नहीं बनेगा अंधेरा आस्था की राह में बाधा, दूधिया रोशनी से नहाएगी कान्हा की क्रीड़ास्थली Agra News
मथुरा वृंदावन विकास प्राधिकरण ने बनाई योजना। शाम ढलते ही अंधेरे में खो जाते हैं एक दर्जन तीर्थस्थल।
आगरा, जेएनएन। अब दिन हो या फिर रात। भगवान श्रीकृष्ण की क्रीड़ास्थली तक पहुंचने में कोई परेशानी नहीं होगी। गोकुल सहित एक दर्जन से अधिक तीर्थस्थल दूधिया रोशनी से जगमग होंगे। इसको लेकर मथुरा वृंदावन विकास प्राधिकरण ने 217 करोड़ रुपये का प्रस्ताव तैयार किया है। इससे तीर्थस्थलों पर एलईडी लाइट लगाने का काम किया जाएगा।
अभी तक गोकुल सहित तमाम तीर्थस्थल ऐसे हैं, जहां सूर्यदेव के ढलने के साथ ही अंधेरा छा जाता है। यहां लोग आने से कतराते हैं, जबकि इन सभी तीर्थस्थलों का भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से बहुत बड़ा जुड़ाव है। बालरूप में कन्हैया ने इन तीर्थस्थलों पर अपने बालशखाओं के साथ मिलकर कुछ न कुछ क्रीड़ा की है, इन सभी का पुराणों में भी उल्लेख किया गया है। यहीं वजह है कि यहां हर रोज सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। श्रद्धालुओं के दर्शनीय स्थल होने की वजह से मथुरा वृंदावन विकास प्राधिकरण ने सवा दो सौ करोड़ रुपये के करीब की योजना बनाई है, जिसके तहत यह सभी तीर्थस्थल दूधिया रोशनी से जगमग हो जाएंगे।
इन स्थानों पर लगेंगी लाइट
भगवान श्रीकृष्ण की क्रीड़ास्थली में गोकुल के ग्यारह नंबर गेट से ठकुरानी घाट, मुरलीधर घाट से महावन रमणरेती आश्रम, चौरासी खम्मा, ब्रह्मांड घाट, चिंताहरण महादेव मंदिर सहित अन्य तीर्थस्थलों पर कुल 319 एलईडी लगाने की योजना है।
इंफो
319 एलईडी लाइट लगाने की है तैयारी
217 करोड़ रुपये का बनाया गया है प्रस्ताव
7.5 किमी लंबे मार्ग पर लगेंगी एलईडी
गोकुल महावन के तीर्थस्थलों पर एलईडी लाइट लगाई जाएंगी। इसके लिए प्रस्ताव तैयार हो गया है। रमणरेती आश्रम, ङ्क्षचताहरण महादेव मंदिर सहित करीब एक दर्जन तीर्थस्थल शामिल हैं। बहुत जल्दी कार्य शुरू होगा।
आरके माहेश्वरी, एई - मथुरा वृंदावन विकास प्राधिकरण
येे है गोकुल का इतिहास
मथुरा से 15 किमी की दूरी पर यमुना के पार स्थित है गोकुल। महावन और गोकुल एक ही है। नन्द बाबा अपने परिजनों को लेकर नन्दगांंव से वृहद्वन या महावन में बस गये थे। गो, गोप, गोपी आदि का समूह वास करने के कारण महावन को ही गोकुल कहा गया है। नन्दबाबा के समय गोकुल नाम का कोई पृथक् रूप में गांंव या नगर नहीं था। लगभग 525 वर्ष पहले चैतन्य महाप्रभु के ब्रज आगमन के बाद वल्लभाचार्य ने यमुना के इस मनोहर तट पर श्रीमद्भागवत का पारायण किया था। इनके पुत्र विट्ठलाचार्य और उनके पुत्र श्रीगोकुलनाथजी की बैठकें भी यहांं पर हैंं। असल में श्विट्ठलनाथ जी ने औरंगजेब को चमत्कार दिखला कर इस स्थान का अपने नाम पर पट्टा लिया था। उन्होंने ही गोकुल को बसाया। उनके बाद गोकुलनाथ के पुत्र, परिवारों के सहित इस गोकुल में ही रहते थे। वल्लभकुल के गोस्वामी गोकुल में ही रहते थे। उन्होंने यहांं पर मथुरेशजी, विट्ठलनाथ, द्वारिकाधीश, गोकुलचन्द्रमा, बालकृष्ण तथा मदनमोहन के विग्रहों की प्रतिष्ठा की थी। यहीं पर रोहिणी ने बलराम को जन्म दिया था।