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Navratra 2020: जीवन में शांति का प्रवाह करता है माता का प्रथम स्‍वरूप, जानिए क्या है विशेष मंत्र

Navratra 2020 नवरात्र की प्रथम देवी मां शैलपुत्री हैं। पूरे दिन मां शैलपुत्री का ध्‍यान करने से अनंत फल मिलता है। कलश या घट स्थापना के पश्चात मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। माता शैल पुत्री शांति और उत्साह देने वाली और भय नाश करने वाली हैं।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sat, 17 Oct 2020 08:57 AM (IST)Updated: Sat, 17 Oct 2020 08:57 AM (IST)
Navratra 2020: जीवन में शांति का प्रवाह करता है माता का प्रथम स्‍वरूप, जानिए क्या है विशेष मंत्र
कलश या घट स्थापना के पश्चात मां शैलपुत्री की पूजा विधि विधान से की जाती है।

आगरा, जागरण संवाददाता। अश्विन मास की प्रतिपदा की भोर के साथ माता के पवित्र दिन आरंभ हो चुके हैं। शक्ति स्‍वरूपा माता सशक्तिकरण का रूप हैं तो ममतामयी उनकी मुस्‍कान जीवन का आधार है। दिव्‍य ऊर्जा से ओतप्रोत इन नौ दिनों में माता के नौ रूवरूपों की आराधना की जाती है। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार नवरात्र की प्रथम देवी मां शैलपुत्री हैं। पूरे दिन मां शैलपुत्री का ध्‍यान करने से अनंत फल मिलता है।

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कलश या घट स्थापना के पश्चात मां शैलपुत्री की पूजा विधि विधान से की जाती है। माता शैल पुत्री शांति और उत्साह देने वाली और भय नाश करने वाली हैं। उनकी आराधना से भक्तों को यश, कीर्ति, धन, विद्या और मोक्ष की प्राप्ति होती है। मां शैलीपुत्री अपने भक्तों में उत्साह का संचार करती हैं। उनके इस रूप की पूजा से मन पत्थर के समान मजबूत होता है। आपके अंदर प्रतिबद्धता आती है। माता शैलपुत्री अस्थिर मन को केंद्रित करती हैं। वह पर्वत शिखर की बेटी हैं।

 

मां शैलपुत्री के जन्म का वृतांत

दक्ष प्रजापति ने अपने यहां महायज्ञ का आयोजन किया। उसमें समस्त देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन उन्होंने अपने जमाता भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा। दक्ष प्रजापति अपने दामाद भगवान शिव को पसंद नहीं करते थे। पिता के यहां यज्ञ की बात सुनकर पुत्री सती वहां चली जाती हैं, भगवान शिव के मना करने के बावजूद। वहां अपने पति शिव का अपमान देखकर सती यज्ञ को नष्ट कर देती हैं और स्वयं को यज्ञ वेदी में भस्म कर लेती हैं। अगले जन्म में सती का जन्म शैलराज हिमालय के घर होता है और सती शैलपुत्री के नाम से विख्यात होती हैं।

माता शैलपुत्री का स्वरूप

माता शैलपुत्री बैल पर सवार रहती हैं और उनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल पुष्प होता है। उनके माथे पर चंद्रमा शोभायमान है।

मंत्र

शिवरूपा वृष वहिनी हिमकन्या शुभंगिनी।

पद्म त्रिशूल हस्त धारिणी

रत्नयुक्त कल्याण कारीनी।।

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:।

बीज मंत्र— ह्रीं शिवायै नम:।।

पूजा की विधि

नवरात्रि प्रतिपदा के दिन कलश या घट स्थापना के बाद दुर्गा पूजा का संकल्प लें। इसके बाद माता दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की​ विधि विधान से पूजा अर्चना करें। माता को अक्षत्, सिंदूर, धूप, गंध, पुष्प आदि अर्पित करें। इसके बाद माता के मंत्र का उच्चारण करें। फिर अंत में कपूर या गाय के घी से दीपक जलाकर उनकी आरती उतारें और शंखनाद के साथ घंटी बजाएं। इसके बाद माता को जो भी प्रसाद चढ़ाया है, उसे लोगों में बांट दें। यदि आप व्रत हैं, तो प्रसाद से फल स्वयं भी खा सकते हैं। 


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