बेटे को भी फौज में भेजेगी कागारौल की वीर नारी गीता देवी
-कारगिल शहीद की पत्नी ने एक बेटे को बनाया डॉक्टर दूसरे को कारोबारी सबसे छोटा बेटा कर रहा सीडीएस परीक्षा की तैयारी
आगरा, जागरण संवाददाता। कारगिल युद्ध में पति की शहादत के बाद भी गीता देवी देश की सेवा के लिए अपने छोटे बेटे सेना में भेजना चाहती हैं। शहीद पिता और मां का सपना पूरा करने के लिए बेटा भी जी जान से जुटा है।
कागारौल के अकोला स्थित गांव नगला जयराम निवासी श्यामवीर कारगिल में शहीद हो गए थे। पति की शहादत के बाद पत्नी गीता देवी ने बच्चों के लिए पिता की भूमिका निभाई। उन्होंने गांव से शहर का रुख किया। तीनों बच्चों का सैनिक स्कूल में प्रवेश दिलाया। वह रोज सुबह सात बजे उन्हें स्कूल छोड़ने जातीं। दोपहर दो बजे लेने जातीं। इस बीच जो समय बचता उसमें विभागों से संबंधित अपने काम निपटाती थीं। वीर नारी ने एक बेटे राजेंद्र सिंह को डॉक्टर बनाया। दूसरा बेटा नरेश पेट्रोल पंप का काम संभालता है। वीर नारी गीता देवी का सपना एक बेटे को सेना में भेजने का था। छोटा बेटा विजय सिंह मां के सपने को पूरा करने के लिए सीडीएस प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा है।
पति की शहादत के बाद वीर नारी ने लड़ी हालात से जंग
आगरा: 'होते हैं जिनमें हौसले मिल जाते हैं उन्हें रास्ते, ये जिंदगी नहीं बुजदिलों के वास्ते।' कारगिल शहीद की वीर नारी राजबीरी पर यह पंक्तियां सटीक बैठती हैं। देश की रक्षा में पति रामवीर की शहादत के बाद राजबीरी ने भी एक जंग हालात से भी लड़ी। शहीद पति छह महीने के बेटे समेत तीन बच्चों की जिम्मेदारी उन पर छोड़ गए थे। वीर नारी ने हालात पर विजय पाकर बच्चों को पढ़ा-लिखा कर एक मुकाम दिलाया।
कागारौल के गांव रिठौरी कटरा की राजबीरी ने वर्ष 1999 में बेटे प्रदीप को जन्म दिया। परिवार के लोगों ने कारगिल में तैनात पति रामवीर को बेटा होने की खबर भेजी। सवा महीने के प्रदीप को गंभीर रूप से बीमार पड़ने पर मिलेट्री अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। गांव में टेलीफोन की सुविधा नहीं होने पर परिवार ने रामवीर को टेलीग्राम किया। अबोध बेटे की देखभाल को 15 दिन की छुट्टी लेकर आए रामवीर कुछ दिन बाद दोबारा आने का वादा करके चले गए।
चार महीने बाद राजबीरी के पास उनके कारगिल युद्ध में शहीद होने की खबर पहुंची। पति की शहादत के बाद अब बारी हालात से जंग लड़ने की थी। बड़ी बेटी कृष्णा छह वर्ष की और उससे छोटा बेटा सुरेंद्र तीन साल का था। बच्चों के अलावा बुजुर्ग सास-ससुर को भी उन्हें ही संभालना था। राजबीरी के अनुसार यह सब इतना आसान नहीं था। उन्होंने बच्चों का भविष्य बनाने के लिए गांव से बाहर निकलने का फैसला किया। पति की शहादत के एक साल बाद शहर में आकर बेटे-बेटी का आर्मी स्कूल में प्रवेश दिलाया। सुबह बच्चों को स्कूल भेजने जातीं। इसके बाद अबोध को गोद में लेकर सरकारी विभागों से संबंधित सारे काम निपटातीं। करीब एक साल की भागदौड़ के बाद सरकार की ओर से गैस एजेंसी मिली। ताजनगरी योजना में सरकार द्वारा उन्हें मकान आवंटित किया गया।
