बंदरों से निपटने को रुनकता की पंचायत में क्या बनी रणनीति, पूरा पढ़ें
पकड़ने के लिए हर घर से चंदा, निजी संस्था की लेंगे मदद ग्रामीण, प्रशासन की उदासीनता से आक्रोश
रुनकता (जेएनएन): कस्बे में बंदरों के आतंक से निपटने के लिए रविवार ग्रामीणों ने पंचायत की। लगातार हमला करके एक अबोध की जान ले चुका है। जबकि बच्चों समेत 19 लोगों को घायल करने के बावजूद प्रशासन की उदासीनता से लोगों में आक्रोश था। पंचायत में लोगों से चंदा जुटाकर बंदरों को पकड़ने वाली संस्था से मदद लेने का फैसला हुआ।
रुनकता की बड़ी चौपाल पर रविवार सुबह 10:30 बजे ग्रामीणों ने पंचायत बुलाई थी। इसमें तय हुआ कि पूरे गाव से चंदा लिया जाए। इसके लिए हर घर से सौ-सौ रुपये सहयोग लेना तय किया गया। इस रकम से बंदरों को पकड़ने वाली संस्था को जिम्मेदारी सौंपी जाएगी।
पंचायत में मौजूद लोगों का कहना था कि बंदरों की बढ़ती जनसंख्या रोकने के लिए जिला-प्रशासन द्वारा कई बार घोषणाएं की जा चुकी हैं। मगर, कोई प्रयास नहीं किए गए। पंचायत में प्रमुख रूप से बंटी सिकरवार, महेंद्र सिंह फौजी, रवि सिकरवार, उदयवीर नेता, अन्नू सिकरवार, अनुज समेत दर्जनों ग्रामीण मौजूद थे।
कुछ ही घंटे में जमा हो गए हजारों रुपये
पंचायत के तत्काल बाद कई टोलियां बनाकर युवक चंदा जुटाने निकल पड़े। कुछ ही घंटे में हजारों रुपये एकत्रित हो गए। चंदे में हेराफेरी न हो इसके लिए एक समिति बनाई गई है। चंदा एकत्रित करने वालों को कापी दी गई हैं, इनमें सहयोग करने वालों के नाम लिखे जाएंगे।
रात सात बजे के बाद आता हैं बंदर
ग्रामीणों का कहना है कि बंदर दिन में नहीं बल्कि रात सात बजे के बाद आता है। अब तक जितनी भी घटनाएं हुई हैं, वह सात बजे के बाद हुई हैं। इसके चलते ग्रामीण रातों में जागने को मजबूर हैं।
सो जाओ वर्ना बंदर आ जाएगा
बंदरों की दहशत का आलम यह है कि अब माता-पिता भी बच्चों को शाम होते ही घरों में बंद कर देते हैं। बच्चों को सोने के लिए यह कहने लगे हैं कि सो जाओ वर्ना बंदर आ जाएगा।
मासूमों में भी बंदरों की दहशत
कस्बे के होरी मोहल्ला का रहने वाला दो वर्षीय प्रशांत लाठी-डंडों के साए में घर के बाहर खेल रहा है। इस दौरान साथी बच्चों से कहता है कि बंदरों को पकड़ने के लिए दिल्ली से डॉक्टरों को बुलाया है। इस पर सारे बच्चे खुश होकर ताली बजाने लगते हैं।
कई दिन से काम पर नहीं जा पा रहे लोग
बंदरों के आतंक के चलते घरों की पहरेदारी को मजबूर पुरुष करीब एक सप्ताह से अपने कामों पर नहीं जा पा रहे हैं। इससे उन पर रोजी-रोटी का संकट भी मंडराने लगा है। वहीं बस्ती की महिलाओं को भी रात में जागना पड़ रहा है। इससे उनकी दिनचर्या प्रभावित हो रही है।
जंगल के बंदर नहीं, शहरी हैं हमलावर
कस्बे के लोगों का कहना है कि आदमखोर बंदर रुनकता के जंगल के नहीं है। वह शहरों से लाकर यहां छोड़े जाने वाले बंदर हैं। क्योंकि जंगलों में रहने वाले बंदर हाथ में ईट देखकर भाग जाते हैं। मगर, शहर से लाकर छोड़े गए बंदर आबादी के बीच में रहने के चलते निडर हो गए हैं। वह ईट और डंडे से नहीं डरते, उल्टे घुड़की देने लगते हैं।