ऐसी लागी लगन, ‘हेमा’ हो गईं मगन, पढ़ें कैसे की सांसद ने कृष्ण की अनोखी सेवा Agra News
हेमामालिनी की भावोत्सर्जित नृत्य सेवा के साथ झूलनोत्सव का हुआ समापन। नौ दिनों तक वृंदावन के राधारमण मंदिर में हुआ था आयोजन।
आगरा, अजय शुक्ला। अवसर था वृंदावन के राधारमण मंदिर में आयोजित झूलनोत्सव का। अपने प्रिय कान्हा का दरश मिलते ही हेमा मालिनी कृष्णामृत में डुबी ‘मीरा’ की भांति मगन हो झूम उठीं।
सांसद, प्रसिद्ध अभिनेत्री व भरतनाट्यम नृत्यांगना हेमा मालिनी के अनेक परिचय हैं, लेकिन शुक्रवार को वह कृष्ण रस में डूबी राधा तो कभी मीरा नजर आईं। झूलनोत्सव के अंतिम दिवस राधारमण जू के समक्ष नृत्य सेवा प्रस्तुत करने आईं हेमामालिनी ने 71 वर्ष की आयु में भी भारी उमस भरे माहौल में बिना थके लगातार पांच नृत्य प्रस्तुतियां दे भक्ति की शीतलता से श्रोता-दर्शक वृंद को सराबोर कर दिया।
हेमा मालिनी ने सर्वप्रथम ‘वृंदावन निलये’ पर भरतनाट्यम की प्रस्तुति दी। इसके बाद कृष्ण स्तुति वंशी विभूषित करा नवनीर दाभात् पीताम्बरा दरुण बिंब फला धरोष्ठात पूण्रेन्दु सुन्दर मुखादर बिंदु नेत्रत् कृष्णात परम किमपि तत्व महम नजानि..संस्कृत रचना पर भावोत्सर्जित नृत्य प्रस्तुति दी।
हेमा की नृत्य सेवा ने यहीं विराम नहीं लिया। 12वीं सदी के संस्कृत कवि जयदेव की अष्टपदी गीत गोविंद की प्रसिद्ध रचना ‘पश्यति दिशि दिशि’ और स्वअभिनीत फिल्म ‘मीरा’ के पद मोहे चाकर राखो जी.. व ऐसी लागी लगन..पर भाव प्रवण नृत्य से ठाकुर जी को रिझाती रहीं ।
इसी के साथ राधारमण मंदिर में मन माध्वगौड़ेश्वर वैश्वणाचार्य श्री अभिषेक जी महराज के परम सान्निध्य में चल रहे नौ दिवसीय सेवा सौभाग्य झूलनोत्सव का समापन हो गया।
नौ दिन तक कृष्णामृत में डूबे रहे वृंदावनवासी
वृंदावनवासी नौ दिन कृष्मामृत में डूबे रहे। झूलनोत्सव की शुरुआत गत् गुरुवार 25 अगस्त को कुंच्चिका गृहण कार्यक्रम एवं शयन आरती से हुई। शनिवार को ब्रज रसिक जे एस आर मधुकर का भजन गायन हुआ। रविवार को लखनऊ घराने की सुप्रसिद्ध कथक व देश की एकमात्र सूफी कथक नृत्यांगना मंजरी चतुर्वेदी ने राधा रास की प्रस्तुति से नृत्य सेवा की। मंजरी की किसी मंदिर प्रांगण में यह प्रथम प्रस्तुति थी। इसके अलावा मंगलवार से गुरुवार तक जै जै श्री वैष्णवाचार्य अभिषेक जी महराज ने भक्तों को कठोपनिषद पर प्रवचन दिया। इस अवसर पर श्री मन माध्व गौड़ेश्वर श्री शरद चंद्र गोस्वामी जी महराज भी उपस्थित रहे। शुक्रवार को हेमामलिनी की भावोत्सर्जित नृत्य सेवा के साथ झूलनोत्सव संपन्न हुआ।
तीन पीढ़ियों को मिला सेवा सौभाग्य
चैतन्य महाप्रभु के षट्गोस्वामियों में से प्रमुख गोपाल भट्ट की प्रार्थना से शालिग्राम के तीन स्वरूपों में प्रकटे और बाद में 477 वर्ष पूर्व एकाकार हो वर्तमान स्वरूप में विराजमान हुए। राधारमण का सेवा सौभाग्य गोपाल भट्ट के वंशजों को ही प्राप्त होता है। यह 478वां वर्ष चल रहा है। इस बार एक साथ गोपाल भट्ट की तीन पीढियों को सेवा का अवसर मिला। जहां इस बार 37वीं और 38वीं पीढ़ी सेवा में रही वहीं 39वीं पीढ़ी नें सेवा की शिक्षा ली।
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