सब्जियों के राजा को भाव मिलता है न दाने को समर्थन
हर बार छला जाता है अन्नदाता महंगे बीज- खाद में राहत चाहता है किसान। चुनाव के बाद कोई नहीं लेता सुध हर बार उम्मीदों पर फिरता है पानी।
आगरा, श्रवण शर्मा। हर पांच वर्ष बाद लोकसभा चुनाव आते हैं। प्रचारों का दौर चलता है, किसानों की भीड़ जुटती है, वे टकटकी लगाकर आंखों से प्रत्याशियों और उनके आकाओं को देखते हैं। मन में उठी टीस पर वायदों का मरहम लगाकर घर लौटते हैं। मतदान के दिन आस और उम्मीद के साथ मनपंसद सरकार चुनते हैं। मगर, पांच वर्ष बाद निराशा ही हाथ लगती है। किसानों की उम्मीदों को रोशनी तो सब दिखाते हैं, लेकिन आलू राजा और गेंहू के दाने पर सब खामोश ही दिखते हैं।
किसानों की दुर्दशा की यह कहानी किसी एक चुनाव की नहीं, बल्कि हर बार की है। सरकार से लेकर लोकल जनप्रतिनिधि जुमलों में दुरुस्त रहते हैं और जिला के किसान अपनी दुर्दशा पर रोते हैं। गेहूं किसानों का भी हाल कुछ अच्छा नहीं है। उनके लिए न तो सरकार सही समर्थन मूल्य तय कर पाती और न ही प्रशासन तमाम वायदों के बाद भी गेहूं क्रय केंद्रों को बिचौलियों की पहुंच से दूर रख पाता है।
किसान रामवीर सिंह कहते हैं कि आज किसान बर्बादी के कगार पर हैं। हर बार अच्छी पैदावार के बाद भी खपत न होने के चलते किसान आलू को सड़कों पर उतरकर बेचने या फिर फेंकने को मजबूर होते हैं। इधर, खेती में प्रयोग होने वाले रसायनों से लेकर उपकरणों तक के दाम आसमान को छू रहे हैं। किसान जितनी लागत लगाकर मेहनत कर फसल उगता है, उसको देखते हुए आमदनी न के बराबर है।
लागत बढ़ी, आमदनी नहीं
किसान देवजीत सिंह कहते हैं कि सरकार किसानों की आय बढ़ाने की बात करती है। मगर, खेती से जुड़ी वस्तुओं के दाम बढ़ाकर किसानों की उम्मीदों पर झटका दे देती है। पिछले पांच साल में डीएपी, जिंक, पोटाश से लेकर कृषि उपकरणों के दाम तेजी से बढ़े हैं। बिजली और डीजल के दाम बढऩे के कारण भी किसान परेशान है।
गेहूं क्रय केंद्रों पर बिचौलियों का जाल
गेहूं किसानों का भी दर्द आलू किसान से कम नहीं है। रामजीलाल कहते हैं कि कुदरत के कहर से पार पाकर जब क्रय केंद्रों पर गेहूं को बेचने पहुंचता है तो बिचौलियों का जाल उसने फांसने में जुट जाता है। तीन-तीन दिन तक केंद्रों पर खुले आसमान के नीचे पड़े रहते हैं। सरकारों द्वारा तय सरकारी खरीद के दामों को लेने के लिए भी बिचौलियों के चक्कर काटने पड़ते हैं। इसके कारण किसान अपनी फसल को सीधे मंडियों में बेचने को मजबूर हैं।
राजा भी होता है बेहाल
दिल्ली सहित हरियाणा की मंडियों में पंजाब का आलू आने के कारण यहां के आलू की मांग नहीं होती है। इसे लेकर किसानों के माथे पर पसीना आता है। किसानों की माने तो इस समस्या का हल प्रोसेङ्क्षसग यूनिट है। किसान गुलाब ङ्क्षसह कहते हैं कि जनपद में कोल्ड स्टोरेज मालिकों की मनमानी और भाड़े पर प्रशासन को लगाम लगाना चाहिए। आलू किसानों का भला करने के लिए सांसद को प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना में जुटना चाहिए।