बीस साल बाद आज बेटी एम.कॉम जबकि बेटा बी.कॉम और एमबीए कर चुका है। पत्नी की गोद में जिस प्रदीप को रामवीर छह महीने का छोड़ गए थे, वह बीएससी का छात्र है। राजबीरी कहती हैं ससुर ने हर कदम पर मदद की, जिससे उन्होंने हालात से हिम्मत नहीं हारी।
शहीद की बेटी रेनू ने निभाया बेटे का फर्ज
आगरा: कारगिल में बाह के लाल लायक सिंह भदौरिया के शहीद होने के बाद उनकी बेटी रेनू ने बेटे का फर्ज निभाया। मा शंकुतला देवी को संभालने के साथ ही दोनों छोटे भाइयों को उनकी मंजिल तक पहुंचाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाई।
बाह के कोरथ गांव के लायक सिंह भदौरिया कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे। उस समय 19 वर्षीय बेटी रेनू भदौरिया बीए की छात्रा थीं। छोटे भाई 14 वर्षीय सोनू और आठ साल के थे। पति की शहादत के बाद वीर नारी शंकुतला गृहिणी होने के चलते रेनू ने बडे़ बेटे की भूमिका निभाते हुए सारी जिम्मेदारी उठाई। लखनऊ से लेकर दिल्ली तक और सेना के अधिकारियों से मुलाकात के लिए वह मां को अपने साथ लेकर जातीं। मां को पेट्रोल पंप दिलाने से संबंधित सारी कार्रवाई पूरी कराई। भाइयों को स्थापित करने के बाद उन्होंने शादी की। रेनू के पति भी फौजी हैं।
शादी के चार साल बाद उजड़ गई सुमन की मांग
आगरा: फतेहाबाद के गांव खंडेर टीकतपुरा के जितेंद्र सिंह चौहान भी कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे। उनकी पत्नी सुमन चौहान की शादी के चार साल बाद ही मांग उजड़ गई। वीर नारी के सास-ससुर की उनकी शादी के बाद बीमारी से मौत हो चुकी थी। पति की शहादत के पांच साल बाद सुमन के माता-पिता का भी स्वर्गवास हो गया। मगर, उन्होंने हालात से हिम्मत नहीं हारी। खुद को समाज में स्थापित किया। उन्होंने भतीजे वीरेंद्र चौहान को 15 साल पहले दस महीने की उम्र में गोद लिया।
बाबा का सपना, बेटों को सेना के लिए तैयार कर रही मां
आगरा: कारगिल शहीद मोहन सिंह राजपूत अपने बेटों को भी सेना में भेजना चाहते थे। बेटा दिनेश पिता का यह सपना खुद भर्ती होकर पूरा नहीं कर सके। इसके चलते दिनेश अपने दोनों बेटों को सेना में भर्ती कराना चाहते थे। पिछले वर्ष हादसे में उनकी मौत हो गई। अब शहीद की बहू शिवानी राजपूत ससुर के सपने को पूरा करने की कोशिश में जुटी हैं। दोनों बेटों को पढ़ाने के साथ ही उन्हें रोज सुबह दौड़ने भेजती हैं। हालांकि पति की मौत के बाद उनको आर्थिक हालात से जूझना पड़ रहा है। मगर, इसके बावजूद शिवानी ने हिम्मत नहीं हारी है।
सेना ने हर कदम पर की मदद
शहीदों के परिवारों का कहना है कि नेताओं ने भले ही उनको मिलने के लिए समय नहीं दिया। मगर, सेना ने हर कदम पर उनकी मदद की। वह जब भी किसी काम से सेना के कार्यालय जाते थे। वहां यह पता चलने पर कि वह शहीद के परिजन हैं, अधिकारी उनसे तत्काल मुलाकात करते। अपने परिवार के सदस्य की तरह मानते। किसी भी काम को कराने के लिए कभी यह नहीं कहाकि अगले दिन आना।
एक दूसरे को देखकर बंधती हिम्मत
कारगिल शहीदों की वीर नारियों की हिम्मत एक दूसरे को देखकर बंधती थी। वह एक दूसरे को हौसला देती थीं। इसके चलते उनमें परिवार की भावना है। वह एक-दूसरे के संपर्क में रहती हैं। उनके बच्चों में भी यही भावना है। घर से निकलते वक्त एक-दूसरे के गेट पर जाकर वीर नारी से कोई काम तो नहीं है, पूछकर जाते हैं।