भाग्य जगाने वाले नीलकंठ के अब दर्शन दुर्लभ, ये कारण बने हैं विलुप्ति की वजह Agra News
कीटनाशक दवाओं के प्रयोग से प्रजनन क्षमता हो रही प्रभावित। नीले पंख नुकीली चोंच वाला पक्षी है किसान मित्र।
आगरा, सत्येंद्र दुबे। ‘नील कंठ पटवारी, पहली सिद्ध हमारी’ गांव-देहात में प्रचलित यह कहावत अब इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह गई है। एक जमाना था जब नीलकंठ पक्षी के दर्शन को शुभ माना जाता था। ग्रामीण अंचल के लोग इसके दर्शन को शुभ कार्य का संकेत मानते थे लेकिन बदले माहौल में अब यह दिखाई नहीं देता। जीव जंतु विशेषज्ञ इसका जिम्मेदार किसानों के अधिक मात्र में रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग को मानते हैं। फसलों से अधिक उपज पाने के लिए किसान अंधाधुंध कीटनाशकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह धीमा जहर इस प्रजाति के पक्षी के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। जीव-जंतु विशेषज्ञों का कहना है कि नीलकंठ की गणना न तो पहले कभी हुई और न ही इसकी कोशिश हो रही है। एक दशक पहले तक ये बहुतायत में मिलते थे लेकिन बदले माहौल ने इनकी संख्या भी सीमित कर दी। अब इन्हें महज झील, चंबल सेंचुरी आदि हरे-भरे स्थानों पर ही देखा जा सकता है। शरीर पर नीली धारियां, नुकीली चोंच और नीली गर्दन वाला यह नन्हा सा पक्षी शुरू से आकर्षण का केंद्र और किसानों का मित्र माना जाता रहा है। किसान मित्र इसलिए क्योंकि यह फसल में लगने वाले कीड़े-मकोड़े खाता है।
नीलकंठ के दर्शन इसलिए शुभ
पौराणिक मान्यता है कि भगवान राम ने नीलकंठ के दर्शन के बाद ही लंकापति रावण का वध किया था। तभी से नीलकंठ के दर्शन शुभ माने जाते हैं। दशहरे के दिन इसके दर्शन के लिए आज भी लोग लालायित रहते हैं। वहीं वेद-पुराण में भगवान शिव को नीलकंठ कहा गया है। इस कारण नीलकंठ पक्षी के दर्शन शुभ माने जाते हैं।
अधिक पेड़ कटान भी है कारण
अब चंबल, यमुना और तालाब किनारे ही नीलकंठ दिखते हैं। किसान अपनी फसल में अंधाधुंध कीटनाशक दवा का प्रयोग कर रहे हैं। इस कारण इस पक्षी की प्रजनन क्षमता प्रभावित हो रही है। अधिक पेट कटान भी एक कारण है।
सतेंद्र शर्मा, जीव जंतु विशेषज्ञ