अटल स्मृति: विकास के कपाल पे 'लिख रहा मिटा रहा' बटेश्वर, जानिये क्यों
पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी का जन्म दिवस आज। सीएम भी अपने वादे से मुकरे, नहीं बदला गांव का स्वरूप।
आगरा, संजय रुस्तगी। भारत रत्न और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म दिवस 25 दिसंबर यानि आज है। उनके हमेशा के लिए बिछुड़ जाने का दुख तो उनके पैतृक गांव बटेश्वर से पूछिए। यहां की गलियां उनकी याद में सिसकती हैं। पैतृक हवेली में तो जैसे जान ही नहीं रही। जिस जंगलात कोठी में रहकर अटल जी ने अंग्रेजों को ललकारा था, आज वो गमगीन है। वक्त की मार से हर सांसारिक वस्तु नष्ट होना स्वाभाविक है, मगर कुछ प्रयास स्मृतियों को अटल बनाया जा सकता है। अटल जी की अस्थियां यमुना में विसर्जित करने आए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ऐसा भरोसा दिलाया तो बटेश्वर गदगद हो गया था। उम्मीद थी कि जन्मदिवस तक शायद यहां का स्वरूप बेहतर हो जाए। ऐसा हो तो नहीं पाया, मगर कैबिनेट के हालिया फैसले से उम्मीदें जरूर बढ़ गई हैं। जिस तरह से अटल जी ने जिंदगी पर कविता गढ़ी थी- काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं। बटेश्वर भी मानो विकास के कपाल पे लिख और मिटा रहा है।
ये बने 10 करोड़ के प्रस्ताव
स्मारक व संग्रहालय: अटल की खंडहर हो चुकी पैतृक हवेली के 60 वर्गगज हिस्से को स्मारक और संग्रहालय का रूप देने का प्रस्ताव। इसमें अटल से जुड़े संस्मरण संजोए जाएंगे।
सर्किट की योजना: अटल की यज्ञशाला को जोड़ते हुए एक सर्किट बनाया जाएगा। इस सर्किट में यज्ञशाला, पार्क और मंदिरों को जोड़ा जाएगा।
जंगलात कोठी का जीर्णोद्धार: बटेश्वर की जिस जंगलात कोठी में अटल जी ने बचपन में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ झंडा फहराया था, उसका भी जीर्णोद्धार होगा।
बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे से जुड़ेगा बटेश्वर: बटेश्वर बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे के साथ ही लखनऊ-कानपुर एक्सप्रेसवे से जुड़ेगा। इससे तीर्थनगरी तक आवागमन आसान हो जाएगा।
400 मीटर घाटों के जीर्णोद्धार का प्रस्ताव: बटेश्वर के जीर्ण-शीर्ण घाटों के जीर्णोद्धार का प्रस्ताव भी शासन को भेजा गया है। शिव मंदिरों के किनारे बने करीब 400 मीटर घाटों को सुधारा जाएगा।
क्या कहते हैं जनप्रतिनिधि
बटेश्वर में विकास कार्यों की जल्द शुरुआत की जाएगी। 10 करोड़ रुपये स्वीकृत होने की जानकारी भी मिली है। 25 दिसंबर को गांव में मेरे द्वारा स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया जा रहा है।
-पक्षालिका सिंह, विधायक, बाह
स्थानीय लोगों के मन की बात
मुख्यमंत्री ने बटेश्वर आगमन पर वादा किया था कि दिसंबर तक बटेश्वर में विकास दिखाई देने लगेगा। मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। अभी तक जैसा बटेश्वर था वैसा ही है। अब विकास की आस टूट चुकी है। अटल की याद में जो बनना था, उसकी शुरुआत भी नहीं हुई ।
-संजीव वर्मा
जब मुख्यमंत्री का आगमन हो रहा था, उस समय ऐसा लगा कि शायद अब बटेश्वर के हालात में सुधार होगा। मगर, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। जो उस समय तैयारी की गई थी, वह केवल मुख्यमंत्री के आगमन को लेकर थी । उनके जाने के बाद आज तक कोई भी बटेश्वर की सुध लेने नहीं आया है। अब विकास का सपना चकनाचूर होता नजर आ रहा है।
-अश्वनी बाजपेयी, अटल के परिवार के सदस्य
मुख्यमंत्री योगी जब बटेश्वर आये तो अटल बिहारी बाजपेयी के नाम से अटल म्यूजियम,बटेश्वर का विकास समेत कई घोषणा की गई ,लेकिन वे घोषणाएं हवा हवाई बन गई है। अभी तक बटेश्वर के साथ जो होता आया है वही हो रहा है। अब विकास की आस टूट चुकी है। बटेश्वर के बहुरने के दिन शायद ही आएं।
- शिवकुमार शर्मा
जिस तरह से आस जागी उसी तरह से बुझ रही है। अगर सरकार जरा सा भी ध्यान देती तो बटेश्वर का कल्याण हो जाता लेकिन न तो केन्द्र और न ही प्रदेश सरकार ने बटेश्वर की ओर ध्यान दिया। रेल की सुविधा भी सही तरीके से नही मिल पा रही है।
- डॉ. शिव सिंह वर्मा
सुहागनगरी से अटल का था रास्ते का नाता
भाजपा के शिखर पुरुष पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का फीरोजाबाद से रास्ते का गहरा नाता था। शिकोहाबाद से लेकर गांव तक तांगे के सफर को वह बड़े रोचक अंदाज में सुनाते थे। यह सफर कई सालों तक उनकी यादों में बसा रहा। उनके नजदीक रही दूसरी पीढ़ी अभी भी उनके संस्मरण याद करती है।
स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी का पैतृक गांव आगरा जिले का बटेश्वर फीरोजाबाद जिले के शिकोहाबाद से महज 26 किमी दूर है। आगरा से उसकी दूरी लगभग 80 किमी है। लखनऊ और दिल्ली से ट्रेन के जरिए जब भी वे आते तो शिकोहाबाद रेलवे स्टेशन पर उतरते थे। उन दिनों यहां से बटेश्वर के लिए तांगा चलते थे। एक जनसभा में उन्होंने तांगा चालकों के अंदाज में घाट बटेश्वर-घाट बटेश्वर की आवाज लगाकर अपने रास्ते के नाते को बताया था।
वर्ष 1982 में जाटव समाज में हुए सामूहिक हत्याकांड को लेकर दिहुली से साढूपुर तक की पदयात्रा को अभी भी लोग याद करते हैं। वर्ष 1978 में विदेश मंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी ने रामनगर में आंबेडकर की प्रतिमा का लोकार्पण किया था। इसके अलावा शिकोहाबाद की रामलीला मैदान की रैली भी लोगों को अब भी याद है।
यादों में हमेशा जिंदा रहेंगे अटल
पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के संपर्क में रहे लोग अभी भी उन्हें याद करते हैं। भाजपा नेता सुमन प्रकाश मिश्रा, नवीन प्रकाश उपाध्याय, धर्मेंद्र शर्मा, हरिओम आचार्य महेंद्र बंसल आदि उनके संपर्क में रहे। अटलजी की अंतिम यात्रा में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में लोग फीरोजाबाद से गए थे।