Move to Jagran APP

Navratri 2022: देवी का पांचवां रूप हैं स्कंदमाता, अच्छी आयु और आशीष पाने के लिए इस तरह कर सकते हैं आराधना

Navratri 2022 शारदीय नवरात्र में पांचवें दिन स्कंदमाता की आराधना की जाएगी। स्कंदमाता पार्वती का ही स्वरूप हैं। पूजा आराधना के साथ अपनी मां या उनके समान आयु की स्त्री की सेवा यदि पूरे मनाेयोग से करेंगे तो स्कंदमाता भी प्रसन्न हो जाएंगी।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Thu, 29 Sep 2022 05:00 PM (IST)Updated: Thu, 29 Sep 2022 05:00 PM (IST)
Navratri 2022: देवी का पांचवां रूप हैं स्कंदमाता, अच्छी आयु और आशीष पाने के लिए इस तरह कर सकते हैं आराधना
Navratri 2022: शारदीय नवरात्र में शुक्रवार को स्कंदमाता की आराधना की जाएगी।

आगरा, जागरण संवाददाता। शारदीय नवरात्र में पांचवां दिन शुक्रवार को  है। यह दिन देवी भगवती का पांचवां स्वरुप जगद्जननी स्‍कंदमाता का है। मातृगुणों से ओतप्रोत स्कन्दमाता भक्तों को अभय, आय और आशीष प्रदान करने वाली हैं। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार स्कन्दमाता भी पार्वती का ही स्वरूप हैं। स्कंदकुमार की माता होने के कारण उनका नाम स्कन्दमाता पड़ा। मां के पांचवें स्‍वरूप की साधना तभी पूर्ण मानी जाती है, जब साधक अपनी मां और मां की उम्र की स्त्री की सेवा पूरे मनोयोग के साथ करता है। मां स्‍कंदमाता की आराधना के दिन भूलकर भी अपनी माता और उनकी उम्र की किसी भी स्‍त्री का अपमान नहीं करना चाहिए।

loksabha election banner

स्‍कंदमाता के स्वरूप की कथा

देवी पुराण के अनुसार तारकासुर नाम का एक असुर था। उसने कठोर तप करके ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसका अन्त यदि हो तो महादेव से उत्पन्न पुत्र से ही हो। तारकासुर ने सोचा कि महादेव तो कभी विवाह करेंगे नहीं और न ही उनके पुत्र होगा। इसलिए वह अजर अमर हो जायेगा। तारकासुर ने आतंक मचाना शुरू कर दिया। त्रिलोक पर अधिकार कर लिया। समस्त देवगणों ने महादेव से विवाह करने का अनुरोध किया। महादेव ने पार्वती से विवाह किया। तब स्कंदकुमार का जन्म हुआ और उन्होंने तारकासुर का अन्त कर दिया।

अव्यक्त भाव हैं माता के आभूषण

देवी भगवती का पांचवा स्वरूप करुणा, दया, क्षमा, शीलता से युक्त है। अपनी संतान के प्रति मां के अव्यक्त भाव ही इनके आभूषण हैं। चुतुर्भुजी मां की गोद में स्कन्दकुमार हैं। दोनों हाथों में कमल पुष्प हैं। एक हाथ में बालक और एक हाथ से वे आशीर्वाद प्रदान करती हैं। शुभ और ज्योत्सनामयी मां को पद्मासना भी कहा गया है। इनकी पूजा से स्कन्द भगवान की पूजा स्वयं हो जाती है।

मां की सेवा से प्रसन्‍न हो जाती हैं जगतमाता

स्कन्दमाता की सर्वश्रेष्ठ पूजा तो यह है कि अपनी मां के चरण वंदन करें और उनकी सेवा करें। अपनी मां की सेवा करने से ग्रहों की शान्ति अपने आप ही हो जाती है। लोगों को चाहिए कि सर्वप्रथम वे अपनी मां को वस्त्र अर्पण करें। स्कन्दमाता की आराधना के लिए देवी को वस्त्र, कमल पुष्प अर्पित करें, मिष्ठान्न का भोग लगाएं। मिश्री का भोग देवी को अत्यन्त प्रिय है। तंत्रोक्त देवीसूक्त का पाठ करें। श्रीदुर्गा सप्तशती के प्रथमए चतुर्थ, पंचम और ग्यारहवें अध्याय का पाठ करें।

मन्त्र

या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमरू।।

ध्यान

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.