस्‍था उठाएगी मांग, जानिए इतिहास Agra News

आगरा, जेएनएन। श्रीराम जन्मभूमि के बाद अब श्रीकृष्ण जन्मभूमि को मुक्त करवाने की मांग उठने लगी है। भारतीय केसरिया वाहिनी ने भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि को भी मुक्त कराने के लिए आंदोलन की रणनीति बनाने को बैठक आयोजित की। बैठक में वक्ताओं ने कहा भगवान श्रीराम की जन्मभूमि का जिस तरह कलंक मिटा है, उसी तरह भगवान श्रीकृष्ण जन्मस्थान के कलंक को मिटाने को आंदोलन शुरू होगा। आंदोलन की रणनीति तय करने के लिए अगस्त में विश्व धर्म संसद का आयोजन होगा। जिसमें 13 अखाड़ों के महामंडलेश्वर व संत मौजूद रहेंगे।

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आनंदवाटिका स्थित रामाश्रम में शनिवार को आयोजित भारतीय केसरिया वाहिनी की बैठक में राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोज श्रीवास्तव ने कहा केसरिया वाहिनी ने संकल्प लिया है अयोध्या राम जन्म भूमि की तरह मथुरा कृष्ण जन्म भूमि को मस्जिद से मुक्त किया जाएगा। इसके लिए अगस्त माह में विश्व धर्म संसद बुलाएंगे। जिसमें 13 अखाड़ों के महामंडलेश्वर एवं संतों का आह्वान किया जाएगा एवं उनकी मौजूदगी में आंदोलन को व्यापक रूप दिया जाएगा। बैठक में पानीपत, जयपुर, लखनऊ, मथुरा, वृंदावन के लोग शामिल हुए। बैठक की अध्यक्षता करते हुए आचार्य देवमुरारी बापू ने कहा केसरिया वाहिनी ङ्क्षहदुओं को जोडऩे और एकता के लिए काम कर रही है। इसलिए सभी संतों का समर्थन मिलेगा। अगले साल वृंदावन में लगने वाले अर्धकुंभ सभी अखाड़ा के संतों से संपर्क किया जाएगा। हिंदू साधना राष्ट्रीय अध्यक्ष महिला मोर्चा, महामंडलेश्वर आनंददास, आचार्य श्याम महाराज, अनुराग शास्त्री, जोगी राम दास, प्रेमचंद शास्त्री, विलास स्वरूप, मौसम शास्त्री, कमला शर्मा, सुधा सिंह, अमित श्रीवास्तव, दिनेश कुलश्रेष्ठ, विष्णु गौतम, सुभाष भटनागर, स्वामी श्याम पुरी, संतोष कुमार कुलश्रेष्ठ मौजूद रहे।

श्रीकृष्‍ण जन्‍मभूमि का इतिहास 

- गुजरात के प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर की तरह मथुरा के श्रीकृष्‍ण जन्‍मस्‍थान पर भी आक्रमणकारी महमूद गजनवी ने हमला किया था। लूटकर इस धर्मस्‍थल को भी तोड़ डाला था। यह मंदिर तीन बार तोड़ा और चार बार बनाया जा चुका है। 

- जिस जगह पर आज कृष्‍ण जन्‍मस्‍थान है, वह पांच हजार साल पहले मल्‍लपुरा क्षेत्र के कटरा केशव देव में राजा कंस का कारागार हुआ करता था। इसी कारागार में रोहिणी नक्षत्र में आधी रात को भगवान कृष्‍ण ने जन्‍म लिया था।

- इतिहासकार डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल ने कटरा केशवदेव को ही कृष्ण जन्मभूमि माना है। विभिन्न अध्‍ययनों और साक्ष्यों के आधार पर मथुरा के राजनीतिक संग्रहालय के दूसरे कृष्णदत्त वाजपेयी ने भी स्वीकारा कि कटरा केशवदेव ही कृष्ण की असली जन्मभूमि है।

- इति‍हासकारों के अनुसार, सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वारा बनवाए गए इस भव्य मंदिर पर महमूद गजनवी ने सन 1017 ई. में आक्रमण कर इसे लूटने के बाद तोड़ दिया था।

