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खतरनाक लापरवाही, यहां तो बस्तियां बसाकर रह रहे सैंकड़ाे बांग्‍लादेशी

कई दशक से झोपडिय़ों में रहने वाले इन लोगों का नहीं हुआ वेरीफिकेशन। आधार कार्ड और राशन कार्ड बनवाकर हासिल की नागरिकता।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Tue, 28 May 2019 02:02 PM (IST)Updated: Tue, 28 May 2019 02:02 PM (IST)
खतरनाक लापरवाही, यहां तो बस्तियां बसाकर रह रहे सैंकड़ाे बांग्‍लादेशी
खतरनाक लापरवाही, यहां तो बस्तियां बसाकर रह रहे सैंकड़ाे बांग्‍लादेशी

आगरा, जागरण संवाददाता। शहर में बांग्लादेशियों की भरमार है। कई दशक पहले से झोपडिय़ों में रहने वाले इन परिवारों ने बोली सीखकर अब आधा कार्ड और राशन कार्ड बनवाकर यहीं की नागरिकता भी हासिल कर ली है। अब देश की सरकार बनाने को वोट भी दे रहे हैं।

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एत्माद्दौला के यमुना ब्रिज के पास पांच दशक से इसी तरह की बस्ती बसी हुई है। 150 झोपडिय़ों में रहने वाले इन लोगों का रहन-सहन बरसों पुराना है, लेकिन भाषा बदल गई है। गोपी झोंपड़ी, मारवाड़ी इंद्रा नगर के नाम से इस बस्ती को आधार कार्ड में पहचान मिल चुकी है। इनमें दो हजार से अधिक लोग रहते हैं। मगर, इनकी हकीकत कोई नहीं जानता। इसके बाद भी पुलिस और खुफिया एजेंसियों को इन पर कोई शक नहीं है। इन्होंने लोक सभा चुनाव में अपने मताधिकार का भी प्रयोग किया। इनके पास वोटर आइडी कार्ड, आधार कार्ड, राशन कार्ड और बैंक पासबुक भी हैं। गोपी झोंपड़ी की तरह सिकंदरा, सदर और रकाबगंज के बिजलीघर में बस्तियां हैं। इनमें हजारों लोग रहते हैं, जिनका पुलिस ने अभी तक वेरीफिकेशन नहीं किया है।

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फेरी लगाकर बेचते हैं सामान

इन बस्तियों में रहने वाले महिला और पुरुषों के साथ बच्चे कबाड़ बीनने में लगे रहते हैं। इससे ऊपर उठ चुके कुछ लोग अब फेरी लगाकर शहर के अलग-अलग इलाकों में सामान बेचते हैं।

गाजी के जेल जाते ही खाली हुई बस्ती

सिकंदरा के रुनकता की कबाड़ बस्ती में रहने वाला सईदउल गाजी 12 अक्टूबर 2018 को गिरफ्तार कर विदेशी अधिनियम में पत्नी और बच्चे समेत जेल भेजा था। उसकी एक बेटी बस्ती में रह गई थी। आठ -दस अन्य बांग्लादेशी परिवार यहां रहककर कबाड़ का काम करते थे। गाजी के जेल जाने के बाद पूरी बस्ती खाली हो गई। उसका कबाड़ का सामान खेत मालिक ने बाकी किराए में बेच दिया।

ठंडे बस्ते में डालीं घुसपैठियों की जांच

- 16 फरवरी 2017 को एत्माद्दौला के सुशील नगर से एनआइए ने फातिमा को गिरफ्तार किया। बांग्लादेशी फातिमा नकली नोटों के गिरोह से जुड़ी थी। मगर, न तो पुलिस को इसकी जानकारी थी न ही स्थानीय लोगों को। पकड़े जाने के बाद उसका यह राज खुल गया। तमाम बिंदु जांच करने वाले थे, लेकिन पुलिस ने अपने स्तर से कोई जांच नहीं की। अभी एनआइए मामले की जांच में लगी है।

- 9 फरवरी 2016 को खुफिया एजेंसियों ने सदर के बुंदू कटरा में एक डेरे पर छापा मारकर मोहम्मद जोयनल निवासी जिला बागरहट, बांग्लादेश और मेहताब विश्वास निवासी जिला गोपालगंज, बांग्लादेश को गिरफ्तार कर लिया। स्थानीय गुप्तचर इकाई (एलआइयू) की ओर से सदर थाने में बिना पासपोर्ट के यहां रहने और 14 विदेशी अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज करने के बाद उन्हें जेल भेज दिया। ये फोन पर पाकिस्तान से संपर्क में थे। इसके बाद पुलिस उनके नेटवर्क को नहीं खोल सकी।

- दिसंबर 2014 में वेद नगर में इसी तरह की बस्ती में धर्म परिवर्तन मामला सुर्खियों में आया था। यहां रहने वालों ने खुद को पश्चिम बंगाल का बताया। उन के बताए हुए पते पर पुलिस पहुंची तो वहां कोई रिश्तेदार नहीं मिला। इसके बाद ये रातोंरात गायब हो गए। पुलिस ने उन्हें ट्रेस करना भी उचित नहीं समझा।

- 25 मार्च 2013 को सेना पुलिस ने एडीआरडीई कार्यालय की बाउंड्री के नजदीक एक संदिग्ध युवक को सेना पुलिस ने दबोच लिया। इंटेजीलेंस टीम की पूछताछ में उसने अपना नाम लुकपर पुत्र अदीम अली बताया। वह बांग्लादेश बटमल जिले में सुदपुर गांव का रहने वाला था। मुकदमा दर्ज होने के बाद इसे जेल भेज दिया गया। मगर, उसके संपर्क कहां तक थे पुलिस पता नहीं कर सकी।

थाने में नहीं रहता कोई रिकार्ड

शहर के एत्माद्दौला, सदर, सिकंदरा और रकाबगंज थानों में घुसपैठियों की बस्ती हैं। मगर, पुलिस के रिकार्ड में कुछ नहीं है। न तो बीट सिपाही इनको देखता है न ही दारोगा। इनकी गतिविधियों पर भी कोई नजर नहीं रखी जा रही है। पुलिस की ढिलाई के चलते वे अब यहां के नागरिक बनते जा रहे हैं, जिससे उन्हें बांग्लादेशी प्रमाणित करना ही मुश्किल हो रहा है।

एजाज भी कई बार आया था आगरा

आइएसआइ एजेंट एजाज भी कई बार आगरा आया था। ताजमहल समेत अन्य एतिहासिक इमारतों की रेकी करने के बाद वह यहीं रुका। जानकारी होने के बाद खुफिया एजेंसियों ने उसके ठिकानों को खंगाला था।  

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