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प्यास से तड़पते शहर से टेंडर का खेल

आगरा: भीषण गर्मी में शहर की जनता बूंद-बूंद पानी का तरस रही है। नए इंतजाम करना तो दूर जनप्रतिनिधि पुराने कामों में भी रोड़ा अटका रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Thu, 28 Jun 2018 08:29 PM (IST)Updated: Thu, 28 Jun 2018 08:29 PM (IST)
प्यास से तड़पते शहर से टेंडर का खेल
प्यास से तड़पते शहर से टेंडर का खेल

जागरण संवाददाता, आगरा: भीषण गर्मी में शहर की जनता बूंद-बूंद पानी का तरस रही है। नए इंतजामों के लिए जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों से गुहार लगा रही है, लेकिन उससे खिलवाड़ हो रहा है। जनता की प्यास बुझाने के लिए लगने वाले सबमर्सिबल टेंडर के खेल की भेंट चढ़ गए हैं। दो जनप्रतिनिधियों ने खुद को ई-टेंडर की सूची से बाहर कराकर जनता को फिर लंबे इंतजार के लिए छोड़ दिया है। इसी टेंडर के दूसरे जनप्रतिनिधियों के सबमर्सिबल क्षेत्र की जनता की प्यास बुझा रहे हैं। चहेतों को लाभ पहुंचाने के लिए आठ महीने पहले शुरू हुई प्रक्रिया को फिर नए सिरे से शुरू करा दिया है।

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विधायक राम प्रताप सिंह चौहान, जगन प्रसाद गर्ग, डॉ. जीएस धर्मेश, योगेंद्र उपाध्याय, सांसद रामशंकर कठेरिया ने अक्टूबर 2017 में सबमर्सिबल लगवाने के लिए स्थानों को सूचीबद्ध किया था। प्रक्रिया होते हुए छह महीने बीत जाने के बाद आगरा विकास प्राधिकरण ने इसके लिए टेंडर निकाला था। इसके बाद विधायक डॉ. जीएस धर्मेश ने अपनी 77 सबमर्सिबल की सूची को टेंडर से हटाने के लिए पत्र भेज दिया। इसमें तर्क दिया गया कि पूरी प्रक्रिया में लंबा समय लगा, जिस कारण उक्त स्थानों पर दूसरे मदों से सबमर्सिबल लगवा दिए गए हैं। इसके चंद दिनों बाद ही विधायक ने आगरा विकास प्राधिकरण को पत्र लिख आठ सबमर्सिबल की सूची भेज दी। एक दिन बाद ही आठ सबमर्सिबल की दूसरी सूची भेज दी गई। इन सूचियों में वही स्थान, नाम सम्मलित थे, जिनको ई-टेंडर वाली सूची से हटाया गया था। ऐसे में बड़े सवाल खड़े होते हैं। एक सबमर्सिबल की कीमत लगभग 1.15 लाख है, जबकि दस लाख से ऊपर के कार्य के लिए ई-टेंडर होते हैं। चहेतों को लाभ पहुंचाने के लिए जनता को भीषण गर्मी में बूंद-बूंद पानी के लिए तरसना होगा। आठ-आठ की अलग-अलग निविदा निकालने में एडीए को मुश्किल होंगी, जिस कारण हर महीने आठ की निविदा निकाली गई तो अगले आठ महीने जनता को पानी के लिए तरसना होगा। अपनी सूची रद कराने के लिए ऐसा ही एक पत्र एससी आयोग अध्यक्ष एवं सांसद रामशंकर कठेरिया ने भी एडीए को लिखा है। उनके और विधायक के पत्र की भाषा भी लगभग समान है।


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