- जनमान्‍यता के अनुसार, कारागार के पास सबसे पहले भगवान कृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने अपने कुलदेवता की स्मृति में एक मंदिर बनवाया था।

- आम लोगों का मानना है कि‍ यहां से मिले शिलालेखों पर ब्राहम्मी-लिपि में लिखा हुआ है। इससे यह पता चलता है कि यहां शोडास के राज्य काल में वसु नामक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर एक मंदिर, उसके तोरण-द्वार और वेदिका का निर्माण कराया था।

- इतिहासकारों का मानना है कि सम्राट विक्रमादित्य के शासन काल में दूसरा मंदिर 400 ईसवी में बनवाया गया था। यह भव्‍य मंदिर था।

- उस समय मथुरा संस्कृति और कला के बड़े केंद्र के रूप में स्थापित हुआ था। इस दौरान यहां हिन्दू धर्म के साथ-साथ बौद्ध और जैन धर्म का भी विकास हुआ था।

- इस दौरान मथुरा के आसपास बौद्धों और जैनियों के भी विहार और मंदिर भी बने।

- इन निर्माणों के प्राप्त अवशेषों से यह पता चलता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान उस समय बौद्धों और जैनियों के लिए भी आस्था का केंद्र रहा था।

- इसके लगभग 125 वर्षों बाद जहांगीर के शासनकाल के दौरान ओरछा के राजा वीर सिंह देव बुंदेला ने इसी स्थान पर चौथी बार मंदिर बनवाया।

- कहा जाता है कि इस मंदिर की भव्यता से चिढ़कर औरंगजेब ने सन 1669 में इसे तुड़वा दिया और इसके एक भाग पर ईदगाह का निर्माण करा दिया।

- यहां प्राप्त अवशेषों से पता चलता है कि इस मंदि‍र के चारों ओर एक ऊंची दीवार का परकोटा मौजूद था। मंदिर के दक्षिण पश्चिम कोने में एक कुआं भी बनवाया गया था।

- इस कुएं से पानी 60 फीट की ऊंचाई तक ले जाकर मंदि‍र के प्रांगण में बने फव्‍वारे को चलाया जाता था। इस स्थान पर उस कुएं और बुर्ज के अवशेष अभी तक मौजूद है।

- ब्रिटिश शासनकाल में वर्ष 1815 में नीलामी के दौरान बनारस के राजा पटनीमल ने इस जगह को खरीद लिया।

- वर्ष 1940 में जब यहां पंडि‍त मदन मोहन मालवीय आए, तो श्रीकृष्ण जन्मस्थान की दुर्दशा देखकर वे काफी निराश हुए।

- इसके तीन वर्ष बाद 1943 में उद्योगपति जुगलकिशोर बिड़ला मथुरा आए और वे भी श्रीकृष्ण जन्मभूमि की दुर्दशा देखकर बड़े दुखी हुए। इसी दौरान मालवीय जी ने बिड़ला को श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पुनर्रुद्धार को लेकर एक पत्र लिखा।

- बिड़ला ने भी उन्हें जवाब में इस स्थान को लेकर हुए दर्द को लिख भेजा। मालवीय की इच्छा का सम्मान करते हुए बिड़ला ने सात फरवरी 1944 को कटरा केशव देव को राजा पटनीमल के तत्कालीन उत्तराधिकारियों से खरीद लिया।

- इससे पहले कि वे कुछ कर पाते मालवीय का देहांत हो गया। उनकी अंति‍म इच्छा के अनुसार, बिड़ला ने 21 फरवरी 1951 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की।

- ट्रस्ट की स्थापना से पहले ही यहां रहने वाले कुछ मुसलमानों ने 1945 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक रिट दाखिल कर दी। इसका फैसला 1953 में आया।

- इसके बाद ही यहां कुछ निर्माण कार्य शुरू हो सका। यहां गर्भ गृह और भव्य भागवत भवन के पुनर्रुद्धार और निर्माण कार्य आरंभ हुआ, जो फरवरी 1982 में पूरा हुआ।


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