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मुस्लिम बस्तियों में गरीबी के जख्म भरने में सुई का सहारा

आगरा, जागरण संवाददाता। हम किसी से कमजोर नहीं है उड़ान भरनी आती है, हमें खुला आसमान चाहिए। ये कहना ह

By JagranEdited By: Published: Thu, 24 Jan 2019 10:00 AM (IST)Updated: Thu, 24 Jan 2019 10:00 AM (IST)
मुस्लिम बस्तियों में गरीबी के जख्म भरने में सुई का सहारा
मुस्लिम बस्तियों में गरीबी के जख्म भरने में सुई का सहारा

आगरा, जागरण संवाददाता। हम किसी से कमजोर नहीं है उड़ान भरनी आती है, हमें खुला आसमान चाहिए। ये कहना है पर्दे के पीछे सुनहरे भविष्य के लिए वर्तमान को सिलती आधी आबादी का। नौकरी के लिए घर से निकलने की इजाजत नहीं, लेकिन सुईं-धागे से काले कपड़े पर सुनहरे मोतियों को जड़कर अपने परिवार को सशक्त बना रही हैं बेटियां।

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तिलक बाजार निवासी हिना परवीन और फरजाना परवीन के पिता अलीमुद्दीन की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। शू-बॉक्स बनाने वाले पिता ने बेटियों को एमए कराया। आगे की पढ़ाई करने में आर्थिक कमजोरी आड़े आने लगी। घर से निकलने की इजाजत न थी, तो दोनों बेटियों ने पर्दे में ही रोजगार चुन लिया। मुस्लिम आबादी में जरदोजी का काम इनका सहारा बना। घर में जरदोजी का काम कर पढ़ाई की फीस जमा की और घर का खर्च चलाया।

कमोबेश यही हाल लोहमंडी के जटपुरा निवासी अनम और इरम का है। अनम ने बीए और इरम ने इंटरमीडिएट की पढ़ाई की है। आगे की पढ़ाई परिवार की क्षमता से परे थी, लेकिन पढ़ाई करने का जज्बा बरकरार था। पढ़ाई की फीस के लिए दोनों बहनों ने अपने रिश्तेदार के घर पर जरदोजी का काम करना शुरू कर दिया। सुबह कॉलेज जातीं और शाम को घर में कढ़ाई करतीं। इससे मिलने वाले रुपयों से फीस जमा करती हैं और घर का खर्च भी चलातीं। बच्चों को पढ़ाई ने सिखा दिया काम

तिलक बाजार निवासी यासमीन ने बेटा शोएब व बेटी आफरीन को पढ़ाने की खातिर जरदोजी का काम सीखा है। वह एक सप्ताह में दो हजार रुपये कमाकर बच्चों की फीस जमा करती हैं। पति की कमाई से घर का खर्चा चलाती हैं। घर खर्चे के लिए पकड़ी सुई

जटपुरा निवासी नेहा के पिता मोहम्मद दानिश की मासिक आय कम होने के कारण घर का खर्च नहीं चल रहा था। उसने और उमा ने तीन वर्ष पूर्व जरदोजी का काम सीखा। रिश्तेदार के घर पर नौकरी करने लगीं। अब वे अपने घर का खर्च आसानी से चलती हैं। पांच चीजों से बनता है ज्वेल कारपेट

जटपुरा निवासी अकरम अपने घर पर जरदोजी का काम करते हैं। उन्होंने छह लड़कियों सहित ग्यारह लोगों को रोजगार दे रखा है। वे बताते हैं कि ज्वेल कारपेट में पांच चीजें कॉपर, पत्थर, कपड़ा, धागा और सुईं का प्रयोग होता है। तिलक बाजार निवासी जावेद ने बताया कि दो फीट चौड़ा और तीन फीट लंबा कारपेट तीन हजार रुपये में तैयार होता है, जो चार हजार रुपये में बिकता जाता है।


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