Move to Jagran APP

Dowry: यहां तो दहेज में दिए जाते हैं मुहल्ले, जानिए क्या है आगरा के वाल्मीकी समाज की ये प्रथा

Dowry वाल्मीकि समाज में लंबे समय से चली आ रही है जजमानी प्रथा। जागरुकता के बाद प्रथा को खत्म करने की मांग। नवदंपती के गुजर-बसर के लिए दहेज में मुहल्ले दिए जाते थे। जहां सफाई व्यवस्था संभालनी होती थी।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Tue, 27 Jul 2021 03:18 PM (IST)Updated: Tue, 27 Jul 2021 03:18 PM (IST)
Dowry: यहां तो दहेज में दिए जाते हैं मुहल्ले, जानिए क्या है आगरा के वाल्मीकी समाज की ये प्रथा
वाल्मीकि समाज में लंबे समय से चली आ रही है जजमानी प्रथा।

आगरा, अमित दीक्षित। कटघर निवासी सिम्मी की 15 अक्टूबर 1995 को ईदगाह के सुरेंद्र कुमार से शादी हुई थी। सिम्मी के स्वजन ने सुरेंद्र को कटघर, ईदगाह, कुम्हार बस्ती, मुस्लिम बस्ती क्षेत्र में दहेज में दिए गए। यानी इन क्षेत्रों में झाड़ू लगाना हो या फिर कूड़ा उठाना हो और नालियों की सफाई। यह सब सुरेंद्र और सिम्मी को करना था जिसे आजतक वह कर रहे हैं।

loksabha election banner

- मोहनपुरा निवासी ज्योति देवी की शादी नाई की मंडी के संजय से 28 फरवरी 2010 को हुई थी। ज्योति के स्वजन ने नाई की मंडी का क्षेत्र दहेज में दे दिया। पालन पोषण के लिए संजय कुमार को यह दिया गया था। संजय द्वारा संबंधित क्षेत्र में सफाई व्यवस्था देखी जा रही है।

- छत्ता निवासी गुड्डी देवी की शादी 16 फरवरी 1990 को उसी क्षेत्र के सुदीप कुमार से हुई थी। शादी में गुड्डी देवी के परिवार वालों ने सुदीप को कई क्षेत्रों में जजमानी प्रथा का अधिकार दे दिया। इसमें प्रमुख रूप से कश्मीरी बाजार, छत्ता, फव्वारा शामिल हैं।

- वाटरवर्क्स निवासी कविता की शादी सुल्तानगंज की पुलिया के राजेश कुमार से 28 फरवरी 2017 को हुई थी। कविता के स्वजन ने राजेश को लंगड़े की चौकी, छिद्दा का नगला में सफाई व्यवस्था संभालने का जिम्मा दिया। जिसे आजतक निभाया जा रहा है।

क्या हुआ जनाब, चौंक गए ना। वाल्मीकि समाज में जजमानी प्रथा के यह तो चार ही उदाहरण हैं। यह प्रथा सालों पुरानी हैं। जिसे लेकर अब विरोध के सुर उठने लगे हैं। क्योंकि जिस तरीके से नगर निगम प्रशासन एक के बाद एक क्षेत्रों में डोर-टू-डोर कूड़ा कलेक्शन का कार्य निजी हाथों में सौंप रहा है। इससे आने वाले दिनों में यह प्रथा पूरी तरह से खत्म हो सकती है। सफाई कर्मचारी नेता हरीबाबू का कहना है कि नवदंपती के गुजर-बसर के लिए दहेज में मुहल्ले दिए जाते थे। जहां सफाई व्यवस्था संभालनी होती थी लेकिन अब यह कार्य सीधे निगम के हाथ में चला गया है। ऐसे में धीरे-धीरे यह प्रथा खत्म हो रही है।

बंद होनी चाहिए जजमानी प्रथा

उप्र राज्य सफाई कर्मचारी संघ के जिलाध्यक्ष संतोष वाल्मीकि का कहना है कि जजमानी प्रथा बंद होनी चाहिए। इसके बदले कर्मचारियों को नगर निगम में सरकारी नौकरी मिलनी चाहिए। सरकार को इस दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए।

हो रहा है निजीकरण

उप्र स्थानीय निकाय कर्मचारी महासंघ के प्रदेश के वरिष्ठ उपाध्यक्ष विनोद इलाहाबादी का कहना है कि जजमानी प्रथा धीरे-धीरे खत्म हो रही है। नगर निगम में डोर-टू-डोर कूड़ा कलेक्शन का कार्य निजी हाथों में जा रहा है। ऐसे में जो भी क्षेत्र खत्म हो रहे हैं, वहां के कर्मचारियों को निगम में नौकरी मिलनी चाहिए।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.