World Music Day: कोरोना काल में भी दर्द मिटाता रहा संगीत, ब्रज भाषा में खूब बने गीत
लॉकडाउन में लोकगायकों ने भी रचे गीत गाया गांव-गांव। सोशल मीडिया पर भी प्रभावी रहे गीत।
आगरा, आदर्श नंदन गुप्त। संगीत की स्वर लहरियां भी कमाल की होती हैं, जब हम खुश होते हैं तो वे दिल से अपने ही आप निकलने लगती हैं। दुखी होते हैं तो संगीत के ये सुर ही काम आते हैं, दुखते हुए दिल पर मरहम का काम भी ये करते हैं। मन निराश हो तो संगीत के पंख लगाने पर उड़ान ऊंची हो जाती है। गीत, संगीत के माध्यम से हम खुद को खुश, ऊर्जावान और तनावमु्क्त रख सकते हैं। कोरोना वायरस काल में भी लोगों को अवसाद से मुक्त करके उनमें स्वस्थ होने का जज्बा पैदा करने व वायरस से बचाव को जागरूक करने के लिए गीत लिखे व गाए गए। जो फेसबुक, वाट्सएप और यूट्यूब पर धूम मचाते रहे हैं।
ब्रज का यह गीत तो हर किसी की जुबान पर छाया रहा- 'तो कू ठौर मिलेगो ना, करौना तेरो नास जाए गो, तैने ब्रजवासिन की छीन लियौ, जलेबी व कचौड़ी कौ दोना। इसी प्रकार आगरा के लोकगायक महावीर सिंह चाहर का लोकगीत यू ट्यूब पर धूम मचाता रहा, जिसके बोल थे-कैसे फंद कटैगो भैया, कोरोना की बीमारी से, डर लग रह्यो है इस महामारी से। इसे हजारों लोग अलग-अलग वीडियो में देख चुके हैं। इनके लिए इस गीत को अन्य लोक गायकों ने भी अपने सुर दिए हैं।
प्रतिभा तलेगांवकर ने एक गीत डरना नहीं समझना है, गिरना नहीं सभंलना है, कोरोना के इस वायरस से खुद ही तुमको लड़ना है, गाया, जिसमें संगीत दिया केशव तलेगांवकर व शुभ्रा ने। ये गीत भी यूट्यूब पर खूब देखा जा रहा है।
स्कूल के माध्यम से भी एक गीत घर-घर पहुंचाने का प्रयास कवयित्री एवं गायिका निशीराज ने किया है। वे डीपीएस स्कूल में अध्यापिका भी हैं। उन्होंने एक गीत लिखा व स्वरबद्ध किया है- 'एक सूरज फिर उगेगा और उजियारा जागेगा, सुबह नई होगी, फिर से और ये अंधियारा भागेगा'।
वेबिनार पर हो रहे संगीत सम्मेलन
संगीतकार कभी आराम से नहीं बैठ सकते। कोरोना काल में भी वेबीनार पर लगातार संगीत सम्मेलन किए। डीईआइ में संगीत विभाग की प्रो.नीलू शर्मा ने बताया संगीतकारों ने अपनी प्रस्तुतिया आनलाइन काफी दी हैं। काशी विवि, वाराणसी के अलावा मनोहरलाल कन्या महाविदयालय द्वारा आयोजित वेबिनार में उन्होंने भाग लिया। शुभ्रा तलेगांवकर ने भी वेबिनार पर आयोजित संगीत सम्मेलनों भागीदारी की। गायक अजय सारस्वत ने कहा कि सच्चा कलाकार वही है, जो लोगों की पीड़ा समझ कर उसे दूर करने वाला गीत, संगीत तैयार करे।
फ्रांस में शुरू हुआ था दिवस
विश्व संगीत दिवस प्रति वर्ष 21 जून को मनाया जाता है। इसकी शुरुआत वर्ष 1982 में फ्रांस में हुई थी। फ्रांस का हर दूसरा व्यक्ति संगीत से किसी-न-किसी रूप में जुड़ा हुआ है, चाहे वह गाता हो या कोई वाद्य यंत्र बजाता हो, सुगम संगीत या शास्त्रीय, देसी हो या विदेशी। फ्रांसीसियों की संगीत के प्रति दिवानगी की हद को देखते हुए 21 जून 1982 को संगीत-दिवस की घोषणा हुई थी। उसके बाद यह पूरे विश्व में मनाया जाने लगा। फ्रांस में यह संगीतोत्सव न सिर्फ़ एक दिन 21 जून को मनाया जाता है, बल्कि कई शहरों में तो एक महीने पहले से ही शुरू हो जाता है।