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हौसले का सफर: व्हीलचेयर का सहारा लेकर बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा कर रहीं नूर बी, हावी नहीं होने दी दिव्यांगता

व्हीलचेयर से तय किया नूर बी ने हौसले का सफर इंटर की पढ़ाई के दौरान ही जोड़ों में दर्द होने से चलने फिरने में हो गई थीं असमर्थ दिव्यांगता में की बीटीसी हर रोज व्हीलचेयर से जाती हैं स्कूल।

By Abhishek SaxenaEdited By: Published: Sat, 21 May 2022 03:27 PM (IST)Updated: Sat, 21 May 2022 03:27 PM (IST)
हौसले का सफर: व्हीलचेयर का सहारा लेकर बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा कर रहीं नूर बी, हावी नहीं होने दी दिव्यांगता
प्राथमिक स्कूल कनेटा में तैनात सहायक अध्यापिका नूर बी

अजय प्रताप सिंह, फिरोजाबाद। कहते हैं कि हौसला अगर बुलंद हो तो आंधियों में भी चिराग जलते हैं। फिरोजाबाद ब्लाक के प्राथमिक स्कूल कनेटा में तैनात सहायक अध्यापिका नूर बी ने इस कहावत को चरितार्थ कर दिखाया है।

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पढ़ाई के दौरान जोड़ों के दर्द से चलने फिरने में असमर्थ हुई तो व्हीलचेयर का सहारा लेना पड़ा, लेकिन हौसला कम नहीं होने दिया। बीटीसी करने के बाद उन्होंने शिक्षिका बनने का संकल्प साकार किया है।

बच्चों को शिक्षित करने का लिया संकल्प

नगर के मुहल्ला गढ़ैया निवासी नूर बी ने बच्चों को शिक्षित करने का संकल्प लिया था। उन्होंने शिक्षिका बनकर इस संकल्प को पूरा करने का सपना संजोया था। वह 1999 में एमजी बालिका इंटर कालेज से बीए कर रही थी, उसी दौरान उन्हें जोड़ों में दर्द की शिकायत हो गई।

पिता खुर्शीद अहमद ने फिरोजाबाद से लेकर दिल्ली के निजी अस्पतालों में इलाज कराया, लेकिन ठीक नहीं हो सकी। इस बीच वह चलने फिरने में भी असमर्थ हो गईं, ऐसी स्थिति में उन्होंने चुनौती को स्वीकार किया और हौसला से सपने को साकार करने का संकल्प लिया।

पिता ने किया हर कदम पर साथ देने का वादा

उन्होंने पिता से आगे की पढ़ाई जारी रखने की इच्छा जताई। पिता ने भी हर कदम पर साथ देने का वादा किया। 2012 में उन्होंने जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) से बेसिक ट्रेनिंग सर्टिफिकेट (बीटीसी) की। पिता ने उन्हें ले जाने और घर लाने की जिम्मेदारी निभाई।

इसके बाद पिता ने नूर बी की शादी इटावा निवासी अनवर जमाल के साथ कर दी थी। अक्टूबर 2013 में बेसिक शिक्षा विभाग में सहायक अध्यापक पद के लिए भर्ती निकली। उन्होंने फार्म डाला और उनका चयन हो गया। उनकी पहली पोस्टिंग प्राथमिक विद्यालय कनेटा पर हुई। तब से वह इसी स्कूल में तैनात हैं।

पति ने भी दिया साथ, निभा रहे जिम्मेदारी

नूर बी बताती हैं, संकल्प को साकार करना इतना आसान नहीं था। ऐसी स्थिति में अधिकांश लोग अपना रास्ता बदल लेते हैं, लेकिन पिता ने अपना फर्ज निभाया तो हौसला और बढ़ गया। शादी के बाद पति ने भी साथ दिया तो सपना साकार हो गया। अब पति ही उन्हें स्कूल ले जाने और लाने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। 


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